अक्सर जब भी जातिगत आरक्षण हटाने की बात की जाती है तो जाति के नाम पर आरक्षण लेने वाले कहते है की पहले भेदभाव खत्म करो फिर बात करना, अब समस्या ये है की जाति के नाम पर आरक्षण लेने वाले खुद भेदभाव खत्म नहीं होने देते है, उनके कुछ काम है जो दूरिया हमेशा बनाये रखेगी :
१- धर्मग्रंथो का अपमान – माना की वो आपकी समझ के परे है लेकिन इसका मतलब ये नहीं की जिनको समझ आता है आप उनको मुर्ख समझो, चलो मान लिया की आप विद्वान हो जो उनको मिथ्या मानते हो तो फिर ये भी मान लो की आप उतने गए गुजरे नहीं हो जितना सोच कर सरकार ने आरक्षण दिया था, आप कड़वा बोलना बंद नहीं करना चाहते और सोचते हो की एक अन्य वर्ग जिसके मानक इतने ऊँचे है वो आपको अपने समक्ष सम्मान दे ! ऐसा कैसे होगा ?
२- महापुरषो का अपमान – हम सवर्ण वर्ग भगवान राम, कृष्ण, और गुरु द्रोणाचार्य का भी सम्मान करते है, लेकिन आपकी नजर में वो बुरे है ! क्यों ? क्युकी एक ने सम्भुक मारा और दूसरे ने एकलव्य, अब आपकी ये जांनने की बौद्धिक क्षमता तो होगी नहीं की क्यों मारा ? क्या कारण रहे होंगे की शबरी माता के पैर छूने वाले भगवान राम ने सम्भुक को मारा या फिर एक मगरमच्छ का भी खून बहाये बिना अपना पैर अर्जुन से निकलवाने वाले द्रोणाचार्य किसी शिस्य का अंगूठा क्यों कटवाते, अब ये तो आपकी समझ के परे है की जो व्यक्ति निरीह कुत्ते का मुँह बाणों से भर दे वो कितना निर्दयी होगा और रणभूमि में बजाये शत्रुओ को मारने के सिर्फ पशुओ को ही मारेगा।
३- मनुस्मृति का अपमान – मनुस्मृति शायद ही किसी ने सही से पढ़ी और समझी हो, लेकिन सिर्फ शब्दों के अर्थ भर कर लेना समझना नहीं होता है, समझेंगे आप वही जो आपके मन में, मनुस्मृति हो या किसी और महापुरुष की स्मृति हो सभी ने गुण और कर्म के अनुसार वर्गीकरण की बात की है, लेकिन जब भी आप एक वर्ग से दूसरे वर्ग में जाते है आपको एक्स्ट्रा मेहनत तो करनी ही पड़ेगी और हो सकता है आपके अपने ही आपको रोकने लगे।
४- सिर्फ एक ही व्यक्ति का ही गुणगान करना – एक बात सत्य और इसे मानना भी पड़ेगा आपको की चन्द्रगुप्त मौर्य क्षत्रिय नहीं थे वल्कि मुरा नाम की दासी के पुत्र थे, दासी का मतलब किसी दास की पत्नी यानि की सेवक वर्ग जिसे शूद्र संज्ञा दी गयी थे और चाणक्य थे विशुद्ध ब्राह्मण, जबकि धनानंद क्या था ये अभी तक उपलब्ध साक्ष्यो के आधार पर कहा नहीं जा सकता है, लेकिन साम्रज्य के लिए चाणक्य ने चद्रगुप्त को चुना क्युकी गुणों में वो क्षत्रिय था, और आज के परिवेश में सिर्फ शूद्र ही बना रहता।
अब अगर ईमानदारी से देखा जाए तो आरक्षण को जाति गत आधार पर लेने वालो को चाणक्य को अपना पूज्य मानना चाहिए जिसने गुणों को देखकर आगे बढ़ाया, इसके बाद भी बहुत से महापुरष हुए जिन्होंने सर्व जन हिताये की बाते की, लेकिन आप जातिवादी लोगो को वो पसंद आये जिनके विचारो में इतना विकार था और जो आपकी जाति के थे।
५- स्वार्थवश झूठे मुकदमे करना – एक शिकायत ये रहती है की सवर्ण समाज हमसे दुरी क्यों बनाये है, हमारे साथ रोटी बेटी का संबंध नहीं रखता है, तो उसका कारण सिर्फ इतना है की ये वो अपनी आत्मरक्षा के लिए करते है, बिलकुल सही सुना आपने, आपस में बात चीत होगी और कहि आपने उल्टा सीधा बोला तो कुछ नहीं लेकिन हमने कुछ बोल दिया तो केस कर डोगे बस यही डर उनको आपसे दूर रखता है, और हर रोज झूठे मुकदमे का सच सुनंने को भी मिल जाता है।
आरक्षण बुरा नहीं अगर एकबार लेने के बाद लेने वाला सामन्य वर्ग में आ जाये और वो आरक्षण दूसरे जरूरतमंद के लिए छोड़ दे जिससे वो भी लेकर सामान्य वर्ग में आ जाये और एक समय ऐसा आये की हर भारतीय सामान्य वर्ग में आजयेगा, लेकिन लालच, द्वेष और घृणा आपको ऐसा करने नहीं देती और नतीजा अनजान्ने में आप भी खुद सबल होते जा रहे हो जाबकी आपके वर्ग का एक जरूरत मंद व्यक्ति आरक्षण की आस लगाए हुए पूरी जिंदगी घुट घुट कर जीता है, अरे आप छोड़ेगे तब तो दूसरे को मिलेगा।
मूल भाव ये है की जब तक आप द्वेष और घृणा नहीं छोड़ेगे कोई भी आपसे अलग सोच वाला व्यक्ति आपसे मेल मिलाप नहीं करेगा, अब इसे आप जातिगत भेदभाव कह सकते हो लेकिन वास्तव में ये आत्मोन्नति और आत्मरक्षा के लिए उठाया गया एक शांतिप्रिय कदम है।