भारत में नवबौद्ध या फिर तथाकथित आजकल अंबेडकरवादी विचारधारा के समर्थक बौद्ध मत को “वैज्ञानिक धर्म” कहकर प्रस्तुत करते हैं। वे बार-बार यह दोहराते हैं कि बौद्ध दर्शन तर्कसंगत है, उसमें मूर्ति पूजा या अंधविश्वास नहीं है। लेकिन जब हम बौद्ध धर्म के ऐतिहासिक स्रोतों, जैसे चीनी यात्रियों फाहियान और ह्वेनसांग के यात्रा-वृत्तांत पढ़ते हैं, तो यह दावा पूरी तरह ढह जाता है, ये दोनों यात्री मौर्य काल और गुप्त काल में भारत के उत्तर प्रदेश और बिहार में बहुत घूमे और उत्तर प्रदेश के जिलों और बिहार के जिलों का अवलोकन भी किया, और इन्होने अपने कुछ विवरण दिए ।

चित्र में जो श्रीलंका का मंदिर दिख रहा है — वही कंडी का प्रसिद्ध दांत स्तूप है, जहां तथागत बुद्ध के टूटे हुए दांत की आज भी पूजा होती है। यह वही दांत है जिसे चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपनी यात्रा में विस्तार से वर्णित किया है। वैज्ञानिकों के अनुसार यह दांत मानव का नहीं लगता क्युकी ये लगभग आठ इंच का है इतना लम्बा दन्त तो हांथी का ही हो सकता शायद किसी अन्य जानवर का — फिर भी इसे पवित्र अवशेष मानकर मूर्तिपूजा की जाती है।
अब ज़रा तथाकथित “वैज्ञानिक बौद्ध धर्म” की असली तस्वीर देखें — हम यहाँ ब्रजमोहनलाल वर्मा की पुस्तक “फाहियान और ह्वेनसांग की भारत यात्रा” के प्रमाणों के आधार पर कुछ अंश प्रस्तुत कर रहे हैं। ये अंश यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि बौद्ध धर्म भी जड़-पूजा, चमत्कारवाद और अवैज्ञानिक मान्यताओं से भरा हुआ था।
1. बुद्ध के टूटी हुई दाँत और पीकदान की पूजा
(पृ.10, पैरा 2)
“यहाँ बुद्धदेव की एक निशानी है – पत्थर का पीकदान और एक टूटा हुआ दांत। इस पर लोगों ने स्तूप बना दिया है। यहां लगभग 1000 भिक्षु रहते हैं।”
समीक्षा – बुद्ध का टूटा दांत और पीकदान तक पूजनीय बना दिया गया, और वही लोग हिंदू मूर्ति-पूजा को “पाखंड” कहते हैं? क्या यह अंधभक्ति नहीं?
2. स्वर्गलोक, विश्वकर्मा और चमत्कारी मैत्रेय मूर्ति
(अध्याय 7, पृ.11, पैरा 3-4)
“एक अर्हत अपनी शक्ति से ‘तुषित’ नामक स्वर्ग गया और वहां से विश्वकर्मा को साथ लाया। विश्वकर्मा ने वहां लकड़ी की मैत्रेय बुद्ध की मूर्ति बनाई, जिससे विशेष तिथियों पर प्रकाश निकलता था।”
समीक्षा – यह क्या विज्ञान है? स्वर्गलोक में मूर्ति बन रही है, और लकड़ी की मूर्ति से प्रकाश निकल रहा है! क्या वह मूर्ति रेडियम से बनी थी या ग्लिटर से रंगी गई थी?
3. बुद्ध के पाँव की “बढ़ती-घटती छाप”
(अध्याय 8, पृ.13, पंक्ति 10)
“सिंधु नदी के पास बुद्ध ने जो पैर का निशान छोड़ा था, वह जिज्ञासुओं के देखने से बढ़ता और घटता था।”
समीक्षा – क्या यह विज्ञान है या खुल्लम-खुल्ला गप्पबाजी? क्या कोई वैज्ञानिक आज ऐसा चमत्कार दिखा सकता है?
4. बुद्ध के सिर की हड्डी की पूजा
(अध्याय 12, पृ.17)
“फाहियान वहां पहुँचा जहां बुद्ध की खोपड़ी की हड्डी रखी थी। राजा और अन्य लोग फूल, सुगंध, प्रसाद आदि से उस हड्डी की पूजा करते थे।”
समीक्षा – जब बौद्ध बुद्ध की खोपड़ी और दांत की पूजा करें तो वह श्रद्धा है, लेकिन अगर हिंदू शिवलिंग या मूर्ति पर फूल चढ़ा दें तो वो अंधविश्वास कहलाता है?
निष्कर्ष: बौद्ध पाखंड की पोल खोलती यात्राएँ
राजेंद्र प्रसाद सिंह जैसे अंबेडकरवादी लेखक बार-बार फाहियान और ह्वेनसांग के लेखों का हवाला देते हैं, लेकिन यदि उन्होंने ये ग्रंथ सही मायनों में पढ़े होते, तो यह समझ जाते कि इन लेखों में बौद्ध मत के भीतर मौजूद पाखंड, मूर्ति पूजा और अंधविश्वास की पूरी पोल खुल जाती है।
अगर ये लोग त्रिपिटक में मिलावट मानते हैं, तो क्या अब ह्वेनसांग और फाहियान के लेखों को भी मिलावटी घोषित करेंगे?
धर्म को विज्ञान कहने की सनक का अंत करें
सच्चाई यह है कि बौद्ध मत में भी वही सब अंधश्रद्धा थी, जिसे हिंदू धर्म में आलोचना का कारण बनाया गया। मूर्तिपूजा, चमत्कारी कथा, स्वर्ग-नरक, पवित्र अवशेषों की पूजा — यह सब बौद्ध ग्रंथों और यात्रा विवरणों में स्पष्ट रूप से दर्ज है।
बुद्ध को वैज्ञानिक बताकर उनके नाम पर जो बौद्ध पंथ चलाया जा रहा है, वह खुद उन्हीं अंधविश्वासों में डूबा है, जिन्हें ये हिंदू धर्म का दोष बताते हैं।
पाठकगण!
यह केवल झांकी है — फाहियान और ह्वेनसांग की पुस्तकों में ऐसे अनगिनत उदाहरण मिलते हैं, जो तथाकथित “वैज्ञानिक बौद्ध मत” की हकीकत को उजागर करते हैं। क्या अब समय नहीं आ गया है कि इन खोखले दावों को छोड़कर हम सत्य की शरण, वेदों की शरण लें?


































