मध्य प्रदेश के उज्जैन मे बाबा महाकाल जब अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए नगर भ्रमण पर निकलते हैं तो उनके आगे कड़ाबीन के धमाकों से नगर की जनता को यह संदेश दिया जाता है कि राजा पधार रहे हैं। पुलिस का बैंड स्वर लहरियों के साथ आगे चलता है। पुलिस के सशस्त्र जवान सवारी मार्ग पर कदमताल के साथ चलते और जब महाकाल राजा मंदिर से बाहर आते हैं तो मुख्य द्वार पर उन्हें पुलिस विभाग की और से सशस्त्र बल गार्ड ऑफ ऑनर देता है और फिर एक राजा की तरह पालकी में सवार बाबा महाकाल अपनी जनता का हाल जानने के लिए नगर भ्रमण पर निकल पड़ते हैं। महाकाल मंदिर के पुजारी पंडित महेश गुरु ने बताया कि पूर्व के समय में जो राजा होते थे वह या तो पालकी में सवार होकर निकलते थे या हाथी पर सवार होकर निकलते थे। इसलिए अनादिकाल से जब से महाकाल की सवारी निकल रही है। उसी समय हमारे पूर्वजों ने भक्तों की सुविधा के लिए यह व्यवस्था की थी कि भगवान के एक जैसे दो मुखारविंद बनवाए गए और तभी से एक मुखारविंद पालकी में विराजित किया जाता है और दूसरा उसी तरह का मुखारविंद हाथी पर बैठाया जाता है। महाकाल राजा इस तरह पालकी में भी सवार होकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं और हाथी पर सवार होकर भी अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए निकलते हैं। पुजारी महेश गुरु बताते हैं कि दोनों मुखारविंद एक समान रहते हैं, जिन भक्तों को पालकी में बैठे महाकाल राजा के दर्शन नहीं हो पाते हैं, वह श्रद्धालु हाथी पर सवार महाकाल राजा के दर्शन कर सकता है। श्रद्धालुओं को इस बात की जानकारी नहीं है, इसलिए श्रद्धालु सिर्फ पालकी की ओर ही ध्यान देते हैं। आवश्यकता है कि मंदिर प्रबंध समिति इस बात का बड़े स्तर पर प्रचार प्रसार करें, ताकि आम लोगों और श्रद्धालुओं को पता चल सके कि नगर भ्रमण पर बाबा महाकाल पालकी और हाथी दोनों पर सवार होकर निकल रहे हैं।