क्या किसी कार्य को करते समय अपनी असली पहचान छुपाना एक छोटा अपराध है या बड़ा पाप? अक्सर जब कोई फर्जी आईपीएस बनकर पकड़ में आता है या नकली सीबीआई अधिकारी बनकर छापेमारी करता है, तो समाज और कानून दोनों उसे दंडित करते हैं। आखिर क्यों? क्योंकि हर कार्य को करने के लिए एक योग्यता, नियम और मर्यादा होती है – और बिना उसके आप जो करते हैं, वह फर्जीवाड़ा ही कहलाता है।
पहचान और पात्रता का रिश्ता:
अगर पहचान मायने नहीं रखती, तो फर्जी डॉक्टर्स और नकली पुलिस अफसरों को सजा क्यों मिलती? पहचान सिर्फ नाम की बात नहीं है, वह एक जिम्मेदारी, एक मर्यादा और एक योग्यता का प्रतीक है। जब आप बिना पात्रता के किसी दूसरे की पहचान ओढ़ते हैं, तो आप केवल धोखा नहीं करते, आप उस पहचान को भी अपमानित करते हैं।
इटावा की घटना: कथा के पीछे का सत्य
हाल ही में उत्तर प्रदेश के इटावा में एक विवाद खड़ा हुआ जब यादव समाज के कुछ लोगों ने खुद को ‘भगवताचार्य’ बताकर भागवत कथा करना शुरू किया। परन्तु जब उनका पाखंड उजागर हुआ, तो एक वर्ग ने यह राग छेड़ दिया कि “क्या यादव कथा नहीं कर सकते?” सवाल यह नहीं है कि कौन जाति कथा कर सकती है, सवाल यह है कि क्या कथा कहने के लिए जो योग्यता, संयम, ब्रह्मचर्य, वेदज्ञान और तपस्या चाहिए – वो उस व्यक्ति में थी?
अगर पूरे गाँव में ब्राह्मण ही थे, तो कोई भी ब्राह्मण कथा कर सकता था। लेकिन फिर भी बाहर से कथा वाचक बुलाया गया, क्योंकि कथा केवल जाति से नहीं होती – यह योग्यता और आचरण से होती है।
कथा वाचक बनना – बस इच्छा से नहीं होता
भगवान की कथा कहने के लिए न केवल शास्त्रों का ज्ञान चाहिए, बल्कि एक मन, वचन और कर्म से निर्मल जीवन भी चाहिए। गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी कोई ब्राह्मण कथा नहीं कर सकता अगर वह संयम, नियम और अभ्यास न रखे।
भगवत्कथा के लिए सिर्फ जाति नहीं, बल्कि निष्ठा, तप, नियम और सच्ची श्रद्धा चाहिए।
छली पहचान से नहीं मिलते भगवान
“निर्मल मन जन सो मोहि पावा, मोहि कपट छल छिद्र न भावा” – यह श्रीराम का वचन है। भगवान को पाने के लिए मन का निर्मल होना अनिवार्य है।
विभीषण को इसलिए गले लगाया क्योंकि उसने खुद कहा –
“नाथ दशानन कर में भ्राता, निशिचर वंश जन्म सुरत्राता।”
कहीं कुछ छिपाया नहीं, कोई पहचान नहीं बदली – और भगवान ने तुरंत उसे अपनाया।
वहीं शूर्पणखा ने छल किया, रूप बदला, वासना फैलाई – तो उसका नाक-कान काटे गए। यही है धर्म का न्याय।
कानून की कसौटी पर भी पहचान जरूरी
आज जब कोई सामान्य वर्ग का व्यक्ति अनुसूचित जाति या जनजाति का फर्जी प्रमाण पत्र बनवाकर नौकरी लेता है – तो सरकार और अदालतें उसे दोषी मानती हैं, सजा देती हैं, बिना इस पर ध्यान दिए कि उसने क्यों ऐसा किया।
तो फिर जब कोई कथा वाचक बनने के लिए फर्जी पहचान लेता है, और पकड़ा जाता है, तो वही समाज क्यों धर्म के नाम पर ‘जातिवाद’ और ‘मनुवाद’ का आरोप लगाने लगता है?
यह स्पष्ट है – काम करने का अधिकार सबको है, लेकिन पहचान बदलकर नहीं। अगर आप यादव हैं, और कथा कहना चाहते हैं, तो ब्राह्मण की पहचान क्यों लें? खुले मन से, सत्यता से, पात्रता से कथा कहें – धर्म और समाज आपका स्वागत करेगा।
पर अगर आप छलपूर्वक दूसरों की पहचान लेकर समाज को धोखा देंगे, तो न समाज माफ करेगा, न भगवान स्वीकार करेंगे।
इसलिए पहचान से भागिए मत – खुद को योग्य बनाइये।
कथा कहने से कोई नहीं रोकता, पर कथा को झूठ से कहना, समाज और भगवान दोनों का अपमान है।

































