भारत के समाज में मंदिर केवल पूजा का स्थान नहीं बल्कि आस्था, परंपरा और सामाजिक समन्वय का केंद्र होते हैं। मंदिरों के पुजारी से यह अपेक्षा की जाती है कि वह निष्पक्ष, विनम्र और सभी के प्रति समान भाव से आचरण करे। किंतु हाल के वर्षों में यह मुद्दा सामने आया है कि अगर किसी SC/ST वर्ग का व्यक्ति मंदिर का पुजारी बनता है, तो क्या इससे नए विवाद और जटिलताएँ उत्पन्न होंगी?
हाल ही में राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में घटी घटना इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। वहाँ एक दलित पुजारी ने यह आरोप लगाया कि गाँव के लोगों ने उसे पूजा करने से रोका और उस पर हमला किया। मामला सीधे SC/ST Atrocities Act के तहत दर्ज हुआ। जबकि गांव वालो का स्पस्ट कहना है की उनको दलित पुजारी से कोई दिक्कत नहीं है, दिक्कत है मंदिर में दान पेटी नहीं रखने देने से, गांव वाले चाहते है की मंदिर में दान पेटि राखी जाए जिससे दान का पैसे को जनकल्याण में खर्च किया जा सके
यह घटना छोटी लग सकती है, लेकिन इसके दीर्घकालिक प्रभाव बहुत गंभीर हो सकते हैं, तो आईये प्रकाश डालते है की अगर मंदिरो में दलित पुजारी होगा तो इससे सनातन धर्म को और इसको मानाने वालो को क्या क्या परेशानिया झेलनी पड़ेगी ।
1. SC/ST Act: आशीर्वाद या हथियार?
- SC/ST (Prevention of Atrocities) Act 1989 का मूल उद्देश्य था कि समाज में कमजोर वर्गों को सुरक्षा मिले और उनके साथ भेदभाव न हो।
- लेकिन ज़मीनी स्तर पर यह भी देखा गया है कि यह कानून एकतरफा और दुरुपयोग योग्य है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने 2018 में इस कानून के दुरुपयोग की चेतावनी दी थी और गिरफ्तारी पर तुरंत रोक लगाने का आदेश दिया था।
- अगर कोई पुजारी SC/ST वर्ग से होगा, तो उसके साथ होने वाले हर छोटे विवाद में यह कानून तुरन्त सक्रिय हो सकता है।
- उदाहरण: यदि भक्त ने दान-पेटी या पूजा-पद्धति पर आपत्ति जताई, तो पुजारी इसे जातिगत अपमान बता कर केस कर सकता है।
परिणाम: जिस भक्त पर यह आरोप लगेगा, उसका जीवन, समाज में प्रतिष्ठा और करियर तक बर्बाद हो सकता है, भले ही बाद में केस झूठा साबित हो।
2. मंदिरों में आस्था पर असर
- मंदिर में जाने वाले श्रद्धालु शांति, भक्ति और सुरक्षा की भावना लेकर जाते हैं।
- अगर पुजारी ही किसी विवाद में SC/ST Act का हथियार लेकर खड़ा हो जाए तो लोग मंदिर जाने से डरेंगे।
- खासकर छोटे कस्बों और गाँवों में लोग सोचेंगे कि “कहीं गलती से भी कुछ कह दिया तो जेल जाना पड़ेगा।”
- परिणामस्वरूप लोग मंदिर जाना ही छोड़ सकते हैं। इससे धर्म से दूरी और नास्तिकता का बढ़ना स्वाभाविक होगा।
3. समाज में और गहरी खाई
- इस प्रकार की घटनाएँ समाज में सामाजिक समरसता घटाने का काम करेंगी।
- यदि किसी मंदिर में SC/ST पुजारी विवादों में उलझा रहे तो गाँव के लोग सामान्य तौर पर कहेंगे:
“अब मंदिर में पूजा भी जातीय राजनीति में बदल गई है।”
- इससे उल्टा असर यह होगा कि लोग SC/ST वर्ग के प्रति और अधिक नकारात्मक भाव रखने लगेंगे।
- यानी, जिस वर्ग के उत्थान और सम्मान के लिए यह प्रयोग हो रहा है, वही वर्ग और अलग-थलग पड़ सकता है।
- साथ ही लोग उस मंदिर में जाना भी छोड़ देंगे जिसका पुजारी दलित होगा तब एक और आरोप लगेगा की दलितों को अछूत समझा जा रहा है उनको उपेक्षित किया जा रहा है, लेकिन कोई ये नहीं देखेगा की इसका कारन इनके ही कुकर्म है
4. राजनीति और वोट-बैंक का खेल
- दलित पुजारियों की नियुक्ति का विचार अकसर राजनीतिक प्रयोग के तौर पर आता है।
- “समाज में बराबरी लाने” के नाम पर इसे बढ़ावा दिया जाता है, लेकिन असल में इससे केवल वोट-बैंक की राजनीति साधी जाती है।
- नतीजा यह निकलता है कि मंदिर, जो आस्था का केंद्र होना चाहिए, राजनीतिक प्रयोगशाला बन जाते हैं।
5. संभावित समाधान
- पुजारियों का चयन केवल जाति पर नहीं, आचरण और विद्या पर हो – जिस व्यक्ति ने शास्त्र, पूजा-पद्धति और विनम्रता सीखी हो, वही पुजारी बने।
- SC/ST Act में सुधार जरूरी है – झूठे मामलों को तुरंत खारिज करने की व्यवस्था हो।
- समाज को शिक्षा और संवाद से जोड़ा जाए – मंदिरों को विवाद का नहीं, सामाजिक एकता का मंच बनना चाहिए।
- सरकार को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए – मंदिर प्रबंधन को भक्तों और स्थानीय समिति पर छोड़ना ही उचित होगा।
भीलवाड़ा जैसी घटनाएँ इस बात की चेतावनी हैं कि अगर केवल जातिगत राजनीति के नाम पर पुजारियों की नियुक्ति होगी, तो न सिर्फ़ मंदिरों की पवित्रता पर आंच आएगी, बल्कि हिंदू समाज के भीतर और गहरी खाई बन जाएगी।
- पहला नुकसान – लोग मंदिरों से दूर होंगे, जिससे हिंदू धर्म में आस्था कमजोर होगी।
- दूसरा नुकसान – SC/ST वर्ग के प्रति भय और घृणा दोनों ही बढ़ेंगी।
अतः मंदिरों में पुजारियों की नियुक्ति का आधार केवल शास्त्र ज्ञान, विनम्रता और सेवा-भावना होना चाहिए, न कि राजनीतिक समीकरण और जातिगत कानून।


































