भारत एक बहुत बड़ा और विशाल देश है जहाँ 142 करोड़ से ज्यादा लोग रहते है और इन में इनकम टैक्स देने वालों की संख्या लगभग 6.25 करोड़ है, यानी 142 करोड़ की जनसंख्या में सिर्फ 4.5% लोग ही अपनी आय का हिस्सा राष्ट्र को सौंपते हैं। ये वही लोग हैं जिनकी मेहनत से देश की सड़कें बनती हैं, सैनिकों का वेतन चलता है, सरकारी योजनाएँ संचालित होती हैं — पर जब संकट आता है, तो यही लोग सिस्टम से सबसे अधिक उपेक्षित पाए जाते हैं।
एक टैक्स देने वाले सॉफ्टवेयर इंजीनियर की कहानी:
बंगलोर के एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर का पैकेज ₹43.5 लाख प्रति वर्ष था।
5 साल में उसने सरकार को ₹30 लाख से ज्यादा टैक्स दिया।
लेकिन जब एक दिन उसकी नौकरी चली गई —
ना तो सरकार ने पूछा, ना किसी योजना ने सहारा दिया।
बचत खत्म हुई, घर चलाना मुश्किल हुआ, और वह डिप्रेशन में चला गया।
अब सवाल ये उठता है कि — उसने सरकार को जो दिया, वो किसके लिए था? यानि उसका दिया पैसे सिर्फ मुफ्तखोरों का पेट भरने में गया और जब उसको सर्कार की जरूरत पड़ी तो उसको उतना भी नहीं मिला जितना उसने दिया था, जबकि संसाधनों का उसके हिस्से में उतना भी दोहन नहीं आया जितना मुफ्तखोर जनता करती है
भारत बनाम अमेरिका: टैक्सपेयर्स को क्या मिलता है?
| मुद्दा | अमेरिका | भारत |
|---|---|---|
| नौकरी जाने पर सुरक्षा | Unemployment Insurance (नौकरी छूटने पर भी पैसा मिलता है) | कुछ नहीं |
| हेल्थकेयर | Medicaid/Medicare | महंगा प्राइवेट इलाज या आयुष्मान जैसी स्कीम जो टैक्सपेयर को नहीं मिलती |
| पेंशन | Social Security से नियमित पेंशन | टैक्सपेयर खुद EPF/NPS में जमा करता है |
| बेरोजगारी भत्ता | हां, सिस्टमेटिक | नहीं, केवल चुनावी घोषणाएं |
अमेरिका या यूरोप में टैक्स देने वाले को नागरिक के तौर पर विशेष दर्जा, सेवा और सुरक्षा दी जाती है। लेकिन भारत में टैक्सपेयर सिर्फ एक दूध देने वाली गाय बनकर रह गया है, जिसे कोई पूछता नहीं। जबकि कुछ लोग बाते करते है भारत कब अमेरिका जैसा बनेगा, अरे मुफ्तखोरों तुम लोग बनने दो तब तो बनेगा
“Self-Employed” की त्रासदी:
भारत में लाखों लोग फ्रीलांसर, दुकानदार, एजेंसी, छोटे व्यवसायी या प्रोफेशनल्स हैं — जो किसी कंपनी में नहीं, लेकिन हर महीने सरकार को GST, इनकम टैक्स, प्रोफेशनल टैक्स, TDS जैसी कई परतों में टैक्स भरते हैं।
लेकिन इन्हें ना तो किसी सरकारी स्वास्थ्य बीमा का लाभ मिलता है,
ना लोन पर सब्सिडी,
ना दुर्घटना बीमा,
ना ही कोई पेंशन स्कीम।
कोरोना काल में जब देश बंद था, तब क्या किसी भी Self-Employed Taxpayer को कोई राहत मिली?
उत्तर है — नहीं।
“Freebies” और “Votebank” का तमाचा टैक्सपेयर के गाल पर:
जो व्यक्ति रोज़ मेहनत कर टैक्स देता है, वही देखता है कि:
- मुफ्त राशन सिर्फ BPL कार्ड वालों को।
- मुफ्त बिजली, पानी, गैस सिलेंडर फोकटियों को।
- “लाडली बहना योजना”, “शादी अनुदान”, “फ्री लैपटॉप”, “फ्री यात्रा” — उन सबको जो टैक्स नहीं देते।
टैक्स देने वाला व्यक्ति — किसी भी सूची में नहीं आता।
उसे न तो कोई “लाभार्थी” मानता है, न “गरीब”, और न ही “जरूरतमंद”।
सरकारें टैक्सपेयर्स को क्यों भूल जाती हैं?
- राजनीतिक वोट बैंक —
टैक्सपेयर एक संगठित वोट बैंक नहीं है। न वह धरना करता है, न वोट की धमकी। इसलिए नेताओं को उससे कोई भय नहीं। - स्वाभिमानी वर्ग —
टैक्सपेयर भीख नहीं मांगता। वह मांगता है सम्मान और सुरक्षा, जो राजनीति को वोट नहीं दिलाते। - अदृश्य वर्ग —
सरकार की योजनाओं में टैक्सपेयर एक अदृश्य इकाई है। उसका डेटा है, पर उसके लिए नीति नहीं।
Tax System में मौलिक खामियाँ:
- टैक्स रिटर्न भरने के बाद भी न कोई इंसेंटिव।
- महंगी शिक्षा, स्वास्थ्य और पेंशन योजनाएँ खुद करनी पड़ती हैं।
- हर सेवा पर टैक्स — बिजली बिल पर टैक्स, पेट्रोल पर टैक्स, EMI पर टैक्स — फिर भी कोई सरकारी राहत नहीं।
क्या किया जा सकता है? समाधान और सुझाव:
- Taxpayer Welfare Board:
एक वैधानिक निकाय जो टैक्सपेयर के लिए योजनाएं बनाए और उसकी परेशानियाँ सुने। - Unemployment Insurance Scheme:
जो भी व्यक्ति एक निश्चित अवधि तक टैक्स देता है, नौकरी जाने पर उसे कुछ महीनों की आर्थिक सहायता मिले। - Healthcare Subsidy:
निजी अस्पतालों में टैक्सपेयर्स के लिए सरकार सब्सिडी दे — जैसे आयुष्मान भारत, पर “Taxpayer Bharat” कार्ड हो। - Education & Pension Benefits:
टैक्सपेयर के बच्चों को भी सरकारी या aided स्कूलों में कुछ फीस छूट या टैक्स रिबेट मिले। - Taxpayers Day:
हर साल 1 दिन ऐसा हो, जब सरकार टैक्सपेयर को सार्वजनिक रूप से सम्मानित करे।
निष्कर्ष:
टैक्स देना देशभक्ति है — पर देशभक्ति का मतलब यह नहीं कि इंसान गुमनाम होकर तिल-तिल जले और सिस्टम उसे फूटी कौड़ी की भी कद्र ना दे।
सरकारें यदि समाज को चला पाने में सक्षम हैं, तो वह सिर्फ टैक्सपेयर की वजह से।
यदि हम मुफ्तखोरी को बढ़ावा देंगे और ईमानदार करदाता को केवल दोहन की वस्तु समझेंगे — तो आगे चलकर “Tax Morality” गिर जाएगी, और लोग टैक्स चोरी को अपना अधिकार मान लेंगे।
✍️ अंतिम शब्द:
“यहाँ फोकटियों के मजे हैं, और टैक्सपेयर अकेला चुपचाप सिस्टम की पीड़ा ढो रहा है।
वह फाइलों में दर्ज है, पर सिस्टम के दिल में नहीं।
अब वक़्त है कि टैक्सपेयर को भी एक नागरिक के तौर पर सम्मान, सुविधा और सुरक्षा मिले।”


































