चार जून के परिणामो के बाद लोगो की अलग अलग प्रतिक्रिया आने लगी है, कोई कहता है अयोध्या में राम भक्त है अंध भक्त नहीं रहते है, कोई कहता है जो कहते थे हम राम को लाये है तो उनको भगवान श्री राम ने बता दिया की तुम हमको नहीं बल्कि हम तुमको लाये है, कोई कहता है की बीजेपी ने राजनीती और धर्म को जोड़ दिया पसंद नहीं आया, कुछ का कहना है की कैरिडोर बनाने के चककर में हजारो घरो को तोडा गया, किसी का कहना है की घरो को विस्थापित किया है, तो कोई कहता है मुआवजा नहीं मिला इसलिए जनता ने सबक सिखा दिया, इन सभी बातो से कोई परेशानी नहीं है, क्युकी कही न कही ये भी जरूर कारण रहे है, लेकिन कुछ कारण ऐसे है जिनको हम देखना नहीं चाहते है और वो है कुछ वर्ग विशेष और समुदाय विशेष को सनातन धर्म, सनातनी आस्था और सनातन के बढे हुए प्रभाव से घृणा है, और ये वर्ग और समुदाय कौन है ये बताने की जरुरत नहीं है।
बस ये वर्ग और समुदाय जिनके इशारो पर काम करता है वो एक ट्रिगरिंग पॉइंट देख कर इनको हुलकार देता है और ये सब बिना सोचे समझे काम पर लग जाते है, जब मुकदमा चल रहा था उस समय भी यह वर्ग विशेष और समुदाय विशेष तरह तरह तर्क और सलाह देता था जिसमे अस्पताल और स्कूल तक की बात की गयी, जो सुनने में बहुत बढ़िया लगती है लेकिन इनके लिए तो बहुत जगह है कही भी खोल दो, हमारी आस्था का भी तो महत्त्व है, और अगर हमारी का नहीं है तो सभी का खत्म करो और सभी स्मारकों को हटा कर वहा स्कूल और कॉलेज और हस्पताल ही खोल दो, कुछ गलत बोलै क्या हम ?
हमें अयोध्या जी का जातीय समीकरण समझना होगा !
अयोध्या जी में जिस दिन से प्रभु श्री राम का मंदिर बना है उसी दिन से कुछ समुदाय और वर्ग विशेष के लोग नाराज थे, और बहाना खोज रहे थे बदला लेने का, चुनाव के समय विपक्ष ने इस बात को भली तरह से समझा जबकि बीजेपी इसी भुलावे प्रभु राम से किसे बैर होगा और हमने मेहनत की है तो हमको तो वोट मिलेगा ही, ये अतिरिक्त आत्मविश्वास किसी हद तक ग्राउंड लेवल को टटोलने से इनको रोक लिया और वहा के व्यक्ति जिनको टिकट मिला कभी ग्राउंड पर गए ही नहीं।
लेकिन विपक्ष ने BMD का गेम खेला, और ये वर्ग कही न कही आंतरिक रूप से सनातन धर्म से बहुत द्वेष रखते है, हलाकि प्रकट रूप में नहीं लेकिन जैसे ही मौका मिलता है छद्म तर्कवाद का सहारा लेकर सनातन धर्म को मानने वालो को नीचे भी दिखाते है, बुरा भी बोलते है और गालिया भी देते है।
ये है अयोध्या जी का जातीय समीकरण
अयोध्या जी लोकसभा सीट पर हार की सबसे बड़ी वजह यहां का जातीय समीकरण बने. अयोध्या जी में जातियों का आंकड़ा आप एकबार समझ लीजिए तो पूरी पिक्टर क्लियर हो जाएगी. अयोध्या में सबसे ज्यादा ओबीसी वोटर हैं जिसमें कुर्मियों और यादवों की संख्या सबसे ज्यादा है ओबीसी 22 प्रतिशत हैं, दलित मतदाता दूसरे नंबर पर आता है जिनकी तादाद लगभग 21% है और उसमें भी पासी बिरादरी सबसे ज्यादा है जिस तबके से सपा के जीते हुए उम्मीदवार अवधेश प्रसाद आते इसके अलावा मुस्लिम भी लगभग 18% यहां है ये तीनो मिलकर 50 फीसदी से ज्यादा होते हैं, इस बार ओबीसी वोटरों का एक साथ आना इसके अलावा दलित वोटरों का इस सामान्य सीट पर दलित कैंडिडेट को जीताने का जुनून सिर्फ इसलिए की उनको भगवान श्री राम से उतना प्रेम नहीं है जितना अपनी जाति से है और मुस्लिम तो सनातन का धुर विरोधी है उसपर उनके साथ यादव वोटरों का एकमुश्त सपा का समर्थन बीजेपी की हार का कारण बना.
हार के कारणों कारन ये भी है
हालाँकि बीजेपी ने दलित, पिछड़ा प्रेम, संविधान प्रेम, अम्बेडकर प्रेम सब दिखाया लेकिन फिर भी ये वोटर बीजेपी को वोट नहीं दिया, अभी इस हार के कारणों को तलाशा जा रहा है. कोई इसे भाजपा के ओबीसी और दलितों के छिटकने की हर बता रहा है, कोई इसे अखिलेश का सॉलिड जातीय समीकरण साधने को वजह मान रहा है, कोई इसे बीजेपी के भीतर दिल्ली और लखनऊ के तनाव से जोड़कर देख रहा है. अयोध्या की हार सिर्फ बीजेपी ही नहीं बल्कि देशभर के भाजपा समर्थकों हिंदुत्ववादी सोच के लोगों के लिए एक सदमें जैसा है लोगो ने तो यहाँ तक कह दिया की लोगो ने भगवान राम की जगह संविधान को चुना लेकिन कहने वाले ये नहीं सोचते है की सीट तो बीजेपी की ही ज्यादा आयी है, मतलब संविधान बीजेपी के हाथो में ही सुरक्षित है.
कैंडिडेट की मूर्खता
यूं तो फैजाबाद समाजवादी पार्टी के सबसे तगड़े समीकरण के सीटों में से एक है लेकिन इस बार संविधान बदलने का जो माहौल, जो नरेटिव पिछले कुछ दिनों में तैयार हुआ, उसकी पृष्ठभूमि में अयोध्या और उसके सांसद लल्लू सिंह थे. जब बीजेपी ने 400 पर का नारा दिया तो लालू सिंह ही वह पहले नेता थे, जिन्होंने अयोध्या में यह कहा की 400 सीट बीजेपी को संविधान बदलने के लिए चाहिए और उसके बाद तो संविधान बदल देने का मुद्दा ऐसा जोर पकड़ा कि बीजेपी पूरे चुनाव में इस पर सफाई देती रही और इस नॉरेटिव का जवाब देती घूमती रही, और विपक्ष ने इस मुद्दे को इतनी अच्छी तरह से भुनाया की देश की एक विशेष समुदाय और वर्ग की जनता को वास्तव में ऐसा लगने लगा की बीजेपी सच में संविधान बदल कर या तो हिन्दू राष्ट्र बना देगी या मनुवाद को लागू कर देगी, और इनका ऐसा सोच कर भयभीत होने का कारन है शिक्षा का आभाव और अपने जनप्रतनिधिओ पर अँधा विश्वास, लेकिन उससे कुछ अब नहीं हो सकता क्युकी विपक्ष के दांव में दोनों फास गए और उनका काम हो गया।
जातिगत सोच और हमें फायदा नहीं होगा
अगर हम थोड़ा और गहराई में जाये तो पाएंगे की विपक्ष ने अब बहुत ही सुनियोजित सडयंत्र रचा जिसमे लोगो को ब्राह्मणो, और उद्योगपतिओं के खिलाफ भड़का दिया, पहले भड़काया की मंदिर बनने से फायदा सिर्फ ब्राह्मणो को होगा, और लोगो ने समझाया की सभी का होगा फूल से लेकर प्रसाद बेंचने वाले का, लोग बहार आएंगे तो भोजन करेंगे इत्यादि, यहाँ तक जातिवादीओ की दाल नहीं गली तो उन्होंने लोगो को भड़काया की अयोध्या जी का विकास होगा तो बहार से पूंजीपति आएंगे और पैसा बनायेगे इससे आसपास के क्षेत्रो का विकास रुक जायेगा, ये बात ज्यादा गहरी चोट कर गयी और परिणाम ये हुआ की न सिर्फ अयोध्या जी वल्कि उससे सटी हुयी बस्ती अम्बेडकरनगर, बाराबंकी लोकसभा सीट भी बीजेपी हारी है, क्युकी विपक्ष ये बात बरगलाने में कामयाब रहा की बीजेपी पूँजीपतिओ के पार्टी है
जय श्री राम