उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के कबाड़ के लिए गली-गली मंडराने वाले कबाड़ियों को अब ज्यादा चोखा धंधा मिल गया है। कबाड़ से ज्यादा अब राशन के चावल पर इन फेरी वालों की नजर रहती है। जोर से आवाज लगाते हैं… कबाड़ी, फिर दरवाजे पर फुसफुसाते हैं… राशन वाला चावल दे दो। छोटी बस्ती-मुहल्लों के बाशिंदे भी इनके इंतजार में रहते हैं। इशारों में ही सस्ते चावल देकर रकम ले लेते हैं। यही नहीं, राशन डिपो और अढ़ातियों के जरिए भी सस्ते चावल के बदले रकम या जरूरत के सामान की अदला बदली जोरों पर है। राशन के चावल का यह खेल करोड़ों रूपये महीने का है। लोगों को मुफ्त में मिल रहा सरकारी चावल किराने की दुकानों और साप्ताहिक मंडियों में बिक रहा है। बहुत कम ही लोग इसे पकाते हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो कोटेदार से चावल की जगह रुपये ले लेते हैं, जबकि कुछ लोग दुकानों पर सरकारी चावल बेचकर उसकी जदग फिर अच्छी गुणवत्ता का चावल, चायपत्ती, चीनी, मसाला आदि सामान बदल लेते हैं। बहुतायत संख्या ऐसी है जो फेरी वालों को चावल बेचते हैं, वह भी दो किलो के बदले एक किलो अच्छे चावल के दाम पर। खुला खेल फर्रुखाबादी की तर्ज पर ऐसी खरीद-फरोख्त शहर और देहात हर जगह चल रही है।
			





















		    











