इटावा ज़िले के डंदरपुर गांव में घटित हालिया घटना, जिसमें यादव समाज के दो लोगों द्वारा ब्राह्मण बनकर भागवत कथा वाचन का प्रयास किया गया, और पहचान उजागर होने के बाद उनके साथ जो अमानवीय व्यवहार हुआ – वह पूरे समाज के लिए एक जागृत करने वाली घटना है।
मैं इस घटना को ना तो केवल भावुकता से देखता हूँ, और ना ही एकपक्षीय जातिवादी चश्मे से। मैं इसे दो स्तरों पर देखता हूँ – पहला, एक अपराध जो धोखाधड़ी के रूप में किया गया और दूसरा, प्रतिक्रिया में हुई क्रूरता जो किसी भी सभ्य समाज में स्वीकार्य नहीं हो सकती।
पहली बात – अमानवीय व्यवहार को कोई भी धार्मिक, सामाजिक या नैतिक संकल्पना सही नहीं ठहरा सकती
इसमें कोई संकोच नहीं है कि किसी के सिर का मुंडन करना, उस पर पेशाब करना, और सार्वजनिक रूप से अपमानित करना पूरी तरह से अमानवीय और निंदनीय कृत्य हैं।
ऐसी घटनाएँ केवल उस व्यक्ति को नहीं, बल्कि पूरे धर्म, समाज और देश की छवि को धूमिल करती हैं। मैं ऐसे कृत्यों की कड़ी भर्त्सना करता हूँ और यह कहता हूँ कि कानून को ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।
लेकिन यहीं पर एक और पहलू है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
दूसरी बात – भागवत कथा करना अधिकार है, लेकिन पहचान छिपाकर नहीं
धार्मिक ग्रंथों का पाठ कोई भी कर सकता है, लेकिन जब आप किसी विशेष धर्म-संप्रदाय की पहचान को ‘उधार’ लेकर उसका लाभ लेना चाहते हैं, तो वह केवल धार्मिक अपराध नहीं, आस्था और विश्वास के साथ धोखा भी है।
आप सोचिए — अगर किसी गांव में सैंकड़ों ब्राह्मण मौजूद थे, तो भागवताचार्य बाहर से क्यों बुलवाए गए?
निश्चित ही उनके पास कोई विशेष विद्वता, संयम, नियम या प्रतिष्ठा रही होगी, तभी समाज ने उन्हें बुलाने पर लाखों रुपये खर्च किए।
तो जब किसी अज्ञात व्यक्ति द्वारा उस पहचान का दुरुपयोग हुआ, और वो भी धार्मिक कार्यक्रम में, तो गुस्सा स्वाभाविक था — हालांकि, प्रतिक्रिया सीमाओं में रहनी चाहिए थी।
यादव समाज के लोग – इस बार उनका व्यवहार संदेह के घेरे में
ब्राह्मणों द्वारा किसी दौर में किया गया गलत व्यवहार (जो कि कई बार प्रतिक्रिया स्वरूप था), वो चाहे ऐतिहासिक हो या वर्तमान, उसका आज के प्रशिक्षित, सामाजिक रूप से जागरूक समाज से कोई संबंध नहीं होना चाहिए।
लेकिन अब जो कुछ यादव समाज के लोग कर रहे हैं, वह केवल अधिकार के लिए संघर्ष नहीं है, बल्कि इसमें घृणा, जबरन वर्चस्व, और जातिवादी दंभ की बू आ रही है।
कुछ सवाल:
- क्या ये सही है कि कोई व्यक्ति अपनी जाति छुपाकर धार्मिक लाभ और सम्मान प्राप्त करे?
- क्या केवल इस आधार पर कि वे “यादव” हैं, वे किसी भी धार्मिक मंच पर जबरन प्रतिष्ठा पा सकते हैं?
- और जब उनका धोखा उजागर होता है, तो पूरी जाति सड़क पर उतरकर पुलिस पर हमला करती है – क्या ये सामाजिक न्याय है या जातिगत उग्रवाद?
जब धर्म और जाति का मिश्रण जहरीला बनता है
धार्मिक आस्था पर चोट लगने पर इतिहास गवाह है कि मुस्लिम और सिख समुदायों में ऐसे मामलों में तुरंत हिंसात्मक प्रतिक्रिया होती है, कई बार हत्या तक। लेकिन सनातन धर्म के अनुयायी इतने क्रूर नहीं होते।
फिर भी — जब किसी की आस्था के साथ धोखा होता है, तो प्रतिक्रिया अवश्य आती है।
सोचने वाली बात:
आज अगर ब्राह्मण समाज आक्रोश में आकर प्रतिक्रिया देता है, तो उसे ‘सवर्ण अत्याचार’ कहकर मीडिया लांछित करता है।
लेकिन यादव समाज खुलेआम पुलिस पर पत्थरबाजी कर रहा है, क्या उसे भी वही मापदंड लागू होते हैं?
जाति अब कर्म से नहीं, जन्म से तय होती है – संविधान की हकीकत को स्वीकारें
हमें यह भी समझना होगा कि आज भारत ‘मनुस्मृति’ से नहीं, ‘संविधान’ से चलता है।
इस संविधान ने जाति को कर्म से नहीं, जन्म से निर्धारित किया है।
तो यदि कोई व्यक्ति अपनी जाति छुपाकर किसी विशेष धार्मिक जातिगत अधिकार को हथियाना चाहता है, तो यह कानूनी और नैतिक दोनों स्तरों पर गलत है।
यह धोखाधड़ी थी, न कि जातिगत अत्याचार
इस पूरी घटना को ब्राह्मण बनाम यादव की लड़ाई बनाने का प्रयास किया जा रहा है, जबकि यह एक स्पष्ट धोखाधड़ी और उस पर हुई भावनात्मक प्रतिक्रिया का मामला है।
जैसे किसी चोर को पकड़ने पर जनता नाराज़ होती है, उसी प्रकार धार्मिक धोखा करने वालों पर धार्मिक समाज का आक्रोश सामने आया।
लेकिन उस आक्रोश ने जब सीमा लांघी, तब वह अपराध बन गया।
निष्कर्ष – न्याय सबके लिए हो, लेकिन सबको अपने कर्तव्यों का पालन भी करना होगा
- ब्राह्मणों द्वारा की गई अमानवीय प्रतिक्रिया को सख़्त सजा मिलनी चाहिए।
- यादव समाज को भी यह स्वीकार करना होगा कि छल, पहचान छुपाना और जातिगत दंभ से वे कोई सम्मान नहीं कमा सकते।
- धार्मिक मंचों को पवित्र रखें, ये ना तो जातिगत झगड़े का केंद्र हैं, और ना ही पहचान बदलने का मंच।
- मीडिया और प्रशासन को इस मामले को धोखाधड़ी + धर्म का अपमान + उग्र जातिवाद – तीन स्तरों पर निष्पक्षता से देखना होगा।


































