वर्गीकरण वास्तव में मानसिकता के आधार पर मानवीय भेदभाव का ही एक रूप है। पहले हम भेदभाव का मनोविज्ञान समझते हैं या कोशिश करते है ।
मानसिक भेदभाव – एक मां अपने बच्चे की विष्टा को तो साफ कर सकती है लेकिन यदि उसे किसी दूसरे के बच्चे की विष्टा साफ करने के लिए कह दिया जाए तो वह नहीं करेगी, क्युकी अपनापन और परायापन है । एक गऊओं के झुंड में बछड़े अपनी मां को पहचान लेते हैं, लेकिन यदि वे गलती से किसी दूसरी गाय को पास चले भी जाएं तो गाय मां उन्हें लात मारकर भगा देती है। वह केवल अपने पैदा किए हुए बछड़े को ही अपनी पास दूध पीने के लिए आने देती है यह आप जाँच सकते है । एक पिता जो बरसो से अपने बच्चों को पाल रहा होता है लेकिन उसे एक दिन पता चलता है कि ये बच्चे उसके नहीं हैं तो वे तुरंत उनसे नफरत करने लगता है ऐसा कैसे । कितने पुरुष हैं जो किसी दूसरे पुरुषों से हुए बच्चों को अपना मानते हैं और कितनी माताएं हैं जो दूसरों के बच्चों को अपना मान सकती हैं ये एक अध्ययन का विषय है ।
लाखों जोड़े बच्चों के लिए तरस रहे हैं और डाक्टरों के पास जाकर लाखों रुपए खर्च रहे हैं लेकिन वे किसी दूसरे का बच्चा गोद लेना नहीं चाहते। विश्व में करोड़ों अनाथ बच्चे हैं जिनको माता-पिता की जरूरत है लेकिन अपनापन तो अपने से ही होगा ।
रंग भेदभाव – आप दक्षिण भारत के किसी भी 5 या सात सितारा होटल में चले जाएं आपको वहां गोरे या गेहुंए रंग की महिलाएं ही काम करती नजर आएंगी, श्याम वर्ण की महिलाओं को नहीं रखा जाता क्यों ? बालीवुड में काले रंग की हीरोइनों को लेप लगाकर गोरा करके पेश किया जाता है। काले रंग की लड़कियों की शादी नहीं हो पाती क्योंकि लड़के वाले गोरा रंग चाहते हैं, वैसे बेरोजगार लड़के की भी शादी नहीं होती भले ही कितना भी सुन्दर हो जबकि काले रंग की सरकारी नौकरी वाली लड़की या लड़के दोनों की शादी सुन्दर जीवनसाथी से हो जाती है । रंग गोरा करने वाली क्रीमों का व्यवसाय भारत में 10 अरब से ऊपर का है। अमेरिका में 100 साल पहले तक कालों को गुलाम बना कर रखा जाता था, उन्हें कोई वोट का अधिकार नहीं था और जानवरों की तरह उनकी खरीद-बेच होती थी और हम सोचते है की अमेरिका बहुत एडवांस देश है ।
क्षेत्रवाद या देशांतर भेदभाव – अमेरिका में गोरों के स्कूल में एशियाई बच्चों से भेदभाव किया जाता है। एक एशियाई जो अपने बच्चे को लेने रोज स्कूल जाती है, बताती है कि गोरों के बच्चों को तो गोरी क्लास टीचर स्वयं बाहर छोड़ने जाती है और इनके अभिभावकों से हंस कर बात करती है लेकिन कालों के बच्चों के साथ वह ऐसा नहीं करती और न ही उनके अभिभावकों से अच्छी तरह पेश आती है। गोरे को नौकरी के दौरान सीट दी जाती है लेकिन यदि वही काला काम करता है तो उसे खड़े रहकर अपना सिक्योरिटी का काम करना पड़ता है, इसमें भले ही कम सत्ययता हो लेकिन काफी हद तक ये सत्य है ।
बाहुबल या धनवल का वाद – भारत में भी बहुत से जमींदार दूसरे प्रदेशों से लाए गए मजदूरों को पशुओं के बाड़े में सोने को देेता है, 24 घंटे काम करवाता है और उनको जातिसूचक शब्दों से प्रताड़ित करता है। कई बार तो चोरी व व्यभचार आदि के आरोप लगाकर उनकी हत्या कर दी जाती है। गरीब होने के कारण उनका कोई पक्ष नहीं लेता और पुलिस में मामले को ठंडे बस्ते में डाल देती है। नेपाल से आई लड़की शादियों में नाचकर अपना गुजारा करती है। एक शादी के दौरान उसे शराबी लड़के उठा ले जाते हैं और रेप करके मार देते हैं। समाचार में छोटी सी जगह मिलती है। कोई आरोपी पकड़ा नहीं जाता, केस बंद हो जाता है। ऐसे लाखों केस होते रहते हैं लेकिन कुछ नहीं होता, इसी को कहते है जिसकी लाठी उसकी भैंस, क्युकी भी जाति, धर्म या क्षेत्र के हो सकते है।
स्टेटस वाला भेदभाव – बाते बड़ी बड़ी करने वाले कम्पनियों के मालिक भी अपने अधीन रखे गए लोगों को आदर देना अपनी शान के खिलाफ समझता है। वह उनके साथ मानवीय संबंध रखना नहीं चाहता। वह इनसे बोलने में भी आनाकानी करता है, भले ही भारत में कहने को जमींदारी प्रथा खत्म हो गयी हो लेकिन कम्पनी का मालिक कुछ कुछ वैसा ही होता है, भले ही वो रोजगार देकर हमारी सहायता करता हो लेकिन कमाता तो वो भी हमसे ही है ।
अमीरी-गरीबी का भेदभाव – ये बहार का हाल नहीं, एक ही घर और परिवार की भी कहानी है, जैसे ही कोई पारिवारिक सदस्य ऊंची पोस्ट पर हो जाता है, उसके पास धन आ जाता है तो वह अपने गरीब संबंधियों से तुरंत सारे संबंध तोड़ लेता है। वह दूर कहीं अपना आशियाना बना लेता है जहां उसे अपने गरीब रिश्तेदारों से छुटकारा मिल सके। एलीट कल्चर के लोगों को ही बड़े होटलों में प्रवेश मिलता है, निर्धन लोगों को दूर से ही भगा दिया जाता है। स्टेटस को देखकर आदर दिया जाता है, ये सच बात है, आप भी करते होंगे और आपने अनुभव भी किया होगा, क्युकी अमीरी और गरीबी फिक्स्ड नहीं है, ये गतिशील है, किसी से मै अमीर हूँ तो किसी से मै गरीब हूँ, कही मै करता हूँ कहि मेरे साथ होता है ।
वैचारिक भेदभाव या धार्मिक भेदभाव – वर्तमान समय में यह भेदभाव एक सबसे क्रूरतम हद को पार कर जाने वाला भेदभाव है जो पूरी तरह से अमानवीय हो चूका है, जब दूसरे विचार रखने वाले या असहमत होने वालों की क्रूर तरीके से हत्या कर दी जाती है, उन्हें नीचे दिखाया जाता है, जलील किया जाता है । और आज तक इस भेदभाव के कारण पूरे विश्व में करोड़ों लोग आज तक मारे जा चुके हैं या आत्महत्या भी कर चुके है,और यह सिलसिला आज भी नहीं रुका है।
क्रूरतम लोगों की गिरफ्त से छुड़वाई गई एक यजीदी महिला बताती है कि गुलाम बनाकर रखा गया था और रोज उससे 20-20 दरिंदे बलात्कार करते थे। इसका विरोध करने पर उसे भूखा रखा जाता, एक दिन उसे भोजन दिया गया उसे बताया गया कि चिकन चावल है खा लो। भूखी थी उसने खा ली। खाने के बाद हंसते हुए दरिंदों ने बताया कि उसे उसका बच्चा मारकर पकाकर खिलाया गया है। उसका अपराध यह था कि वह यजीदी थी और उसका धर्म उनसे अलग था।
माओवाद के नक्सली लाखों लोगों की हत्याओं के अपराधी हैं। पूरे यूरोप से पेगेन धर्म को मानने वालों और अमेरिका के मूल निवासियों का निर्ममता से खात्मा कर दिया गया क्योंकि वे इनसे वैचारिक, सामाजिक,धार्मिक व सांसस्कृतिक रुप से अलग थे, धर्म बाद पार्टी और विचारधारा भी यही काम करती है, लेनिनवाद, माओवाद, नक्सलवाद, या वामपंथ इसी सबके ज्वलंत उदाहरण है ।
वर्ग भेदभाव या जातिवाद – वर्ग भेदभाव या जातिवाद भी अन्य भेदभावों की तरह ही है लेकिन इसमें लोग एक दूसरे के रोजगारों पर अतिक्रमण नहीं करते। एक गांव में रह रहे लोगों के लिए मोची, जूते बनाता है, नाई हजामत करता है, ग्वाला दूध का काम करता है, बड़ई लकड़ी व राजमिस्त्री मकान बनाने का काम करता है और अपनी सेवाओं के बदले में पैसे लेता है। वह अन्य लोगों को अपने ग्राहकों के रूप में देखता है।
जब काम करवाना होता है तो कोई भी गांववासी पैसे देकर इनसे सेवा लेता है। शादी विवाह, सुख दुख हर काम में इनके रोजगार का ध्यान रखा गया है। जैसे एक व्यक्ति की शादी होती है तो बाजेवाले, मरासी, खाना बनाने वाले, घर में बर्तन आदि का काम करने वाली, बड़ई आदि सभी को रोजगार मिलता है।
जाति व्यवस्था में कोई खामी नहीं है लेकिन जब इसमें कुछ लोगो ने प्रचार किया की उसका काम श्रेष्ठ है और तुम्हारा नीचे है, इसलिए तुमको सम्मान नहीं मिलेगा ऐसा कह कह कर इसमें जातिवाद का जहर भर कर आजकल जो लोग नफरती प्रचार कर रहे हैं वही सबसे समस्या है ।
यदि कोई भी स्वाभिमान के साथ जीना सीख लें तो जातिवाद भेदभाव स्वयं ही खत्म हो जाएगा क्युकी सभी के काम महत्वपूर्ण है, जातियों का निर्माण एक तरह से समाज को व्यवस्थित करने को किया ,जैसे ४ वर्ण थे और उनके माइक्रो लेवल का वर्गीकरण जाति था जो कर्म गुणवत्ता के लिए जरुरी थी, आज भी डॉक्टर वकील अन्य व्यवसायी अपने बच्चो को अपना उत्तराधिकारी ही बनाना चाहते है जिससे वो अपने काम और अनुभव और आगे बढ़ा सके।
जातिया कभी बुरी नहीं थी और न होगी, और ये बनेगी भी, बस देखने का तरीका है तो समस्त संसार ही घृणामय हो जायेगा
QvoHqBwMpYGxI
FvyAzarPHx
cyfz8h
JDxaoKnbUkfjXO
DOsKMPzLCQjVuvSd
i70308
kPTiwzGAHMc
do9a9e
VZIeEOkKBFrGq
VAKlIWRz