भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में सिनेमा, वेब सीरीज़ और टीवी शोज़ आम जनमानस को गहराई से प्रभावित करते हैं। लेकिन पिछले कुछ दशकों में यह देखा गया है कि मनोरंजन के नाम पर बार-बार सवर्ण हिन्दू समुदाय को नकारात्मक, हिंसक, स्त्रीविरोधी, जातिवादी और शोषक के रूप में चित्रित किया गया।
इसके विपरीत, यदि किसी भी फिल्म, शो या डायलॉग में मुस्लिम समुदाय के कृत्यों या सोच पर प्रकाश डाला जाए, तो वर्ग विशेष की धार्मिक संस्थाएं, मौलाना, कट्टरपंथी गुट और राजनीतिक दल एकजुट होकर विरोध प्रदर्शन, कोर्ट केस और बैन की मांग तक पहुँच जाते हैं।
ताज़ा उदाहरण: Udaipur Files पर बवाल
हाल ही में ‘The Udaipur Files’ नामक एक फिल्म का ट्रेलर सामने आते ही जमीयत उलेमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना अरशद मदनी हाई कोर्ट पहुँच गए।
फिल्म कन्हैया लाल हत्याकांड पर आधारित है — जहाँ एक दर्जी को सिर्फ इस लिए गला काट कर मार दिया गया क्योंकि उसने नूपुर शर्मा का समर्थन किया था। हत्यारों ने वीडियो बना कर इसे ‘ईमान की जीत’ बताया और पाकिस्तान ज़िंदाबाद के नारे भी लगाए।
👉 इस हत्याकांड में दोषियों को तुरंत दिल्ली से महंगे वकील उपलब्ध करवा दिए गए — बिना किसी देरी के!
परन्तु जब यही क्रूरता, आतंक और मजहबी कट्टरता को दिखाने वाली फिल्म बनाई गई, तब वर्ग विशेष ने पूरी ताक़त के साथ विरोध शुरू कर दिया।
मनोरंजन माध्यमों में सवर्ण हिन्दुओं की नकारात्मक ब्रांडिंग
आप ध्यान दें:
फिल्म/सीरीज़ | चित्रण |
---|---|
संजू, PK, OMG, Sacred Games, Ashram, Tandav, Kaala, Adipurush, Maharani | ब्राह्मण पंडितों को ढोंगी, बलात्कारी, अत्याचारी, धर्म के नाम पर ठगने वाले |
Padmavat, Jodhaa Akbar | मुस्लिम शासकों को वीर, प्रेमी, उदार – हिन्दू राजाओं को क्रूर या कमजोर |
Article 15, Masaan | पूरे हिन्दू समाज को जातिवादी दर्शाने की कोशिश, परन्तु मुस्लिम समाज में मौजूद जेंडर और जातिगत सच्चाई पर मौन |
📍 इन फिल्मों ने एक सांस्कृतिक युद्ध को जन्म दिया है जिसमें हिन्दू समाज की अस्मिता को धीमे ज़हर से कुंद किया जा रहा है।
क्यों सवर्ण हिन्दू विरोध नहीं करता?
- अत्यधिक सहनशीलता: सनातन धर्म “वसुधैव कुटुम्बकम्” और “सर्वे भवन्तु सुखिनः” की भावना को अपनाता है, इसलिए हिंसक विरोध या रोष की परंपरा नहीं रखता।
- संघठित नहीं हैं: न ब्राह्मण, न ठाकुर, न बनिया समाज का कोई अखिल भारतीय संगठन ऐसा है जो फौरन कोर्ट या मीडिया में प्रतिक्रिया देता है।
- बौद्धिक वर्ग की चुप्पी: IIT, IIM, UPSC में सफल ब्राह्मण या सवर्ण युवा अपने समाज की छवि पर बन रही कालिख को अक्सर “freedom of expression” कहकर नज़रंदाज़ कर देते हैं।
- राजनीतिक संरक्षण का अभाव: इनके हित में कोई राजनीतिक दल संगठित विरोध नहीं करता, उलटे इन पर ही “सामंती”, “ब्राह्मणवादी”, “मनुवादी” जैसे विशेषण लगाए जाते हैं।
वर्ग विशेष की रणनीति:
- जो सच बोले उसे “इस्लामोफोबिक” कहो, कोर्ट में घसीटो, FIR करवाओ
- जिहाद, तीन तलाक, हलाला, कट्टरता दिखाने वाली हर फिल्म का विरोध
- हर मुस्लिम किरदार को पीड़ित या मजलूम दिखाना, भले वो आतंकवादी क्यों न हो
🛑 यही कारण है कि ‘The Kerala Story’, ‘Lipstick under my Burkha’, ‘Haider’, ‘Mumbai Attacks’, या अब ‘Udaipur Files’ जैसे फिल्मों पर बवाल होता है।
कुछ आंकड़े:
- 2022: The Kashmir Files को भी “प्रोपेगैंडा” कहकर बदनाम करने की कोशिश हुई
- 2023: Kerala Story पर पूरे देश में हिंसा और प्रदर्शन हुए, पश्चिम बंगाल में बैन
- 2024: Bheed, Jogi, Shaheen Bagh docs जैसी फिल्मों में CAA विरोध को जायज ठहराया गया
निष्कर्ष
यह मनोरंजन नहीं, एक सुनियोजित डिजिटल-सांस्कृतिक आक्रमण है। जहाँ एक ओर सवर्ण हिन्दू समाज लगातार निशाना बन रहा है — मनोरंजन, लेखन, साहित्य और समाचार के माध्यम से — वहीं दूसरी ओर वर्ग विशेष अपने धार्मिक-पहचान की रक्षा के लिए चौकस और एकजुट है।
👉 समय आ गया है कि ब्राह्मण, ठाकुर, बनिया समाज भी बौद्धिक रूप से सजग, कानूनी रूप से सक्रिय और सांस्कृतिक रूप से आत्मरक्षी हो।
👉 मनोरंजन की आड़ में हिन्दू विरोध को Entertainment नहीं, Indoctrination समझा जाए।