साबरमती एक्सप्रेस में जब आग लगी जिसमे लगभग तीन सौ से ज्यादा लोग मारे गए, और उसी घटना से आक्रोशित होकर गुजरात में एक वर्ग दूसरे वर्ग के विरुद्ध भड़क गया, क्युकी घटना गुजरात में हुयी थी तो एक वर्ग ने मान लिया की बिना दूसरे वर्ग के सहयोग के इतनी बड़ी घटना को अंजाम देना मुश्किल है, और देखते ही देखते दोनों वर्ग एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए, और मच गया रक्तपात।
इसी में एक ऐसी घटना पर अचानक से पुरे देश का ध्यान मीडिया ने आकर्षित किया, मै व्यक्तिगत तौर पर नहीं कह सकता है ये एकमात्र घटना घटी होगी जी एक वर्ग ने दूसरे वर्ग के साथ की होगी, ऐसी न जाने कितनी घटना उसी दौरान दूसरे वर्ग ने पहले वर्ग के साथ जरूर की होगी लेकिन शायद उनको केस करने और मुकदमा लड़ने के लिए जिन्दा ही न छोड़ा हो, लेकिन मीडिया में गुजरात दंगे और इस घटना को आज तक जीवंत रखा गया लेकिन इससे भू दुर्दांत घटना जो कश्मीर में घटी उसको ऐसे नजरंदाज किया गया जैसे वो हुयी ही नहीं हो।
मेरा व्यक्तिगत उद्देश्य किसी एक वर्ग के साथ बुरा कर्म हुआ तो उसको सही या दूसरे के साथ हुआ तो उसको गलत बताने का नहीं है वल्कि दोनों में से किसी के साथ हुआ है तो वो गलत हुआ है तो दोशिये को न्याय सांगत दंड मिलना ही चाहिए

































