कुछ वामपंथी विचारधारा के लोगो का मत है की जैसे ही चुनाव आते है एक पार्टी हिन्दू मुस्लिम, मंदिर मस्जिद का मुद्दा उठाने लगती है, जबकि इन मुद्दों से सामान्य जनता के दैनिक जीवन में कोई प्रभाव नहीं पड़ता है,जनता पर प्रभाव पड़ता है रोजगार से, शिक्षा और चिकित्सा के साथ साथ सुरक्षा से, लेकिन ये वामपंथी लोगो का कोई नैतिक चरित्र नहीं है, इनको सत्ता की नजदीकियां मिलती रहे तो ये बहुत खुश रहते है लेकिन जैसे ही सत्ता से दूरिया होती है ये सत्ता में जो भी होता है उसकी बुराई शुरू कर देते है।
भारत में सीएए का क्या उपयोग है?
ऐसा ही एक मुद्दा आजकल ये तथाकथित सेकुलर विद्वान उठा रहे है और वो है CAA का यानि कि सिटिजनशिप संशोधन कानून (CAA), ये वास्तव में वर्तमान भारत की राजनीति और समाज में एक महत्वपूर्ण विषय है। इसका उद्देश्य भारत में अनुभूत धर्मनिरपेक्षता को सुनिश्चित करना है और धर्म, भाषा और उपनिवेश आधारित अल्पसंख्यक समुदायों को जो भारत के तीन पड़ोसी इस्लामिक देशो में रहते है उनको आसानी से नागरिकता प्राप्ति की सुविधा प्रदान करना है।
CAA को भारतीय संविधान के तहत वर्ष 2019 में पारित किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य था कि भारत के पडोसी देशो में अल्पसंख्यक धर्मिक परिवारों को विभिन्न कारणों से उस देश से भागना पड़ा हो, उन्हें संरक्षण प्रदान किया जाए। CAA के तहत, भारत में 2014 तक आए धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता दी जाएगी, जो पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, और बांग्लादेश से भारत आये हैं, अगर वे नागरिकता के लिए पात्र हों।
CAA का विरोध क्यों है?
CAA के बारे में जानबूझकर विवाद उठाया गया है, क्योंकि कुछ लोग जिनकी राजनैतिक रोटीआं धार्मिक द्वेष और आपसे वैमन्सयता से ही चलती है वही मानते हैं कि इससे भारत में धार्मिक विवाद बढ़ सकता है बढ़ क्या सकता है वही हवा देकर इसका हौआ बना रहे है, और इसे लेकर भारतीय राजनीति में विभाजन करके इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए और कई स्थानों पर उलटे प्रदर्शन होते रहे।
इन फालतू के विवाद के मध्य में, अनेक राज्यों ने CAA को लेकर विरोध जताया है क्युकी वो तुस्टीकरण की राजनीती से ग्रसित है और एक वर्ग विशेष की नाराजगी से बहुत डरते जबकि कुछ राज्य जो नैतिक और आदर्शो पर चलते है उन्होंने इसे लागू करने की घोषणा भी की। उधारण के लिए, केरला, पंजाब, राजस्थान और वेस्ट बंगाल के मुख्यमंत्रियों ने एक समुदाय विशेष से डरकर CAA को अपने राज्यों में लागू नहीं करने की घोषणा की।
जबकि अगर हम नैतिक मूल्यों पर ध्यान दे तो पाएंगे की CAA के पक्ष में सबसे बड़ा तथ्य यह है कि यह असहाय धार्मिक अल्पसंख्याओं को मदद प्रदान करने का प्रयास है और उन्हें भारतीय समाज के एक हिस्से के रूप में स्वागत किया जाए। इसके अलावा, समर्थक यह भी दावा करते हैं कि यह केवल नागरिकता के प्राप्ति के लिए मानक होना चाहिए, धार्मिकता के आधार पर नहीं लेकिन मज़बूरी ये है जब तीन कट्टर इस्लामिक देश से अगर कोई इस्लाम को मानने वाला दुखी होकर आएगा तो वो कैसे यहाँ सुखी रहेगा जब उसको कट्टर इस्लामिक देश में शन्ति नहीं मिली ? इसीलिए इन कट्टर इस्लामिक देशो से धार्मिक अल्पंसख्यक वर्ग का ही स्वागत है ।
क्या सीएए भारतीय मुसलमानों को प्रभावित करता है?
अब कूप मंडूक विपक्षी एकतरफ खड़े है और CAA को लेकर लगातार विरोध किये जा रहे है और आरोप है इसके उद्देश्य को लेकर है, और वह मानते हैं कि यह विशेष धार्मिक समुदायों को लेकर भेदभाव का संदेश दे सकता है लेकिन प्र्शन ये है की किस समुदाय को लेकर ? जब इस्लामिक देश से कोई इस्लामिक भगाया या प्रताड़ित ही नहीं किया जायेगा तो उसकी नागरिकता का तो मामला ही नहीं, इनको दिक्कत सिर्फ एक वर्ग विशेष के तुस्टीकरण से है न की मानव मूल्यों और नैतिकता है। वे यह भी कहते हैं कि यह विवाद का बढ़ावा कर सकता है और धार्मिक संघर्षों को उत्पन्न कर सकता है, लेकिन हम पूछते है क्यों करेगा ?।
आखिरकार वामपंथी लोग अपनी चाल में सफल होते नजर आ रहे है और उन्होंने जानबूझकर CAA को एक महत्वपूर्ण राजनीतिक मुद्दा बना दिया है जो भारतीय समाज में एक गहरे एवं विषैले विभाजन का कारण बनता जा है। इसके प्रति लोगों की धारणाएँ और विचारों में बहुत ही क्रूरतम विभिन्नता है, और सरकार को इसे संभालकर उचित समाधान निकालने की आवश्यकता है।