वास्तव में भारतीय न्याय व्यवस्था एक ऐसे संक्रमण काल में है जिसमे न्यायपालिक में वकील, जज, जनता सब जानती है की सच क्या है, दोषी कौन है और निर्दोष कौन है फिर भी ट्रायल पर ट्रायल या तारिख पर तारिख करके मनचाहे फैसले लिए जाते है और दिखाया ऐसे जाता है की कितनी मेहनत और मंथन के बाद न्याय हुआ है, आज हमें बात करनी है एक अधिवक्ता के बारे में ये है एडवोकेट मनीषा भंडारी जो कहने को भारतीय न्याय व्यवस्था की एक अनुभवी किन्तु अपने मुकदमो के लिए विवादास्पद वकील हैं, जो सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया, उत्तराखंड हाईकोर्ट (नैनीताल) और इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करती हैं। ये विशेष रूप से हाई-प्रोफाइल आपराधिक मामलों, मौत की सजा वाले केसों, और जनहित याचिकाओं (PIL) में अपनी दलीलों के लिए जानी जाती हैं, यही इनकी खासियत है या फिर भारतीय न्याय पालिका की लचर व्यवस्था की मनीषा भंडारी ने कई ऐसे मामलों में वकालत की है जहां सबूतों की कमी, प्रक्रियागत खामियों या निष्पक्ष सुनवाई पर जोर देकर आरोपी को बरी कराने में सफलता हासिल की है।
उनके द्वारा जब अपराधी की ऐसी पैरवी की गयी की प्रत्यक्ष अपराधी छूट गया तो लोगो ने सोशल मीडिया पर आलोचना की गयी और उन्हें “अपराधियों को बचाने वाली” कहा गया। लेकिन हमारा अँधा कानून इतना मस्त है की ज्यादातर लोग इनके इस काम को भी कानूनी दृष्टिकोण से निष्पक्ष और न्यायिक प्रक्रिया का पालन करने वाली बना सकते है ।
आईये थोड़ा उनके जीवन पर प्रकाश डालते है, जैसे कहाँ की है, क्या पढ़ाई की और क्या क्या मामले उठाये और किन किन अपराधिओं को दोषमुक्त करवा कर भारतीय न्याय व्यवस्था की सम्मान में वृध्दि की
– शिक्षा और शुरुआत: मनीषा भंडारी ने कानून की डिग्री प्राप्त की है और पढ़ाई शायद दिल्ली में ही हुयी है । उनका मुख्य कार्यालय वसंत विहार, नई दिल्ली में है (पता: B-00550/77, पूर्वी मार्ग, वसंत विहार, नई दिल्ली – 110057)। वे सुप्रीम कोर्ट में चैंबर नंबर 065 रखती हैं। इसके अलावा, वे गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) में भी प्रैक्टिस करती हैं (पता: B-903, डॉक्टर्स पार्क, वसुंधरा, सेक्टर-5, गाजियाबाद)।
– विशेषज्ञता: आपराधिक कानून, मौत की सजा के मामलों की पुष्टि (कन्फर्मेशन प्रोसीडिंग्स), जेंडर सेंसिटाइजेशन, और संवैधानिक मुद्दे। वे अमीकस क्यूरी (कोर्ट का मित्र) के रूप में कई केस लड़ चुकी हैं, जहां कोर्ट उन्हें निष्पक्ष सलाह के लिए नियुक्त करता है। वे कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ जागरूकता सत्र भी आयोजित करती हैं। उदाहरण के लिए, जनवरी 2025 में लाल बहादुर शास्त्री इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (LBSIM), दिल्ली में उन्होंने “जेंडर सेंसिटाइजेशन अगेंस्ट सेक्शुअल हैरासमेंट एट द वर्कप्लेस” पर सेशन दिया।
– संपर्क और ऑनलाइन प्रेजेंस: LinkedIn पर सक्रिय (Manisha Bhandari – Lawyer at self-employed)। कानूनी परामर्श के लिए Soolegal प्लेटफॉर्म पर लिस्टेड हैं, जहां क्लाइंट्स बुकिंग कर सकते हैं। फीस: रिपोर्ट्स के अनुसार, एक सुनवाई के लिए लाखों रुपये चार्ज करती हैं।
– अन्य भूमिकाएं: वे उत्तराखंड हाईकोर्ट में स्पेशल काउंसल के रूप में भी काम करती हैं। उनके LinkedIn प्रोफाइल से पता चलता है कि वे स्व-रोजगार वाली वकील हैं और कई वर्षों से प्रैक्टिस कर रही हैं।
मनीषा भंडारी का करियर मुख्य रूप से आपराधिक और संवैधानिक मामलों पर केंद्रित है। वे 2009 से सक्रिय हैं और कई मौत की सजा वाले केसों में अमीकस क्यूरी के रूप में काम कर चुकी हैं।
प्रमुख केस: कौन-कौन से केस लड़े और उनका विवरण
मनीषा भंडारी ने कई हाई-प्रोफाइल केस लड़े हैं, जिनमें से अधिकांश जघन्य आपराधिक हैं। नीचे उनके प्रमुख केसों की सूची दी गई है, प्रत्येक का विस्तृत विवरण, उनकी भूमिका, और परिणाम के साथ। ये केस कोर्ट रिकॉर्ड्स, समाचार रिपोर्ट्स और हालिया अपडेट्स पर आधारित हैं।
1. निठारी कांड (Nithari Killings Case, 2006):
– विवरण: नोएडा के निठारी गांव में 2006 में 19 बच्चों और युवतियों की हत्या का सनसनीखेज मामला। मानव अवशेषों की खोज के बाद CBI ने जांच की। आरोपी मोनिंदर सिंह पांढेर (व्यवसायी) और सुरेंद्र कोली (उनका नौकर) पर बलात्कार, हत्या, सबूत नष्ट करने आदि के आरोप थे। CBI ने कोली के खिलाफ 13 केस और पांढेर के खिलाफ 6 केस दर्ज किए।
– मनीषा भंडारी की भूमिका: पांढेर की वकील। उन्होंने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में दलीलें दीं कि सबूतों की कमी है, पुलिस जांच पक्षपाती थी, और कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं।
– परिणाम:
– अक्टूबर 2023 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पांढेर को 2 केसों में और कोली को 12 केसों में बरी कर दिया, मौत की सजा रद्द।
– जुलाई 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने CBI, उत्तर प्रदेश सरकार और पीड़ित परिवारों की अपीलें खारिज कर दीं। पांढेर पूरी तरह बरी, कोली एक केस में अभी जेल में।
– भंडारी ने कहा, “यह 2006 से चला आ रहा संघर्ष आज समाप्त हो गया। पांढेर परिवार के साथ वापस आ गया है।”
– विवाद: फैसले के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट के बाहर विरोध प्रदर्शन हुए। सोशल मीडिया पर भंडारी पर “तथ्यों को तोड़-मरोड़ने” का आरोप लगा।
2. कशिश हत्याकांड (Kashish Murder Case, 2014, पिथौरागढ़):
– विवरण: उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में 7 वर्षीय कशिश का बलात्कार और हत्या। आरोपी अख्तर अली पर अपराध का आरोप।
– मनीषा भंडारी की भूमिका: अली की वकील। उन्होंने दलील दी कि पुलिस ने ब्लड/सीमेन सैंपल में छेड़छाड़ की, गिरफ्तारी की कहानी झूठी थी, और गवाह (पीड़िता का चचेरा भाई) पर संदेह था।
– परिणाम: ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट ने मौत की सजा सुनाई, लेकिन सितंबर 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने सबूतों की कमी पर अली को बरी कर दिया।
– विवाद: फैसले पर भारी विरोध। X (ट्विटर) पर कई पोस्ट्स में बांधारी को “अपराधियों की पहली पसंद” कहा गया।
3. हैदर अली हत्या मामला (Haidar Ali Murder Case, 2021, हरिद्वार):
– विवरण: हरिद्वार में एक महिला की हत्या, जिसे “ISIS-स्टाइल एक्जीक्यूशन” कहा गया। आरोपी हैदर अली ने पीड़िता को घुटनों पर बिठाकर गला काटा। दो साथियों के साथ अपराध।
– मनीषा भंडारी की भूमिका: जुलाई 2025 में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने उन्हें अमीकस क्यूरी नियुक्त किया। उन्होंने मौत की सजा की पुष्टि प्रक्रिया में कोर्ट को सहायता दी।
– परिणाम: ट्रायल कोर्ट ने जून 2025 में मौत की सजा और 50,000 रुपये जुर्माना लगाया। हाईकोर्ट में प्रक्रिया चल रही है। भंडारी ने कहा, “मैंने कई मौत की सजा वाले केस अमीकस के रूप में लड़े हैं।”
4. जेलों में वकील-आरोपी बातचीत की गोपनीयता PIL (PIL on Privacy in Jails, 2018):
– विवरण: उत्तराखंड जेलों में आरोपी और वकील की बातचीत की गोपनीयता पर सवाल। कोविड-19 के बाद नियम बदले गए, जिसमें 12 फीट दूरी और खिड़की से बात करने का प्रावधान था, जो वकील-क्लाइंट प्रिविलेज (एविडेंस एक्ट सेक्शन 126) का उल्लंघन माना गया।
– मनीषा भंडारी की भूमिका: PIL दाखिल करने वाली याचिकाकर्ता। उन्होंने दलील दी कि ये बैठकें रणनीति चर्चा के लिए हैं, न कि सौजन्य कॉल।
– परिणाम: मार्च 2021 में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य को काउंटर एफिडेविट दाखिल करने का निर्देश दिया। मामला अप्रैल 2021 में आगे सुनवाई के लिए लिस्टेड।
5. डेटिंग केसों में नाबालिग लड़कों के खिलाफ भेदभाव PIL (PIL on Discrimination in Dating Cases, 2024):
– विवरण: डेटिंग के मामलों में केवल नाबालिग लड़कों को गिरफ्तार करने और दोषी ठहराने का आरोप। जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत भेदभाव का मुद्दा।
– मनीषा भंडारी की भूमिका: PIL दाखिल करने वाली। उन्होंने कहा कि लड़कियों को जवाबदेह नहीं ठहराया जाता।
– परिणाम: जुलाई 2024 में नैनीताल हाईकोर्ट ने PIL पर गंभीर नोटिस लिया। चीफ जस्टिस रितु बहरी और जस्टिस राकेश थपलियाल की बेंच ने सुनवाई की। मामला चल रहा है।
अन्य केस और भूमिकाएं
– विविध हाईकोर्ट केस: इंडियन कैनून सर्च से कई केस मिले जहां वे प्रतिनिधि या अमीकस के रूप में दिखीं, जैसे Barin Ghosh vs Ms. Manisha Bhandari (2013, उत्तराखंड हाईकोर्ट), Unknown vs Ms. Manisha Bhandari (2012-2013), और Manisha Bhandari vs State of Uttarakhand (2024, PIL No. 37 of 2018)। ये मुख्य रूप से आपराधिक और संवैधानिक हैं।
– मौत की सजा वाले अन्य केस: उन्होंने कई अनाम केसों में अमीकस क्यूरी के रूप में काम किया, जहां उन्होंने “कई मौत की सजा वाले केस” लड़ने का जिक्र किया।
विवाद और सार्वजनिक छवि
– निठारी और कशिश केसों में बरी होने के बाद भारी आलोचना। X पर पोस्ट्स में कहा गया कि वे “लाखों फीस लेकर अपराधियों को बचाती हैं“। विरोध प्रदर्शन हुए, लेकिन भंडारी ने कहा कि उनका काम निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करना है।
– जेंडर इश्यूज पर सक्रियता से उनकी छवि संतुलित है। वे कहती हैं, “न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा हूं, पक्षपात नहीं।”
– हालिया अपडेट (जुलाई 2025): निठारी केस में सुप्रीम कोर्ट फैसले के बाद राहत की सांस।
निष्कर्ष
एडवोकेट मनीषा भंडारी एक साहसी वकील हैं, जिन्होंने जटिल आपराधिक केसों में न्यायिक प्रक्रिया को मजबूत किया है। उनके केस अक्सर विवादास्पद रहे, लेकिन ये भारतीय कानून व्यवस्था की जटिलताओं को दर्शाते हैं। अगर आपको किसी विशिष्ट केस पर अधिक डिटेल या संपर्क चाहिए, तो बताएं। (सभी जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से; कानूनी सलाह के लिए सीधे संपर्क करें।)


































