हाल ही में एक दिल दहला देने वाली घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। पंजाब में एक सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर “कंचन कुमारी” (जिन्हें ‘कमल कौर भाभी’ के नाम से जाना जाता था) की बेरहमी से हत्या कर दी गई। आरोप है कि उसने कुछ धार्मिक विचारों और परंपराओं का मज़ाक उड़ाया था। लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई — अकाल तख्त के मुख्य ग्रंथी ज्ञानी मलकीत सिंह ने इस हत्या को “गलत नहीं” ठहराया, बल्कि कहा कि “जो धर्म का अपमान करें, उन्हें रोका जाना चाहिए, चाहे बल प्रयोग ही क्यों न करना पड़े।”
यह बयान सिर्फ एक हत्या का समर्थन नहीं है, बल्कि भारत के लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने पर सीधा प्रहार है। अब सवाल उठता है — क्या आज के भारत में कुछ धर्मों के लिए अभिव्यक्ति की आज़ादी है, और कुछ के लिए नहीं?
हिंदू धर्म: सबसे ज़्यादा निशाने पर, सबसे कम प्रतिक्रिया में क्यों?
- पिछले कुछ दशकों में हिंदी फिल्में, वेब सीरीज़, गीतों, कॉमेडी शोज़ और लेखों में भगवानों, ग्रंथों और परंपराओं का मज़ाक खुलेआम उड़ाया गया है।
 - तांडव, पीके, ओह माय गॉड, जैसे दर्जनों उदाहरण हैं जहाँ भगवान शिव, विष्णु, राम या ब्राह्मण परंपराओं का उपहास उड़ाया गया।
 - लेकिन क्या किसी अभिनेता, लेखक या निर्देशक को किसी हिन्दू संगठन ने गोली मारी?
❌ नहीं। विरोध हुए, कोर्ट केस हुए, लेकिन कोई हत्या नहीं हुई। 
अब ज़रा सोचिए — अगर यही मज़ाक किसी और धर्म के बारे में होता?
जब अन्य समुदाय “अपमान” पर खून बहाने से नहीं चूकते
- पैगंबर मोहम्मद के कार्टून पर फ़्रांस में शिक्षकों की हत्या हो जाती है।
 - पंजाब में धर्म के नाम पर कई बार डेराओं और नेताओं पर हमले हुए हैं।
 - अब एक महिला इन्फ्लुएंसर की हत्या महज इसलिए कर दी जाती है क्योंकि उसने कुछ शब्द कहे।
 
और दुःख की बात यह है कि कुछ धार्मिक नेता इस हत्या को न्यायसंगत ठहरा रहे हैं।
ये दोहरा मापदंड क्यों?
- हिंदू धर्म की कोई केंद्रीय अथॉरिटी नहीं है।
जैसे इस्लाम में मौलाना या सिख धर्म में अकाल तख्त है, वैसी कोई संस्था हिन्दू धर्म में नहीं जो हत्या को धर्म की रक्षा कह सके। - हिंदू समाज बहुलतावादी है।
इसमें तमाम मान्यताएं, मत, पंथ और विचारधाराएं हैं — इसलिए विरोध की सीमाएं तय हैं। - हिंदू धर्म की सहनशीलता उसे कमजोर समझा जाने लगा है।
जो धर्म सबसे पुराना है, जिसने बुद्ध, महावीर, नानक, और साईं को जन्म दिया, उसे आज हर कोई बिना डर के अपमानित करता है — क्योंकि वह “प्रतिशोध नहीं करता”। 
क्या धार्मिक आलोचना की स्वतंत्रता सबके लिए है?
यदि एक यूट्यूबर को केवल वीडियो डालने पर जान से मारा जा सकता है,
तो क्या हम वाकई “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” वाले देश में रह रहे हैं?
क्या इस स्वतंत्रता का लाभ सिर्फ उन्हीं को है
जो कुछ विशेष धर्मों को न छेड़ने की रणनीति अपनाते हैं?
हिंदू धर्म पर लिखना, फिल्म बनाना, आलोचना करना
आज “सेफ ज़ोन” बन गया है — क्योंकि कोई प्रतिक्रिया नहीं होती।
लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हिन्दू समाज को
हमेशा सहना ही चाहिए।
धर्म के नाम पर हिंसा — किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं
- क्या कोई भी समुदाय इतना असहिष्णु हो सकता है कि एक वीडियो से उसकी आस्था डगमगा जाए?
 - क्या धार्मिक नेताओं को यह अधिकार है कि वे हत्या को “धर्म रक्षा” की संज्ञा दें?
 - यदि धर्म इतना कमजोर है कि उसे वीडियो से खतरा है, तो समस्या उस धर्म में नहीं, उसके पालन में है।
 
संविधान क्या कहता है?
भारतीय संविधान में:
- Article 19: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है।
 - Article 25: धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार देता है।
लेकिन कोई भी अधिकार हत्या की अनुमति नहीं देता। 
यदि किसी को किसी कंटेंट से आपत्ति है, तो उसके लिए कानूनी रास्ते खुले हैं। पुलिस, कोर्ट, साइबर सेल — सब हैं।
हत्या, धमकी, और धार्मिक कट्टरता — ये न तो संविधान में हैं और न ही किसी धर्म के मूल में।
निष्कर्ष: सहिष्णुता की भी एक सीमा होती है
आज ज़रूरत है कि हिन्दू समाज अपनी सहनशीलता और उदारता को कमजोरी में बदलने से रोके।
- एक ओर जहाँ दूसरे समुदाय धार्मिक अपमान पर हिंसा को जायज ठहराते हैं,
 - वहीं हिन्दू समाज को शांतिपूर्ण विरोध के साथ कानूनी चेतना बढ़ानी होगी।
 
क्योंकि अगर हम यह सोचकर चुप रहेंगे कि “हमें क्या फर्क पड़ता है”, तो एक दिन हम खुद अपनी परंपराओं को खो देंगे।
अंत में एक सवाल:
क्या भारत में अभिव्यक्ति की आज़ादी सिर्फ उन धर्मों के लिए सुरक्षित है जो हिंसक प्रतिक्रिया देते हैं?
या फिर, क्या हिन्दू धर्म की सहनशीलता ही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी बन रही है जो उसके अस्तित्व के लिए खतरा है ?
			





















		    











