उत्तर प्रदेश के आगरा में अपने शहर में ऐसे कई सजग प्रहरी हैं, जिन्होंने हरियाली से दोस्ती की और हवा की सेहत सुधारने में सहयोगी बने। जरूरत पड़ी तो कानून का सहारा भी लिया। इनका मानना है कि खुद से शुरूआत करनी होगी। हरियाली के लिए जरूरी नहीं कि पार्क और खेत हों। गली-कूचे, डिवाइडर, रोड, खाली जमीन पर पौधे लगाकर धरा को हरा-भरा किया जा सकता है।आईएमए के पूर्व अध्यक्ष डॉ. शरद गुप्ता हरियाली बचाने के लिए कानूनी जंग भी लड़ रहे हैं। उन्होंने बताया कि डॉक्टर के नाते सेहत के लिए पर्यावरण की महत्ता समझता हूं। वन विभाग ने 2018 में कीठम के क्षेत्र को 400 हेक्टेयर दर्शा दिया, जबकि इसका क्षेत्रफल 800 हेक्टेयर था। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गए और ब्रिटिश हुकूमत के समय के दस्तावेज प्रस्तुत किए। कोर्ट ने बीते साल सितंबर में 800 हेक्टेयर क्षेत्रफल बरकरार रखने का आदेश दिया। अभी यमुना के जंगल में हो रहे अवैध खनन के खिलाफ कोर्ट में लड़ाई लड़ रहे हैं। सदर बाजार थाना क्षेत्र निवासी संदीप अग्रवाल खाली पड़े ट्री गार्ड में पीपल, बरगद, नीम, पाखर के पौधे लगा रहे हैं। पौधों को सहारा देने के लिए श्मशान घाट में शवदाह से बचे बांसों का भी उपयोग कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि 9 साल में करीब 2000 पौधे लगाए। उनमें से चंद ही बचे। मैंने सोचा ऐसे पौधरोपण से कोई लाभ नहीं। ऑक्सीजन देने वाले पौधे लगाना शुरू किया। टैंकर से पानी भी देते हैं। 3 साल में 630 पौधे लगाए हैं, जो सुरक्षित हैं। साकेत कॉलोनी निवासी वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. अनुपमा शर्मा के घर, अस्पताल के पास टूटे-फूटे डिवाइडर को हरा-भरा कर दिया। बताया कि बेटे के जन्म पर सड़क के डिवाइडर पर पांच पौधे लगाए, जो अब बड़े हो गए हैं। घर के सामने डिवाइडर पर लोग कचरा और बचा भोजन फेंक जाते, इससे गंदगी होती थी। स्विटरजलैंड में डिवाइडर पर हरियाली देखी तो लौटकर यहां भी डिवाइडर साफ करवाकर पौधे लगाए।