यह लेख वास्तव में वर्तमान और पहले जानकारी के आधार पर लिखा गया है, और इसका उद्देश्य नागरिकों को जागरूक करना है कि मणिपुर राज्य में होने वाले कुकी और मेइती समाज के झगड़ों के पीछे के कारणों को समझने की जरूरत है। इस लेख का मुख्य उद्देश्य नफरत या विवाद को बढ़ावा देना नहीं है।
मणिपुर का परिचय:
मणिपुर एक पूर्वी भारतीय राज्य है, जिसमें विभिन्न जनजातियां लगभग तेरह से ज्यादा है और समाजिक समूह बारहवीं शताब्दी से ही रह रहे हैं। इस राज्य में दो मुख्य समाजिक समूह हैं – कुकी (Kuki) और मेइती (Meitei)। कुकी लोग प्राकृतिक रूप से पहाड़ी क्षेत्रों में निवास करते हैं, जबकि मेइती लोग घने अधिकांशत: घनीभूत सुरम्य क्षेत्रों में बसे हुए हैं। ये दो समाजिक समूह भाषा, संस्कृति, और परंपराओं में भिन्न हैं।
मणिपुर में तनाव का मूल कारण :
मणिपुर के जिलो में पिछले कई वर्षो से आर्म्ड फ़ोर्स स्पेशल प्रोटेक्सन एक्ट लगा हुआ था जिसके कारन वहा का तनाव नियंत्रण में था, लेकिन बहुत से सामाजिक और मानवाधिकार संगठनों के प्रयासों से भारत सरकार ने इसको हटा दिया, लेकिन इसके हटते ही जनजातिओ के मध्य स्वार्थ का युद्ध शुरू हो गया, मैतई समाज दसको से सरकार से मांग कर रहा है की उसे भी अनुसूचित जनजाति की मान्यता दी जाए क्युकी इसके अलाबा जितनी भी जातिया है सभी को विशेष भौगोलिक स्थिति होने के कारण यह मान्यता मिली हुयी है।
उच्च न्यायालय का निर्णय और द्वेष का जन्म :
कुछ दिनों पहले मैतेयी समाज की मांग पर उच्च न्यायालय ने राज्य को आदेश दिया की वो भारत सरकार को मैतई समुदाय के अनुसूचित जनजाति की मान्यता के लिए अपनी अनुशंसा भेजे, और इसी बात से कुकी समुदाय जो वर्षो से अनुसूचित जनजाति का सबसे ज्यादा लाभ ले रहा था द्वेष में भर गया और परिणति हुयी की इस समुदाय को ST की मान्यता न दी जाए और बात यहाँ तक आ गयी की कुकी समाज के लोग धरने पर बैठ गए बैनर लेकर की सेना और अर्धसैनिक बालो से मैतई समाज के अधिकारिओ को हटाया जाय, क्या ऐसा कहना देश की सैन्य बलो पर पक्षपात करने का आरोप लगाना नहीं है ?
क्या सैन्य बल जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव करते है :
जैसा की कुकी समुदाय के लोगो की मांग थी की मैतई समुदाय के अधिकारिओ को सैन्य बलो से हटाया जाय तो क्या ये मांग कही न कहि ये इंगित नहीं कर रही है की एक समाज के लोग देश के नागरिको के साथ जाति और धर्म के नाम पर भेदभाव करती है ? क्या ऐसे आरोप सेना पर लगने चाहिए ? इसका उत्तर क्या होना चाहिए ये मै पाठको पर ही छोड़ता हूँ।
क्या किसी को वर्ग विशेष की मान्यता का विरोध होना चाहिए :
जब देश स्वतंत्र हुआ और संविधान लागू हुआ तो कुछ वर्गों को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जन जाति का दर्जा देकर उनको एक विशेष मान्यता देकर बहुत सी छूट और सुविधाएं दी गयी, उस समय विचार शायद ये रहा होगा की भारत एक भव्य विरासत का देश है, यहाँ के लोग निस्वार्थ और ईमानदार है, जरूरत भर लेने के बाद त्याग में विस्वास रखते है, लेकिन हमारे समाज विज्ञानिओ को इन मान्यताओं के साथ यहाँ के निवासिओं के स्वार्थ, द्वेष, घृणा, लालच का भी आंकलन करना चाहिए था, आज स्वतन्त्रता के सत्तर सालो के बाद भी पीढ़ी दर पीढ़ी सुविधाएं लेने का बाद भी कोई स्वेक्षा से त्यागने को तैयार नहीं है, वल्कि इसको अपनी जागीर समझ कर बैठे है और अगर सरकार या कोर्ट किसी दूसरे जरूरतमंद को ऐसी सुविधाएं देना चाहती है तो उग्र प्रदर्शन और हिंसा रक्त पात करके विरोध करती है, क्या यही संवैधानिक लोकतंत्र का सामजवाद है ? की हम ही बढे और कोई न बढे और हमे हमेशा दवा कुचला शोषित मान कर सभी सुविधाएं देते रहो भले ही हम सक्षम हो जाए ? ऐसे तो प्रस्तावना का अर्थ ही खत्म हो जायेगा जिसमे आपसी वंधुता और राष्ट्र के एकता अखंडता बनाये रखने की बात की गयी है।
अन्य कारण:
मणिपुर में कुकी और मेइती समाज के बीच झगड़े के पीछे कई कारण हो सकते हैं। नीचे कुछ मुख्य कारणों को विस्तार से समझाया गया है:
संसाधनों का संघर्ष: मणिपुर राज्य अपने प्राकृतिक सौंदर्य और धरोहर के लिए प्रसिद्ध है। संसाधनों का वितरण और पहुंच एक अभियांत्रिकी और राजनीतिक मुद्दा हो सकता है, जिससे समाजों के बीच झगड़े हो सकते हैं, कुकी समुदाय जिसके पास सबसे ज्यादा प्राकृतिक संस्धान है जबकि मैतई समुदाय के पास कम है, जबकि जनसंख्या का अनुपात ज्यादा है, जनसंख्या में कुकी और मैतई 30 : 60 जबकि संसाधनों में 60 और 30 है , दस बाकी के लिए ।
सामाजिक आदर्शों का भिन्नता: कुकी और मेइती समाजों में विभिन्न सामाजिक आदर्श होते हैं, जैसे वर्णाश्रम व्यवस्था, शिक्षा, विवाह पद्धति आदि। ये भिन्नताएँ समाजों के बीच विवादों के लिए एक कारण बन सकती हैं।
सीमांतरीय विवाद: मणिपुर राज्य के सीमांतरीय क्षेत्रों में भू-संघर्ष, भू-धरोहर के मामले, आर्थिक समस्याएं, और राजनीतिक मुद्दे देखे जा सकते हैं, जिससे झगड़े हो सकते हैं।
राजनीतिक मुद्दे: राजनीतिक मुद्दे भी कुकी और मेइती समाज के बीच तनाव पैदा कर सकते हैं। शक्ति और सत्ता का प्रतिस्पर्धी अनुभव राजनीतिक विवादों को बढ़ा सकता है।
समाधान:
इन विवादों का समाधान करने के लिए संबंधित सरकारी अधिकारियों, समाजिक नेताओं, और अन्य संगठनों को मध्यस्थता करने की जरूरत है। समाज के नेता और व्यक्ति समाधान की तलाश करने के लिए संवाद को बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं और दोनों समाजों को समझौते और सभ्य संबंधों की ओर आगे बढ़ने में सहायता कर सकते हैं। धार्मिक, सांस्कृतिक, और राजनीतिक धाराएं दोनों समाजों के बीच समझौते के लिए महत्वपूर्ण हो सकती हैं।
कुकी और मेइती समाज के बीच विवाद एक दूसरे को समझने, समझौते करने और सामाजिक विश्वास को बढ़ाने की जरूरत है। एकदिवसीय समाजों के बीच शांति और सद्भाव के वातावरण में ही राज्य के विकास और प्रगति का मार्ग साफ हो सकता है। एकदिवसीय समाजों को एक साथ आगे बढ़कर मिलजुल कर समस्याओं का सामना करना और समाधान निकालना हम सभी की जिम्मेदारी है