भारत का संविधान अपने आप में एक चमत्कार है—लेकिन इस चमत्कार को आज इतिहास में सिर्फ डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ‘अकेले’ रचने वाले बताए जाते हैं। जबकि असल कहानी इससे कहीं अधिक व्यापक, जटिल और सामूहिक है। इस लेख में हम साक्ष्य, दस्तावेज़ और नामों के ज़रिए उस ज़मीनी सच को उजागर करेंगे, जिसे अब तक कथाओं में दबा दिया गया है।
संविधान निर्माण का वातावरण
- सामूहिक मंडल – संविधान निर्माण की प्रक्रिया 389 सदस्यों वाली संविधान सभा द्वारा संचालित हुई जिसमें विभिन्न समाज, धर्म, क्षेत्र, और भाषाओं के प्रतिनिधि शामिल थे।
- पूर्व प्रयासों के आधार – 1935 का “Government of India Act” और 1946 का “Nehru Report” आधुनिक संविधान में शुरुआती रूपरेखा थे ।
B.N. राव – ‘संवैधानिक सलाहकार’
- नाम और पद – सर बेनेगल नारसिंह राव, एक ब्राह्मण आईसीएस अधिकारी, जिन्हें दिसंबर 1946 में संविधान सभा का औपचारिक “संवैधानिक सलाहकार” नियुक्त किया गया ।
- वैश्विक शोध और ड्राफ्ट – 1946–47 में राव ने अमेरिका, कनाडा, आयरलैंड, यूके में जाकर तीनों देशों की संवैधानिक व्यवस्थाओं पर शोध किया और अक्टूबर 1947 में एक प्रारूप तैयार किया जिसमें 243 अनुच्छेद और 13 अनुसूचियाँ थीं।
ग्लोबल मिलावट: हर दृष्टिकोण का समावेश
- अनुच्छेद और अनुसूचियाँ
- राव का ड्राफ्ट तीन सौ बेस अधिक अंतरराष्ट्रीय धाराओं से प्रेरित था—निर्देश सिद्धांत (Irish influence), न्यायपालिका की स्वतन्त्रता (Frankfurter की सलाह), संघीय संरचना (कनाडा, ब्रिटिश नॉर्थ अमेरिका एक्ट) ।
- Fundamental Rights का मूल प्रारूप
- “Preliminary Notes on Fundamental Rights” (1946) में राव ने मौलिक अधिकारों की रूपरेखा तैयार की, जिसमें सरकार की ज़िम्मेदारी और न्यायपालिका की भूमिका स्पष्ट की गई ।
आंबेडकर की भूमिका – अध्यक्षता और संशोधन
- ड्राफ्टिंग कमिटी की अध्यक्षता – 29 अगस्त 1947 को डॉ. बी. आर. आंबेडकर को “ड्राफ्टिंग कमेटी” का अध्यक्ष नियुक्त किया गया, जिसमें राव ड्राफ्टिंग प्रक्रिया का केंद्रबिंदु रहे ।
- संशोधन और विस्तार – अक्टूबर 1947 से फरवरी 1948 तक राव का ड्राफ्ट 315 अनुच्छेदों तक पहुँचा, फिर जनता की राय व बड़े संशोधनों के साथ नवंबर 1949 को 395 अनुच्छेदों और 8 अनुसूचियों वाले अंतिम रूप में परिष्कृत हुआ ।
आंबेडकर की स्वयं मान्यता
- सार्वजनिक उद्घोष – डॉ. आंबेडकर ने संविधान सभा के अंतिम संबोधन में स्वीकार किया:
“मुझको दिया गया सारा श्रेय वास्तव में मेरा नहीं है, इसका कुछ हिस्सा Sir B.N. Rau को जाता है…” ।
- राजेंद्र प्रसाद का श्रेय – संविधान सभा के अध्यक्ष ने कहा:
“राव ने योजना दृष्टा के रूप में ढाँचा देखा और नींव रखी…”।
क्यों ‘अकेले आंबेडकर’ का मिथक?
| कारण | विवरण |
|---|---|
| ⚖️ राजनीतिक हित | लोकतांत्रिक, दलित-संगठन और बीजेपी समर्थक कथानकों में आंबेडकर की कथा को ‘सवर्ण-विरोधी नायक’ के रूप में बढ़ावा मिला । |
| 👤 औपचारिक पद | आंबेडकर कानून मंत्री और ड्राफ्टिंग कमेटी अध्यक्ष होने से “मुख्य निर्माता” के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। जबकि राव ‘सलाहकार’ थे, इसलिए उन्हें कम दिखाया गया । |
| 📚 शैक्षणिक पेड़े | स्कूलों और पाठ्यक्रमों में अक्सर आंबेडकर को ‘एकमात्र निर्माता’ बताया गया, जबकि राव, मुन्शी व अन्य विशेषज्ञों को गौण करार दिया गया। |
सवर्ण योगदान भी अहम
- संविधान ड्राफ्टिंग कमिटी के 7 सदस्यों में 4 ब्राह्मण/सवर्ण थे: राव, K.M. Munshi, Alladi Krishnaswamy Iyer, and N. Madhava Rao—जिन्होंने तकनीकी परिश्रम और कानूनी उत्कृष्टता से संविधान को आकार दिया ।
- ये सभी मिलकर संविधान को समाजवादी, लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष, बहुभाषी, और संघीय मिशन का रूप देते समय व्यापक वैचारिक जमीन तैयार करते थे।
निष्कर्ष – एक समग्र दृष्टिकोण
- ✅ आंबेडकर का नेतृत्व और सामाजिक समावेशन – उन्होंने सामाजिक न्याय, आरक्षण, समानता और धर्मनिरपेक्षता को संविधान में पुरज़ोर तरीके से निर्मित किया ।
- ✅ B.N. राव का तकनीकी आधार और संकल्पना – राव ने आत्मनिर्भर कानूनी ढांचा, मौलिक अधिकारों की रूपरेखा, संघीय संरचना और अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण से संविधान के मूल को तैयार किया।
- ✅ सच तो यह कि संविधान एक सामूहिक सिद्धि है—जिसमें नेताओं, अधिकारियों, कानूनी विशेषज्ञों और समाज के विभिन्न वर्गों का समावेश है।
आपको एक तथ्यों पर आधारित लेख चाहिए जिसमें…
- 📜 राव का शैक्षिक और शोधात्मक योगदान – उनके दस्तावेज, विदेश यात्रा, प्रारंभिक संरचना और दायित्व
- 📘 आंबेडकर के भाषण व भाष्य – जिसमें उन्होंने राव को मान्यता दी
- 🧾 संविधान ड्राफ्टिंग कमिटी के दस्तावेज – जिसमें संशोधनों और अंतिम रूप का विश्लेषण हो
- 🎓 इतिहास की शिक्षा व्यवस्था – उदाहरणों सहित, कैसे एकतरफ़ा कथा गढ़ी गई
- 📚 साक्ष्य आधारित सुधार – सुझाव कि इतिहास की पढ़ाई में कैसे फेयरनेस लाई जाए
अगर आप चाहें तो मैं इसे 1,200 शब्दों में तैयार कर सकता हूँ—नाम, वर्ष, उद्धरण, भाषणों और दस्तावेजों सहित—ताकि पाठक स्वतः ही समझ पाएं कि संविधान की महाशक्ति सिर्फ एक आत्मा की देन नहीं, बल्कि एक सामूहिक भारतीय शिल्पकला थी।


































