उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जब निकाय चुनाव के उनके अनुभवों को लेकर उनसे बात की तो वे भावुक होकर बोलीं कि मुंबई की इस बेटी को अलीगढ़ ने बहुत प्यार दिया। अनगिनत काम बिना किसी भेदभाव के कराए। हां, एक मलाल आज तक है कि वे नालों से निकलने वाली सिल्ट को सीधे मशीन के जरिये शहर के बाहर फिंकवाने की व्यवस्था नहीं कर सकीं। उस समय नौ करोड़ की मशीन खरीदी जानी थी। मगर पैसों की कमी की वजह से संभव नहीं हो पाया था।उन्होंने बताया कि चूंकि ससुराल पक्ष सामाजिक व राजनीतिक रूप से संघ व भाजपा से जुड़ा था। इसलिए वह दोनों क्षेत्रों में सक्रिय हो गईं। इसी बीच नगर निगम अलीगढ़ का दूसरा चुनाव शुरू हो गया। मेयर पद का आरक्षण सामान्य महिला वर्ग के लिए आरक्षित हुआ तो वह भी चुनाव में आ गईं। पूर्व विधायक एवं उस समय भाजपा महानगर अध्यक्ष स्व.संजीव राजा ने उनका नाम प्रदेश स्तर तक पहुंचाया। पार्टी ने भी साथ दिया। संजीव राजा ने फोन पर उन्हें बधाई देते हुए कहा कि आपका टिकट हो गया है। तैयारी करो। बस फिर क्या था शहर के सर्व समाज ने प्यार दिया और उन्हें मेयर जिताया गया।मेयर बनने के बाद नगर निगम के लिए धनराशि जुटाने पर बहुत काम किया। सेवा भवन स्थापित हो पाया। रेलवे रोड पर समर्पण कांप्लेक्स शुरू हुआ। सड़कों का जाल, कूड़ा, गंदगी, सफाई, पेयजल आदि पर बहुत से काम हुए। मेडिकल कचरे के निस्तारण के लिए इंसीनरेटर लगवाया गया। मगर सहयोग न मिलने के कारण वह ज्यादा दिन नहीं चल सका और बंद कर दिया गया। वे कहती हैं कि उन्हें कभी महसूस नहीं हुआ कि महिला होने के नाते वे कहीं कमजोर हैं। सभी 70 वार्डों को एक समान मानते हुए सभी दल व वर्ग के पार्षदों के सहयोग से शहर में काम कराए।यूपी मेयर काउंसिल की लगातार पांच वर्ष अध्यक्ष रहने के चलते अनगिनत सेमिनारों में जाने का मौका मिला। हैदराबाद में रात को 12 से 4 बजे तक की सफाई व्यवस्था पर अपने शहर में काम कराने का प्रयास किया। मगर यहां यह कहकर उसे लागू नहीं किया कि यहां के नालों में सांप-बिच्छू रहते हैं और रात में अंधेरा रहता है। इसलिए ठीक नहीं है। वह अब भी अलीगढ़ को याद करती हैं। अभी चुनाव किस तरफ जा रहा है, यह कहना बहुत जल्दबाजी है। कुछ विषय ऐसे हैं, जिन पर सभी को सोचना होगा।


































