भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली एक आम नागरिक के जीवन को कैसे प्रभावित करती है, यह समझना बहुत जरूरी है। भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता यानी CrPC (Code of Criminal Procedure) और नई Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita (BNSS) के बीच का फर्क केवल नाम या तकनीकी शब्दों का नहीं है, बल्कि सोच, दृष्टिकोण और ‘न्याय की आत्मा’ का है।
इस लेख में हम एक संवेदनशील और जनभावनाओं से जुड़ा मुद्दा उठाते हैं: क्या भारत में न्याय की प्रक्रिया नागरिक को अपराधी मानकर शुरू होती है? और क्या BNSS में इसका समाधान है? आइए, इस गूढ़ विषय को सरल भाषा में, भावनाओं और तथ्यों के साथ समझें।
CrPC – अंग्रेज़ों की मानसिकता, भारतीयों पर थोप दी गई व्यवस्था
CrPC को ब्रिटिश शासनकाल में बनाया गया था। उस समय इसका मकसद न्याय देना नहीं, बल्कि शासन करना, काबू पाना और दमन करना था। अंग्रेजों के लिए भारत के लोग उनके दुश्मन थे, नागरिक नहीं। ऐसे में जो भी व्यक्ति कोर्ट तक पहुंचता, उसे पहले से ही अपराधी माना जाता।
- उसे हाथ में हथकड़ी लगाई जाती।
- पुलिस का रवैया होता था – “तू अपराधी है, अब खुद को निर्दोष साबित कर।”
- कोर्ट, वकील, मीडिया तक उस व्यक्ति को तिरछी नजरों से देखते थे।
CrPC की सोच यह थी:
“जो आरोपी है, वह निश्चित ही अपराधी है। अब देखना है कि उसके लिए कौन-सा सज़ा उचित है।”
यह न्याय नहीं, एक पूर्वाग्रही (prejudiced) मानसिकता है, जो नागरिक को ‘मानव’ नहीं, ‘अपराधी’ मानकर व्यवहार करती है।
BNSS – भारतीय सोच, नागरिक का सम्मान और सुरक्षा की गारंटी
Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita (BNSS) में सोच पूरी तरह से बदल दी गई है। यह संहिता नागरिक को सबसे पहले भारतीय मानती है, फिर उसे नागरिक अधिकार देती है और उसके बाद अपराध के तथ्यों को देखती है।
BNSS का मूल संदेश है:
“आप अपराधी नहीं हैं, आप भारत के नागरिक हैं। यह व्यवस्था आपकी सुरक्षा और न्याय की गारंटी देती है।”
महत्वपूर्ण विशेषताएं:
- बिना पर्याप्त सबूत के गिरफ्तारी नहीं।
- पुलिस को डिजिटल सबूत, समयसीमा और मानवीय व्यवहार की बाध्यता।
- कोर्ट में आरोपी को सम्मान से देखा जाए, न कि एक अपराधी की तरह।
- महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों के लिए संवेदनशील दृष्टिकोण।
मानसिकता का फर्क – डर बनाम विश्वास
| पहलू | CrPC | BNSS |
|---|---|---|
| मूल विचार | नागरिक पर संदेह | नागरिक पर विश्वास |
| उद्देश्य | शासन व्यवस्था | न्याय व सुरक्षा |
| व्यवहार | आरोपी = अपराधी | आरोपी = संदेहास्पद नागरिक |
| भावना | डर, दबाव, अपमान | सुरक्षा, सम्मान, आत्मविश्वास |
CrPC में न्याय देरी से और अपमान पहले से होता है। BNSS इस सोच को बदलने की कोशिश है – न्याय जल्दी और सम्मानजनक ढंग से।
एक नागरिक की पीड़ा – एक असली अनुभव
कल्पना कीजिए, आप पर झूठा आरोप लगता है। पुलिस आपको बिना जांच के उठा लेती है, मीडिया खबर चला देता है – “आप गिरफ्तार हुए।” आपकी नौकरी, समाजिक प्रतिष्ठा और आत्मसम्मान सब कुछ खत्म होने की कगार पर आ जाता है।
अब सोचिए अगर सिस्टम आपको पहले से कहे:
“आप भारत के नागरिक हैं। आपको सुना जाएगा। आपको अपमानित नहीं किया जाएगा। आपकी गरिमा बनी रहेगी।”
क्या ये एक बड़ी राहत नहीं होगी?
स्वतंत्रता का असली अर्थ – केवल कानून नहीं, दृष्टिकोण भी बदलें
हमें यह समझना होगा कि केवल कानून बदलने से समाज नहीं बदलता, सोच भी बदलनी चाहिए।
“न्याय तब तक अधूरा है, जब तक व्यक्ति को सम्मान न मिले।”
BNSS इस सोच का प्रतीक है कि अब भारतीय कानून में केवल प्रक्रिया नहीं, संवेदना भी है।
क्या बदलाव आसान है? नहीं। लेकिन जरूरी है।
हर बदलाव के सामने विरोध होता है। जो लोग CrPC के अनुसार काम करने के आदी हैं, उन्हें BNSS में नागरिकों को केंद्र में लाने की बात ‘कमजोरी’ लगेगी। मगर सच यही है कि हमारे कानून में जनता सर्वोपरि होनी चाहिए, न कि केवल प्रक्रिया।
समापन – अब समय है डर के नहीं, गरिमा के न्याय का
CrPC ने हमें एक मानसिकता दी:
“अगर आप कोर्ट में हैं, तो आप संदिग्ध हैं।”
BNSS हमें एक नई रोशनी दिखाता है:
“आप भारतीय हैं। यह देश और इसका न्याय तंत्र आपकी सुरक्षा के लिए है।”
“मैं अपराधी नहीं, एक नागरिक हूं। मैं न्याय मांगता हूं, दया नहीं।”
आइए, इस सोच को अपनाएं। CrPC के डर से बाहर निकलकर BNSS के विश्वास की ओर बढ़ें।
Disclaimer : –ये लेखक के निजी विचार एवं अन्वेषण है


































