सवर्णों के विकास की कहानी एक दिन में नहीं बनी, इसको बनने में सदिया लगी होगी, फिर ये भी सोचने वाली बात है की सवर्ण बने कैसे ? क्युकी चाहे वैज्ञानिक दृश्टिकोण से देखे या आध्यत्मिक से दोनों में ही सबसे पहले जो स्त्री पुरुष आये होंगे उन्होंने ने ही सबको पैदा किया होगा ? तो फिर भला वो क्यों भेदभाव करते ? सोचिये की आखिर दूरिया कहाँ से शुरू हुयी होंगी ?
दूरिया शुरू हुयी सोच से ! कर्म से ! नियत से जो हर मनुस्य की अलग अलग है, एक ही माता पिता से एक ही समय में जुड़वा जन्मे बच्चो का रंग, रूप, कद काठी सब समान हो सकती है, बस समान नहीं होती है तो वो है सोच, नियत और कर्म, और वास्तव में यही दुरिओ का कारण है !
कैसे ! दो बच्चो में एक बच्चा तो अपने माता पिता की बनायीं व्यवस्था में खुश है और उसको ही आगे बढ़ाने और सशक्त करने के लिए प्रयास कर्ता है और दूसरा उस व्यवस्था से नाखुश है और उसको मिटाने या बदलने का प्रयास करता है।
बस यही से दूरिया बढ़ती है, और पहले वाले के पास एक विज़न है जिसके दम पर वो तो आगे बढ़ता है, जबकि दूसरे के पास कोई विजन नहीं है सिवाय व्यवस्था खत्म करने के और इसिकर्म के कारण भृमित होकर धीरे धीरे पिछड़ने लगता है , कुंठित होने लगता है, विरोध करना शुरू कर देता है, मारकाट करता है, बनी बनाई चीजों को नष्ट करना शुरू आकर देता है।
वही पहले वाला बच्चा इनकी हरकतों और इनको इग्नोर करके आगे बढ़ता जाता है, कई बार नुकशान सहन करके फिर उठ जाता है क्युकी उसके पास विज़न है जबकि दूसरे के पास कोई विज़न नहीं है केवल विध्वसं करने के।
आज बहुत से दलित चिंतक सोशल मीडिया पर ब्राह्मण, सनातन धर्म, सनातन धर्म के महापुरुषों के प्रति अपशब्द कहते हुए नजर आते है और इनके फॉलोवर लाखो में है, एक एक वीडियो को लाखो का व्यू है, और ऐसे ये कमाई भी बहुत करते है, और अजेंडा एक ही है सवर्णो समुदाय की आस्था को ठेस पहुँचाना।
अब बात करते है की सवर्ण कौन है ?
सवर्ण वर्ग वास्तव में कोई वर्ग विशेष नहीं है, उसको आज की सरकारी व्यवस्था में सामान्य वर्ग का जंतु बना दिया, बस ये अपनी योग्यता, पुरुषार्थ और संसार के सृजनकरता भगवान के बल पर हर मुश्किल पार करके विषम से विषम परिस्थतिओं को बिना किसी पर आरोप लगाए या दोष दिए आगे बढ़ जाता है।
क्या सवर्णो को कोई विशेषाधिकार थे ?
नहीं, सवर्णो ने जो पाया अपनी योग्यता के बल पर पाया, उनकी योग्यता के कारण ही सवर्णो पर सभी का भरोषा ज्यादा रहा है, इसका सबसे बड़ा प्रमाण है की वर्तमान में लोकतान्त्रिक सरकार भी सवर्णो को कम आयु में अधिक अंक लेकर कम से कम अटेम्प्ट में देश की प्रतिस्ठित सेवा में चयनित करके सर्वोच्च पद पर जाने के योग्य समझती है वही आरक्षित वर्ग के लोग कम अंक, ज्यादा अटेम्प, अधिक आयु की छूट पाकर भी असफलता का दोष सवर्णो पर मढ़ कर खुद को निर्दोष बना लेते है
वास्तव में सवर्ण एक सोच है, जो सनातन धर्म पर आस्था रखे, किसी का बुरा न चाहे, किसी से द्वेष न करे, अपने काम में पूर्ण समर्पण रखे, बिना भेदभाव के न्याय करें, असफलता प्राप्ति पर रोष न करे किसी को दोष न दे वल्कि आत्म चिंतन और मंथन करें।
अब बात करते भेदभाव की ?
तो वास्तव में भेदभाव कहना अन्याय पूर्ण बात है, असली बात है अस्तितव की रक्षा, सवर्णो का अपना एक अस्तित्व है, जैसे बाकिओ का है, वास्तव में तकरार तो अस्तित्व की ही है, दलित वर्ग को लगा की उसका अस्तित्व नहीं है तो उसने विरोध किया और हमारा अस्तित्व नष्ट न हो जाए इसलिए हम खुद को संतुलित कर रहे है, एकजुट हो रहे है, विरोधीओ से उलझने के बजाये उनको इग्नोर कर रहे है, उनसे दूरिया बना रहे है, और दूरिया बनाने का परिणाम ये हुआ की वो इसको मार्केटिंग करके भेदभाव और छुआछूत नाम देकर सरकारी लाभ प्राप्ति के पात्र बन गए।
यानि की सरकार की तरफ से विशेषाधिकार प्राप्त कर लिया, करते है आज भी भेदभाव क्यों है ?
आप सिर्फ एकबार यूट्यूब या फेसबुक पर किसी भी अम्बेडकरवादी को लाइक कर दीजियेगा इसके बाद इन दोनों का AI सिस्टम आपको रोज कुछ न कुछ ऐसा दिखाने लगेगा की उसको देखकर आपको स्वतः ही घृणा होने लगेगी।
कोई बोलेगा की मनु धूर्त है, कोई भगवान श्री राम को हत्यारा बोलेगा, कोई तुलसी दास जी को अपशब्द कहेगा, कोई आदिगुरु शंकराचार्य को गलिया देखा, कोई तिलक को जातिवादी कहेगा, कोई आरएसएस को गुंडों का गिरोह बताएगा, ये सब आप खुद देखिएगा, मेने देखा है और उनका या उनके चैनल का नाम लेकर मुझे उनकी मार्केटिंग नहीं करनी है।
लेकिन वास्तविकता सिर्फ ये है, की आपकी विचारधारा के लोग अगर आपको मिलेंगे तभी मन मिलता है, नहीं तो दूरिया बढ़ती है, और यहाँ दो मतभेद, मनभेद, और घृणा सब स्पस्ट दिख रहा है तो आप क्यों इनके साथ बैठ कर खुद गाली सुनोगे और अपने पूर्वजो के प्रति भी अपशब्द सुनोगे, यही दूरिया का नाम संविधानिक देश में भेदभाव, छुआछूत, अस्पृश्यता जैसे शब्दों से मंडित करके सवर्णो को हांसिये पर धकेलने का पूर्ण प्रयास किया गया लेकिन योग्यता का कोई विकल्प नहीं मिला तो सवर्ण फिर से शीर्ष पर विराजमान हो गया, बस यही बात वर्ग विशेष को खटकी है इसीलिए कभी सावर्णो को यूरेशिया भेजने की बात करता है, कभी भूराबाल साफ करो की बात कर्ता है, कभी खुद को मूल निवासी घोसित करके कहता है की तिलक तराजू और तलवार इनको मारो जूता चार, अब ऐसे विचारधारा के लोगो के साथ आप सामंजस्य तभी बिठा सकते है जब अपना अस्तित्व खत्म कर दे या भूलकर उनके ही रंग में ढल जाए।
तो सच ये है की सबका अपना अपना अस्तित्व है और उसी का सबको संरक्षण करना है, आप अपना करो हम अपना करते है, बस आपको जो विशेषधिकार मिले है उनकी एक्सपायरी डेट पक्के में आने वाली है जबकि योग्यता की कोई एक्सपायरी डेट नहीं होती है, इसीलिए दूरिया है जिसको मार्केटिंग करके भेदभाव और छुआछूत नाम देकर सवर्णो के मौलिक अधिकारों तक को सिमित कर दिया गया है।
			





















		    











