भारत में अनुराग ठाकुर ने एकबात कही जिसपर बिणामतलब की बहस छिड़ गयी है, उनका कहना था की बच्चे अपने धर्म और संस्कृति को भी जाने, लेकिन हमारे एजुकेशन सिस्टम ने तो भारतीय धर्म और संस्कृति को एक काल्पनिक दन्त कथा बना कर रख दिया, कोई पढ़ा लिखा व्यक्ति भी उसकी बात कर दे तो उसको जलील करने में पूरा जोर लगा देते है, वही बाकी धर्म क्र प्रति इनकी आस्था और विस्वास बहुत प्रेम भरा हुआ है, हमें यानि सनातन धर्म में हर बात को तर्क की कसौटी पर परखा जाता है वही बाकी धर्म के लिए वो आस्था है हमें आस्था से खिलवाड़ नहीं करना कहहिये, भले ही उनकी आस्था भारत देश के राष्ट्रिय ध्वज को प्रणाम करने से रोकती हो।
जब हम अंतरिक्ष की बात करते हैं तो यूरी गागरिन, नील आर्मस्ट्रांग या राकेश शर्मा जैसे नाम सबसे पहले याद आते हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि अंतरिक्ष यात्रा की नींव इंसानों ने नहीं, बल्कि छोटे-छोटे जीव-जंतुओं ने रखी थी। 1940 और 1950 के दशक में जब दुनिया अमेरिका और सोवियत संघ की ठंडी जंग (Cold War) में उलझी हुई थी, तब “स्पेस रेस” का नया अध्याय शुरू हुआ। इसमें सबसे पहले पृथ्वी से बाहर जाने वाले यात्री इंसान नहीं बल्कि फल की मक्खियाँ, बंदर और कुत्ते थे।
सबसे पहले: फल मक्खियों का सफर (1947)
20 फरवरी 1947 को अमेरिका ने V-2 रॉकेट के ज़रिए fruit flies (फल की मक्खियाँ) को अंतरिक्ष में भेजा।
- यह प्रयोग न्यू मेक्सिको के व्हाइट सैंड्स से किया गया।
- मक्खियाँ इसलिए चुनी गईं क्योंकि उनका जीवन चक्र बहुत छोटा होता है और रेडिएशन का असर जल्दी देखा जा सकता है।
- मक्खियों के साथ लगे उपकरणों ने वैज्ञानिकों को पहली बार यह जानकारी दी कि अंतरिक्ष में कॉस्मिक रेडिएशन जीवित कोशिकाओं पर क्या प्रभाव डाल सकता है।
यह प्रयोग सफल रहा और मक्खियाँ जीवित वापस लौटीं। यह मानव इतिहास का पहला कदम था जिसमें किसी जीव ने पृथ्वी की सतह छोड़कर अंतरिक्ष की सीमा छुई।
बंदरों को क्यों चुना गया?
फल मक्खियों के बाद सवाल आया कि आखिर इंसान को भेजने से पहले किस जीव को आज़माया जाए। यहाँ अमेरिका ने बंदरों को चुना। इसके पीछे कई कारण थे:
- जैविक समानता – बंदर (खासकर रीसस बंदर और चिंपांज़ी) इंसानों से आनुवंशिक (genetic) और शारीरिक (physiological) रूप से काफी मेल खाते हैं।
- तंत्रिका तंत्र और व्यवहार – वैज्ञानिक यह देखना चाहते थे कि अंतरिक्ष की परिस्थितियाँ (गुरुत्वाकर्षण का अभाव, उच्च गति, कंपन, वायु दबाव की कमी) मस्तिष्क और स्नायु तंत्र पर क्या असर डालती हैं। बंदरों की हरकतों और प्रतिक्रियाओं से यह समझना आसान था।
- भविष्य की मानव यात्रा की तैयारी – अमेरिका और सोवियत संघ दोनों जानते थे कि अगला लक्ष्य “मनुष्य” को अंतरिक्ष में भेजना है। लेकिन उससे पहले यह जानना ज़रूरी था कि स्तनपायी (mammals) इन परिस्थितियों में कितने देर तक जीवित रह सकते हैं।
इसलिए कहा जा सकता है कि बंदरों को भेजना एक वैज्ञानिक “ड्रेस रिहर्सल” था, ताकि इंसानों की जान को खतरे में न डालकर पहले उनके जैसे जीवों पर प्रयोग हो सके।
पहला बंदर: एल्बर्ट-II (1949)
14 जून 1949 को अमेरिका ने Albert-II नाम के रीसस बंदर को अंतरिक्ष में भेजा।
- यह 134 किलोमीटर की ऊँचाई तक पहुँचा, जो कि “स्पेस” (अंतरिक्ष) की परिभाषा में आता है।
- हालांकि पैराशूट सिस्टम फेल हो गया और वापसी पर उसकी मृत्यु हो गई।
इसके पहले Albert-I नाम का बंदर भी भेजा गया था (1948 में), लेकिन तकनीकी खराबी के कारण वह रॉकेट लॉन्च के बाद ही जीवित नहीं बच पाया।
सोवियत संघ की रणनीति: कुत्तों का चुनाव
जहाँ अमेरिका बंदरों पर प्रयोग कर रहा था, वहीं सोवियत संघ (USSR) ने कुत्तों को चुना।
- रूसियों का मानना था कि कुत्तों को प्रशिक्षित करना आसान है और वे छोटे स्पेस कैप्सूल में लंबे समय तक बैठ सकते हैं।
- 1951 से 1956 के बीच सोवियत संघ ने दर्जनों कुत्तों को सब-ऑर्बिटल और ऑर्बिटल उड़ानों पर भेजा।
इनमें सबसे प्रसिद्ध नाम था लाइका (Laika)।
लाइका: पहला जीव जिसने पृथ्वी की परिक्रमा की (1957)
4 नवंबर 1957 को सोवियत संघ ने स्पुतनिक-2 यान के ज़रिए लाइका नाम की एक आवारा कुतिया को अंतरिक्ष में भेजा।
- यह इतिहास का पहला मौका था जब कोई जीव पृथ्वी की कक्षा (orbit) में पहुँचा।
- दुर्भाग्य से लाइका ज़िंदा वापस नहीं लौटी। कुछ ही घंटों में अधिक गर्मी और तनाव से उसकी मौत हो गई।
- लेकिन लाइका ने यह साबित कर दिया कि जीवित प्राणी कक्षा में पहुँच सकते हैं और कम से कम कुछ समय तक जीवित रह सकते हैं।
चिंपांज़ी हैम और एनोस: इंसान से पहले की अंतिम कड़ी
1961 में अमेरिका ने दो चिंपांज़ियों को भेजा –
- हैम (Ham) – 31 जनवरी 1961 को “मर्करी-रेडस्टोन 2” मिशन पर गया।
- उसने अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक लीवर दबाना, आदेश मानना जैसे कार्य किए।
- यह साबित हुआ कि अंतरिक्ष में इंसान न केवल जीवित रह सकता है बल्कि काम भी कर सकता है।
- एनोस (Enos) – 29 नवंबर 1961 को पृथ्वी की दो बार परिक्रमा की।
- यह पहला चिंपांज़ी था जिसने कक्षा (orbit) में जाकर जीवित वापसी की।
इन दोनों प्रयोगों के बाद अमेरिका आश्वस्त हो गया कि अब इंसान को भेजने का समय आ गया है।
यूरी गागरिन: मानव अंतरिक्ष युग की शुरुआत (1961)
12 अप्रैल 1961 को सोवियत संघ ने यूरी गागरिन को वोस्तोक-1 में बैठाकर अंतरिक्ष में भेजा।
- उन्होंने 108 मिनट में पृथ्वी का एक चक्कर पूरा किया।
- इस उड़ान ने उन्हें अमर बना दिया और वे विश्व इतिहास के पहले अंतरिक्ष यात्री कहलाए।
गागरिन की सफलता के पीछे लाइका और अन्य कुत्तों का बलिदान, फल मक्खियों का छोटा सा सफर और बंदरों के कठिन प्रयोग छिपे थे।


































