भारत का संविधान आज दुनिया के सबसे विस्तृत और जटिल संविधानों में गिना जाता है। लेकिन अफ़सोस, आम जनता को यह बताया गया कि इसे अकेले डॉ. भीमराव आंबेडकर ने तैयार किया। स्कूल की किताबों से लेकर राजनीतिक मंचों तक यह “एक व्यक्ति का चमत्कार” बनाकर पेश किया गया। परंतु दस्तावेज़ी सच्चाई इससे कहीं अलग है—संविधान का निर्माण एक सामूहिक बौद्धिक यात्रा थी जिसमें ब्राह्मण और सवर्ण विद्वानों से लेकर विभिन्न जातियों और धर्मों के प्रतिनिधियों ने योगदान दिया।
आइए साक्ष्यों, नामों, भाषणों और दस्तावेज़ों से समझते हैं कि असली योगदान किनका था और कैसे इसे एकतरफ़ा बना दिया गया।
1. संविधान निर्माण की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत का संविधान निर्माण 1946 में गठित संविधान सभा से शुरू हुआ। इसमें कुल 389 सदस्य थे, जो देश के सभी क्षेत्रों और समुदायों से चुने गए थे। इस सभा ने दो साल 11 महीने 18 दिन तक बहस और संशोधन कर 26 नवंबर 1949 को अंतिम रूप दिया।
यह प्रक्रिया किसी एक व्यक्ति की थी ही नहीं—
- इसमें नहरू रिपोर्ट (1928),
- सरकारी अधिनियम 1935,
- अमेरिकी, ब्रिटिश, आयरिश और कनाडाई संविधान के तत्व,
- और भारतीय समाज की विविधता का गहन अध्ययन शामिल था।
2. B.N. राव – संविधान के वास्तुकार
सर बेनेगल नारसिंह राव (B.N. Rau), एक कन्नड़ ब्राह्मण और ICS अधिकारी, संविधान निर्माण के वास्तविक सलाहकार और ड्राफ्ट निर्माता थे।
✅ राव का पद:
उन्हें 1946 में “संवैधानिक सलाहकार” नियुक्त किया गया। उनका काम था दुनियाभर के संविधानों का अध्ययन कर भारतीय संविधान की प्रारंभिक रूपरेखा तैयार करना।
✅ वैश्विक यात्रा और शोध:
राव ने अमेरिका, कनाडा, आयरलैंड, इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया। उन्होंने न्यायमूर्ति फ्रैंकफर्टर (अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट) और अन्य विशेषज्ञों से सलाह ली।
✅ राव का प्रारंभिक मसौदा:
अक्टूबर 1947 में उन्होंने 243 अनुच्छेदों वाला एक ड्राफ्ट संविधान तैयार किया, जिसमें मौलिक अधिकारों और संघीय ढाँचे की बुनियाद रखी गई।
संविधान सभा के अध्यक्ष भारत के राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने बाद में कहा:
“राव ने संविधान का ढाँचा तैयार कर हमें मजबूत नींव दी। अगर उनका योगदान न होता तो हम कई वर्षों तक शुरुआत ही नहीं कर पाते।”
3. ड्राफ्टिंग कमेटी – सामूहिक दिमागों की टोली
29 अगस्त 1947 को सात सदस्यीय ड्राफ्टिंग कमेटी बनी, जिसका अध्यक्ष डॉ. आंबेडकर को बनाया गया। इसमें ये सदस्य थे—
- डॉ. भीमराव आंबेडकर (अध्यक्ष)
- के.एम. मुन्शी – गुजराती ब्राह्मण, प्रख्यात वकील
- ऑलादी कृष्णास्वामी अय्यर – दक्षिण भारतीय विद्वान
- एन. गोपालस्वामी अय्यंगार – संविधान विशेषज्ञ
- मोहम्मद सादुल्लाह – असम से प्रतिनिधि
- बी.एल. मित्तल – कानूनी विशेषज्ञ
- डी.पी. खेतान – कानूनविद
इनमें से अधिकांश सवर्ण ब्राह्मण और विद्वान थे, जिन्होंने तकनीकी मसौदा, कानूनी भाषा और संशोधन का काम किया।
4. आंबेडकर की भूमिका – संपादन और राजनीतिक दृष्टि
यह सच है कि डॉ. आंबेडकर ने संविधान को राजनीतिक दृष्टि दी—समानता, आरक्षण और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर उनका गहरा प्रभाव रहा। लेकिन उनका कार्य मुख्यतः राव द्वारा तैयार किए गए मसौदे को संशोधित कराना, बहस में जवाब देना और उसे जनता के अनुकूल बनाना था।
डॉ. आंबेडकर ने खुद संविधान सभा में अंतिम दिन स्वीकार किया:
“जिस श्रेय को मुझे दिया जा रहा है, उसका बहुत बड़ा हिस्सा सर बी.एन. राव और ड्राफ्टिंग कमेटी के सदस्यों को जाता है। उन्होंने अथक परिश्रम किया, मैं सिर्फ उस पर अंतिम मुहर लगाने वाला व्यक्ति हूँ।”
5. सवर्ण विद्वानों का योगदान क्यों दबाया गया?
आज आम जनता को लगता है कि संविधान का सारा श्रेय सिर्फ आंबेडकर को है। इसके पीछे कई कारण हैं:
- राजनीतिक नैरेटिव – स्वतंत्रता के बाद दलित राजनीति को मज़बूत करने के लिए आंबेडकर को “एकमात्र संविधान निर्माता” कहकर पेश किया गया।
- पाठ्यपुस्तकों में एकतरफ़ा कहानी – स्कूल-कॉलेज की किताबों में B.N. राव, मुन्शी और अय्यर जैसे नाम मुश्किल से मिलते हैं।
- ब्रिटिश विरोधी विमर्श – चूँकि राव ICS अधिकारी थे और अंग्रेज़ों से जुड़े माने जाते थे, इसलिए उनका नाम कम लिया गया।
- ब्राह्मण विरोधी भावना – आज़ादी के बाद से ही ब्राह्मणों को ‘5000 साल के शोषक’ बताने का अभियान चला, ऐसे में उनका सकारात्मक योगदान दिखाना राजनीतिक रूप से सुविधाजनक नहीं था।
6. सच्चाई छिपाने का नुकसान
इस एकतरफ़ा नैरेटिव का नतीजा यह हुआ कि:
- नई पीढ़ी को लगता है कि सिर्फ एक व्यक्ति ने संविधान बनाया।
- संविधान निर्माण की असली सामूहिकता और विशेषज्ञता खो गई।
- समाज में जातिगत कटुता और बढ़ी क्योंकि ब्राह्मणों का योगदान मिटा दिया गया।
7. असली ऐतिहासिक सच क्या है?
✔️ B.N. राव ने मसौदा तैयार किया – जिसमें अनुच्छेद, मौलिक अधिकार और संघीय संरचना की नींव रखी गई।
✔️ ब्राह्मण/सवर्ण विद्वानों ने कानूनी भाषा गढ़ी – मुन्शी, अय्यर, अय्यंगार आदि ने तकनीकी परिश्रम किया।
✔️ आंबेडकर ने संपादन और सामाजिक दृष्टिकोण दिया – उन्होंने संशोधनों में जनता की बात रखी और संविधान को अंतिम रूप तक पहुँचाया।
✔️ संविधान सभा ने सामूहिक रूप से पारित किया – जिसमें सैकड़ों सदस्यों की बहस, राय और सुझाव शामिल हुए।
8. खुद आंबेडकर ने क्या कहा?
डॉ. आंबेडकर ने 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा के अंतिम भाषण में साफ कहा:
“मैं इस अवसर पर कहना चाहूँगा कि यदि हमें ऐसा सक्षम संविधान मिला है तो उसका बहुत बड़ा श्रेय B.N. राव जैसे संवैधानिक सलाहकार को है। उन्होंने वह रास्ता दिखाया जिस पर हम चले।”
यानी, जिसे आज पूरी तरह दबा दिया गया, उसे खुद आंबेडकर ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया था।
निष्कर्ष: संविधान एक सामूहिक भारतीय कृति है
भारत का संविधान न किसी एक जाति का, न किसी एक व्यक्ति का—यह सामूहिक भारतीय बुद्धिजीवियों की देन है।
- B.N. राव ने मसौदा और वैश्विक दृष्टिकोण दिया।
- मुन्शी और अय्यर जैसे ब्राह्मणों ने कानूनी भाषा और ढाँचा तैयार किया।
- आंबेडकर ने संपादन कर इसे सामाजिक न्याय के अनुरूप बनाया।
- और अंततः संविधान सभा ने इसे पारित किया।
परंतु राजनीतिक और वैचारिक कारणों से इस सामूहिकता को दबाकर एक “अकेले नायक की कथा” बना दी गई।
इतिहास को सही करना क्यों ज़रूरी है?
क्योंकि जब हम सच छिपाते हैं, तो आने वाली पीढ़ी झूठे नैरेटिव पर समाज को बाँटती है। हमें मानना होगा कि सवर्णों का योगदान सिर्फ अत्याचार में नहीं, निर्माण में भी रहा है।
👉 इसलिए संविधान को सही संदर्भ में पढ़ाना चाहिए—ताकि लोग समझें कि यह संपूर्ण भारत की बौद्धिक विरासत है, किसी एक व्यक्ति या जाति का मोनोपॉली नहीं।


































