देश 1947 में आज़ाद हुआ, संविधान सभा का गठन हुआ उसमे 299 सदस्यों ने मिलाकर वाद विवाद किया तब जाकर संविधान बना, लोगो को या यु कहे देश के नागरिको को समानता और अभिव्यक्ति की आज़ादी का अधिकार मिला—लेकिन क्या ये हक़ सच में सभी को बराबर मिले है ? क्या सच में भारत देश में हर धर्म को समान सम्मान दिया जा रहा है?
एक तरफ़ जब किसी धर्म पर सवाल उठाओ तो वो “शांति का धर्म” बन जाता है, लेकिन उसकी शांति बनाए रखने का तरीका होता है विरोधियों को चुप करा देना, कभी धमकी से तो कभी हिंसा से। आतंकवाद हो, दंगे हों, या किसी की हत्या—अक्सर नाम सामने आता है मुस्लिम आतंकियों का। मस्जिदों से हथियार निकलते हैं, देश को तोड़ने वाले नारे लगते हैं, फिर भी हर कोई चुप रहता है। क्योंकि उन्हें पता है कि आवाज़ उठाई तो जान का जोखिम है यानि की शांति सदा के लिए, विरोध करने वाला बचेगा नहीं तो आवाज भी नहीं आएगी ।
वहीं दूसरी तरफ़ सनातन धर्म—जो ना तो किसी का अहित करता है और ना ही सिखाता, जो सहिष्णुता और क्षमा को अपनी सबसे बड़ी ताकत मानता है, उसी को सबसे ज़्यादा अपमानित किया जाता है। मंदिरों की आरती से दिक्कत होती है, दिवाली पर पटाखे चलाओ तो प्रदूषण याद आता है, रक्षाबंधन पर मज़ाक बनते हैं, नवरात्रि की पूजा को अंधविश्वास कहा जाता है।
कांवड़ यात्रा में दो-तीन दिन बच्चे स्कूल से छुट्टी ले लें तो कविता लिखकर तंज कसे जाते हैं—“कांवड़ मत लाना, पढ़ाई छूट जाएगी” (उत्तर प्रदेश राज्य में एक जिले बलिया के शिक्षक का तंज है, जबकि उत्तर प्रदेश में सरकार भी ठीक लोगो की है )—लेकिन यही लोग बच्चों के पब जाने पर, वेकेशन में घूमने पर, मूवी देखने पर कोई सवाल नहीं उठाते।
सनातन के त्योहारों से ही समस्या क्यों?
- जब मंदिर में आरती होती है तो कहा जाता है “शोर प्रदूषण है” लेकिन मॉल, डीजे, पब से कोई दिक्कत नहीं, यहाँ तक की हमारे सोने के मौलिक अधिकार का हनन करने वाली नमाज से भी दिक्कत नहीं है जो सुबह पांच बजे होती है ।
- दिवाली पर पटाखे बंद करने की बात होती है, लेकिन न्यू ईयर पर फटने वाले पटाखों पर कोई सवाल नहीं।
- श्राद्ध भोज को ताना मारा जाता है कि “पाखंड है”, लेकिन किसी और धर्म में जानवर काटकर खाओ तो चुप्पी, या फिर पेड़ के नीचे मोमबत्ती जलाओ तो भी चलेगा ।
- कांवड़ यात्रा को ताना मारा जाता है कि “बच्चों की पढ़ाई रुकती है”, लेकिन गर्मियों की दो महीने की छुट्टियां बच्चों के भविष्य को नहीं बिगाड़ती?
ये दोहरे मापदंड क्यों?
क्यों है इतनी नफ़रत सनातन धर्म से?
क्योंकि सनातन धर्म सिखाता है—“अहिंसा परमो धर्मः”। हम किसी पर ज़बरदस्ती अपनी बात नहीं थोपते। हम विरोधियों को जान से मारकर चुप नहीं कराते। हम तर्क करते हैं, संवाद करते हैं, सहिष्णु रहते हैं इसीलिए लोगो को पब्लिसिट के लिए एक सॉफ्ट टारगेट मिलगया है, की इस धर्म का मजाक बनाओ जान का खतरा भी नहीं और पब्लिसिटी होगी मुफ्त में वो अलग से और छोटे मोटे जागरूकता वादी समाजसुधारकों में गिनती भी हो जाएगी ।
लेकिन क्या हमारी यही सहिष्णुता हमारी कमज़ोरी बन गई है?
- आज़ादी के बाद देश भले ही स्वतंत्र हो गया हो, लेकिन वास्तव में सनातन धर्म मानने वालों के लिए आज़ादी अधूरी लगती है।
- संविधान सबको समान अधिकार देता है, लेकिन सनातनियों को “धर्म पालन की स्वतंत्रता” और “धार्मिक अभिव्यक्ति की आज़ादी” कहीं दिखाई भी नहीं देती।
- प्रार्थना करो तो समस्या, पूजा करो तो समस्या, मंदिर बनाओ तो समस्या—आखिर क्यों?
समझ नहीं आता तो मज़ाक क्यों उड़ाते हैं?
अगर आपको सनातन धर्म समझ में नहीं आता, तो मत समझिए। अगर आपको हमारे धार्मिक अनुष्ठान वैज्ञानिक नहीं लगते, तो कोई ज़बरदस्ती नहीं है। लेकिन कम से कम तंज मत कसिए।
हर धर्म में कुछ बातें विज्ञान से परे होती हैं—तो सिर्फ़ सनातन पर ही सवाल क्यों?
हर धर्म में परंपराएँ हैं—तो सिर्फ़ सनातन की परंपराओं को ही पाखंड क्यों कहा जाता है?
हमें भी जीने दो जैसे दूसरे जीते हैं
जिस तरह दूसरे धर्मों के लोग अपने मज़हब को मानते हैं, अपनी परंपराओं पर गर्व करते हैं, उसी तरह हमें भी अपने सनातन धर्म के साथ जीने का अधिकार है, और शायद ये 299 लोगो की संविधान सभा ने हमे दिया है ।
हम मंदिर में आरती करेंगे, कांवड़ यात्रा भी करेंगे, दिवाली भी मनाएंगे, श्राद्ध भी करेंगे—क्योंकि ये सिर्फ़ धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, हमारी पहचान, हमारे पूर्वजों की धरोहर है।
हमें आपसे कोई नफ़रत नहीं, बस एक ही निवेदन है—
👉 हमें भी हमारी तरह जीने दो।
👉 हमारे धर्म को नीचा दिखाने के लिए कविता मत लिखो।
👉 हमारे विश्वास पर तंज मत कसो।
सनातन को मानने वालों से कहना चाहूँगा
अगर हम चुप रहेंगे तो हालात और बिगड़ेंगे। हमें तर्कसंगत ढंग से अपनी बात रखनी होगी। हमें अपने धर्म पर गर्व करना होगा, अपनी परंपराओं को समझना होगा और दूसरों को समझाना होगा।
सनातन धर्म किसी को दबाता नहीं, किसी को मारकर चुप नहीं कराता—क्योंकि वो डर से नहीं, ज्ञान और प्रेम से चलता है।
सनातन धर्म हजारों साल पुराना है, इसने कई आक्रमण, अन्याय और अपमान सहे हैं। फिर भी ये जीवित है, क्योंकि ये सत्य, करुणा और सहिष्णुता पर आधारित है। लेकिन आज ज़रूरत है कि हम इस सहिष्णुता को अपनी कमज़ोरी न बनने दें।
हम शांति चाहते हैं, लेकिन हमें अपने धर्म और अपनी परंपराओं को बचाने के लिए बेबाक भी होना होगा।


































