वर्तमान समय में आरक्षण का सवाल भारतीय समाज और राजनीति का सबसे विवादित विषय रहा है। शुरू में इसे एक सामाजिक न्याय का साधन बताया गया था और सिर्फ 10 साल के लिए था लेकिन ये एक चाल थी वास्तव में की इसे सिर्फ दस साल के लिए लाया जा रहा है ऐसा बोल कर उस समय के सवर्णो को आस्वस्त किया था की १० साल बाद इसकी ईमानदारी से समीक्षा होगी और जिन्होंने एकबार लिया होगा वो हर साल हटते जायेगे ऐसे दस सालों में काफी लोग आरक्षण का लाभ लेकर उस समाज के बाकी लोगो को खुद उठाने का काम शुरू कर देंगे, लेकिन वास्तव में चाल ये थी की वो व्यक्ति जानता था की देश की पार्टिया वोट के लालच में इस आरक्षण को लगातर बढ़ाते जायेगे क्युकी व्यक्ति कैसा भी हो उसके वोट की कीमत तो बरारबर हो गी और जनसंख्या में आज भी आरक्षण वाले लोग ज्यादा है, वर्तमान समय आते आतेअब यह वैसा ही राजनीतिक अस्त्र बन गया है जैसा आरक्षण की वकालत करने वाले ने सोचा था । आज स्थिति यह है कि आरक्षण केवल शिक्षा या नौकरी तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित करने वाला मुद्दा बन गया है।
आज के आधुनिक युग में प्रश्न यह है कि क्या यह व्यवस्था 2040 तक और विकृत हो जाएगी?
1857 के बाद आरक्षण की राजनीति की नींव
1857 की क्रांति में जब पूरे भारत के राजा, जमींदार और सामान्य जनता अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट हुए, तो अंग्रेजों को साफ़ हो गया कि यदि हिंदू समाज संगठित रहा, तो उनका राज लंबे समय तक नहीं टिक सकेगा।
इसी के बाद अंग्रेजों ने “फूट डालो और राज करो” की नीति के अंतर्गत जातीय विभाजन को राजनीतिक महत्व देना शुरू किया।
- 1909 का मोरले-मिंटो सुधार और 1932 का पूना पैक्ट (Ambedkar–Gandhi समझौता) इसी राजनीति की उपज थे।
- अंग्रेजों ने “Depressed Classes” की अवधारणा गढ़कर हिंदू समाज को तोड़ने का प्रयास किया, जैसा हम सभी जानते है की कही न कही हम सभी मनुस्य अपनी तुलना दुसरो से करके ही आगे बढ़ते है, ऐसे लोग बहुत ही कम है जो इस दर्शन पर टिके रहते हो कि जो प्राप्त है वो पर्याप्त है बस अंग्रेजो ने एक वर्ग को उसकी हीनता दिखानी शुरू कर दी और उनको उन्ही लोगो के विरुद्ध खड़ा कर दिया जिनके कारण उनका जीवन यापन चल रहा था, कोशिस ये थे अंग्रेजो की कैसे भी करके ऊँची जाति के लोगो की छवि ख़राब करके उनको खलनायक बना दो फिर ये वर्ग उनके साथ खड़ा नहीं होगा और हम इसे हवा भरेंगे की ये हामरे कहने पर अपने ही देश वासिओ को मारने लगेगा ।
- शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण की बीज बो दी गई थी, ताकि कुछ वर्ग सीधे अंग्रेजों के प्रति वफादार बने रहें, इस वफ़ादारी में निसंदेह कुछ सवर्ण भी रहे होंगे नहीं तो हमारे धार्मिक ग्रंथो में छेड़छाड़ करके उसका गलत विश्लेषण कौन करता ।
स्वतंत्रता के बाद की स्थिति
आज़ादी के बाद संविधान निर्माताओं ने अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए 10 साल का आरक्षण अस्थायी उपाय के तौर पर लागू किया था।
लेकिन राजनीति ने इसे स्थायी हथियार बना दिया।
- 1950: राष्ट्रपति आदेश द्वारा SC-ST को आरक्षण।
- 1955-60: OBC की मांग जोर पकड़ने लगी।
- 1979: मंडल आयोग गठित, जिसने 27% OBC आरक्षण की सिफारिश की।
- 1990: वी.पी. सिंह सरकार ने मंडल आयोग लागू किया – देशव्यापी हिंसक आंदोलन हुए।
यानी धीरे-धीरे आरक्षण एक “vote bank policy” बन गया।
आज की स्थिति (2025)
आज देश में आरक्षण का स्वरूप इस प्रकार है:
- SC – 15%
- ST – 7.5%
- OBC – 27%
- EWS (General) – 10% (2019 में जोड़ा गया)
कुल मिलाकर 59.5% सीटें आरक्षित हैं।
इसके साथ-साथ:
- SC/ST/OBC को age relaxation, application fee waiver, cut-off में छूट मिलती है।
- फ्री कोचिंग, होस्टल, स्कॉलरशिप, लैपटॉप, यात्रा खर्च तक सरकार देती है।
- General category यानी सवर्ण न केवल इन सब सुविधाओं से वंचित हैं, बल्कि टैक्स देकर इन योजनाओं का बोझ भी उठाते हैं।
2040 की संभावित स्थिति
यदि यही क्रम चलता रहा, तो 2040 तक स्थिति कुछ इस तरह हो सकती है:
1. परीक्षा औपचारिकता मात्र होगी
SC-ST और OBC छात्रों के लिए परीक्षा केवल नाम मात्र की रहेगी।
- General category को 100 में से 80 अंक लाने होंगे।
- OBC को 40 अंक।
- SC को 20 अंक।
- ST को केवल परीक्षा में बैठना ही पर्याप्त होगा।
2. मुफ्त शिक्षा और जीवन-यापन
सरकार पहले से ही छात्रवृत्ति और फ्री कोचिंग देती है।
2040 तक संभव है कि इन वर्गों के लिए –
- निःशुल्क शिक्षा, किताबें, हॉस्टल, लैपटॉप, मोबाइल, इंटरनेट
- मासिक भत्ता (stipend)
भी टैक्सपेयर्स के पैसे से दिया जाए।
3. नौकरी में सीधी भर्ती
राजनीतिक दबाव बढ़ने पर सीधी भर्ती की मांग और प्रबल होगी।
कुछ राज्यों में पहले से ही “Promotion में आरक्षण” लागू है।
भविष्य में यह स्थिति आ सकती है कि SC-ST वर्गों को बिना परीक्षा सीधे सरकारी नौकरी दी जाए।
4. सामान्य वर्ग का हाशियाकरण
General category का युवा न केवल प्रतिस्पर्धा में पिछड़ता जाएगा, बल्कि
- उसे सारी सुविधाएँ खुद जुटानी होंगी
- टैक्स का बोझ भी उठाना होगा
यानी वह दोहरी मार झेलेगा।
5. गुणवत्ता पर असर
आरक्षण का अत्यधिक प्रयोग सरकारी तंत्र की गुणवत्ता को कमजोर कर देगा।
- प्रशासनिक सेवाओं में दक्षता गिरेगी।
- तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्रों में योग्यता का संकट बढ़ेगा।
- अंततः जनता (जिसमें आरक्षित वर्ग भी शामिल है) को ही नुकसान होगा।
व्यंग्य और वास्तविकता
आज जो सोशल मीडिया पर मज़ाक के तौर पर फैलाया जाता है –
“General छात्र: सारे प्रश्न हल करो
OBC छात्र: आधे प्रश्न हल करो
SC छात्र: प्रश्न पढ़ लो
ST छात्र: परीक्षा हॉल में आ जाओ”
वह 2040 तक सच में हकीकत बन सकती है, अगर वर्तमान राजनीतिक सोच नहीं बदली।
समाधान और विकल्प
- आरक्षण की सीमा तय हो – यह स्थायी न होकर अस्थायी होना चाहिए।
- आर्थिक आधार पर आरक्षण – जाति के बजाय गरीब वर्गों को मदद मिलनी चाहिए।
- शिक्षा पर फोकस – मूल समस्या है शिक्षा और अवसरों की कमी। आरक्षण के बजाय गुणवत्ता वाली शिक्षा हर गांव तक पहुँचनी चाहिए।
- समान अवसर नीति – SC-ST-OBC को भी प्रोत्साहन मिले, लेकिन General category को हाशिये पर धकेलना देशहित में नहीं है।
निष्कर्ष
1857 के बाद अंग्रेजों ने जो जातीय विभाजन की राजनीति बोई थी, वह आज भारतीय राजनीति का आधार बन चुकी है।
स्वतंत्रता के बाद जो आरक्षण 10 साल का अस्थायी प्रावधान था, वह अब स्थायी वोट बैंक बन चुका है।
अगर यही क्रम चलता रहा, तो 2040 तक भारत का शिक्षा और भर्ती तंत्र पूरी तरह असंतुलित हो जाएगा।
इसका सबसे बड़ा नुकसान केवल General category को नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र की गुणवत्ता और प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता को होगा।
यदि भारत को वैश्विक शक्ति बनना है, तो ज़रूरी है कि आरक्षण को न्यायसंगत और सीमित दायरे में रखा जाए।
✍️ लेखक का दृष्टिकोण:
“आरक्षण का उद्देश्य समाज को ऊपर उठाना होना चाहिए, नीचे खींचना नहीं। लेकिन राजनीति इसे वोट बैंक का हथियार बना चुकी है। अगर इसे नियंत्रित न किया गया, तो 2040 तक वही स्थिति होगी जो आज व्यंग्य चित्रों और सोशल मीडिया पोस्टों में दिखाई जाती है।” आरक्षण का उद्देस्य था की समाज का वर्ग ऊपर उठे, लेकिन साल दर साल जिस तरह से 1950 के बाद इसमें जातिया जुड़ कर आज 7000 के आसपास है, और sc st तो उठे नहीं उलटे जो पहले सामान्य वर्ग में आते थे वो और obc बन गए तो आखिर आरक्षण का उद्देय्स क्या था ? समाज और देश को आगे बढ़ाना या फिर पिछड़ने की होड़ करना और समानांतर समाज बनाना ? सोचिये


































