भारतीय संस्कृति में गृहस्थ जीवन को सबसे महत्वपूर्ण आश्रम माना गया है। वेदों, उपनिषदों और पुराणों ने गृहस्थ को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की आधारशिला बताया है। इसमें पति और पत्नी दोनों की समान भूमिका है। हमारे शास्त्रों में पत्नी को गृहलक्ष्मी कहा गया है, और उसका सम्मान करना लक्ष्मी का ही सम्मान माना गया है।
किंतु लोकजीवन में यह मान्यता प्रचलित है कि “पति यदि पत्नी के चरण दबाए और उसकी सेवा करे, तो माता लक्ष्मी स्वयं भगवान विष्णु के साथ उस घर में स्थायी निवास करती हैं।”
क्या इसका आधार शास्त्रों में है? आइए इसका विश्लेषण करें।
1. शास्त्रीय दृष्टि से पत्नी का महत्व
- मनुस्मृति (9/26-28) में कहा गया है:
“स्त्री और पुरुष मिलकर ही धर्म का पालन कर सकते हैं। अकेला न तो पुरुष और न ही स्त्री पूर्ण धर्म का आचरण कर सकती है।”
इसका अर्थ है कि पत्नी को केवल सहचरी नहीं, बल्कि धर्म-साधना में सहधर्मिणी माना गया है। - महाभारत (अनुशासन पर्व, 146/17-18) में भी कहा गया है:
“पत्नी गृह की देवी है। उसे सदैव देवता के समान मानना चाहिए।”
यानी शास्त्रों ने पत्नी के सम्मान और सेवा को स्वयं देवत्व का सम्मान माना है।
2. लक्ष्मी और स्त्री का संबंध
- मनुस्मृति (3/56) में प्रसिद्ध श्लोक है:
“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता।”
अर्थात जहाँ स्त्रियों की पूजा और सम्मान होता है, वहाँ देवता और लक्ष्मी प्रसन्न होकर निवास करते हैं। - पद्मपुराण और लक्ष्मी तंत्र में भी उल्लेख है कि जहाँ स्त्री का अपमान होता है, वहाँ लक्ष्मी टिकती नहीं।
- इसीलिए हर भारतीय परिवार में स्त्री को “गृहलक्ष्मी” कहा जाता है।
3. विष्णु-लक्ष्मी का आदर्श
- शास्त्रों और मूर्तिशिल्प में अक्सर भगवान विष्णु को शेषशय्या पर शयन करते दिखाया जाता है, और माता लक्ष्मी उनके चरण दबाती हुई चित्रित होती हैं।
- यह दृश्य प्रतीक है सहयोग और सेवा-भाव का, जो दाम्पत्य जीवन को सुखी बनाता है।
- इसी प्रतीक को लोककथाओं ने उल्टा रूप देकर कहा कि यदि पति पत्नी की सेवा करे, तो लक्ष्मी-विष्णु दोनों उस घर में स्थायी हो जाते हैं।
4. पत्नी की सेवा = लक्ष्मी की सेवा
- पत्नी को “पतिव्रता धर्मपत्नी” कहकर पूजा गया है।
- उसका सम्मान और सेवा करना केवल मानवीय कर्तव्य नहीं, बल्कि दैवीय कृपा प्राप्त करने का माध्यम माना गया।
- यदि पति पत्नी की थकान दूर करने के लिए उसके पैर दबाता है, तो यह केवल शारीरिक सुविधा नहीं, बल्कि प्रेम, समानता और सेवा का भाव प्रकट करता है।
- यही भाव लक्ष्मी की कृपा का कारण बनता है।
5. लोकमान्यता और शास्त्र का संगम
प्रत्यक्ष शास्त्रों में कहीं नहीं लिखा कि “पति द्वारा पत्नी के पैर दबाने से लक्ष्मीजी सदा के लिए उस घर में रहती हैं।”
परंतु लोकमान्यताओं और संत-प्रवचनों ने इस भाव को प्रतीकात्मक रूप में प्रस्तुत किया है।
- शास्त्रीय सिद्धांत: जहाँ स्त्री का सम्मान और सेवा होती है, वहाँ लक्ष्मी का वास होता है।
- लोककथा का रूप: पति यदि पत्नी के चरण दबाए और उसकी सेवा करे, तो लक्ष्मी-विष्णु उस घर में स्थायी हो जाते हैं।
दोनों में भाव एक ही है – दाम्पत्य जीवन में परस्पर सेवा और सम्मान से घर में समृद्धि आती है।
6. सामाजिक और आध्यात्मिक महत्व
- समानता का संदेश – भारतीय समाज में पत्नी को केवल सेविका नहीं, बल्कि “सहधर्मिणी” कहा गया। पति का पत्नी की सेवा करना इस समानता का सुंदर उदाहरण है।
- सकारात्मक ऊर्जा – जब पति-पत्नी एक-दूसरे की देखभाल करते हैं, तो घर में प्रेम, शांति और आनंद की ऊर्जा बनी रहती है।
- लक्ष्मी का स्थायी वास – शास्त्रीय भाषा में कहा जाए तो यह केवल आर्थिक समृद्धि ही नहीं, बल्कि मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति का भी प्रतीक है।
7. निष्कर्ष
- प्रत्यक्ष श्लोक इस रूप में उपलब्ध नहीं है कि “पति यदि पत्नी के पैर दबाए तो लक्ष्मी-विष्णु सदा उस घर में रहते हैं।”
- लेकिन शास्त्र का सिद्धांत यही है कि जहाँ स्त्री का सम्मान और सेवा होती है, वहाँ लक्ष्मी का वास स्थायी होता है।
- भगवान विष्णु और लक्ष्मी का संयुक्त वास वास्तव में सुखी दाम्पत्य और समृद्ध गृहस्थ जीवन का प्रतीक है।
इसलिए, पति द्वारा पत्नी की सेवा करना केवल पारिवारिक प्रेम का कार्य नहीं, बल्कि धर्म का पालन और लक्ष्मी की आराधना है।


































