पंजाब, जिसे सिख धर्म के पवित्र गढ़ के रूप में जाना जाता है, आज ‘पगड़ी वाले ईसाइयों’ के अचानक बढ़ते प्रभाव का गवाह बन रहा है। यह राज्य, जो कभी गुरुओं की शिक्षा और पंज प्यारों की विरासत के लिए प्रसिद्ध था, अब धर्मांतरण के एक बड़े संकट का सामना कर रहा है।
धर्मांतरण की नई प्रयोगशाला
धर्मांतरण का यह सिलसिला अचानक नहीं हुआ है। पिछले कुछ वर्षों में यह प्रक्रिया तेज हो गई है, जिससे पूरे पंजाब में ‘पगड़ी वाले ईसाइयों’ की संख्या में भारी वृद्धि हुई है। आज यह सवाल उठता है कि पंज प्यारों की भूमि पर यह स्थिति कैसे उत्पन्न हुई, और इसका समाधान कैसे निकाला जा सकता है। इस समस्या को जितनी जल्दी सुलझाया जाएगा, उतना ही बेहतर होगा, क्योंकि धर्मांतरण का माफिया अपनी जड़ों को मजबूत करता जा रहा है।
अंकुर नरूला और ‘चर्च ऑफ साइंस एंड वंडर्स’
इंडिया टुडे की एक कवर स्टोरी के अनुसार, धर्मांतरण की इस प्रक्रिया के केंद्र में एक प्रमुख नाम सामने आता है – पादरी अंकुर नरूला। अंकुर नरूला का जन्म एक हिंदू खत्री परिवार में हुआ था। 2008 में ईसाई मिशनरियों के संपर्क में आने के बाद उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया। इसके बाद उन्होंने ‘अंकुर नरूला मिनिस्ट्री’ की स्थापना की और फिर ‘चर्च ऑफ साइंस एंड वंडर्स’ की शुरुआत की।
शुरुआत में इस चर्च से जुड़े लोगों की संख्या मात्र तीन थी। लेकिन बीते 14 वर्षों में यह आंकड़ा बढ़कर तीन लाख से अधिक हो चुका है। खांबड़ा गाँव में स्थित उनका मुख्यालय 65 एकड़ में फैला हुआ है, जो अब धर्मांतरण का एक बड़ा केंद्र बन चुका है। इस चर्च के निर्माणाधीन भवन को एशिया के सबसे बड़े चर्च के रूप में देखा जा रहा है।
धर्मांतरण के ग्लोबल नेटवर्क
अंकुर नरूला का नेटवर्क सिर्फ पंजाब तक सीमित नहीं है। उनका प्रभाव भारत के अन्य राज्यों, जैसे बिहार और बंगाल, के साथ-साथ अमेरिका, कनाडा, जर्मनी और ग्रेटर लंदन के हैरो तक फैल चुका है। उनकी मिनिस्ट्री के अनुयायी उन्हें ‘पापा’ कहकर संबोधित करते हैं, जो इस बात को दर्शाता है कि धर्मांतरण के बाद लोग उनकी शिक्षाओं में कितने लिप्त हो जाते हैं।
अमृतसर में भी धर्मांतरण का प्रभाव
पंजाब का अमृतसर शहर, जो सिख धर्म के लिए अत्यधिक पवित्र है और जहां स्वर्ण मंदिर स्थित है, अब मिशनरियों के प्रयासों से ‘पगड़ी वाले ईसाइयों’ का एक बड़ा केंद्र बन चुका है। सिखों को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने का यह अभियान तेजी से चल रहा है।
नए पादरी और उनका बढ़ता प्रभाव
पंजाब में धर्मांतरण का सिलसिला नए पादरियों के माध्यम से बढ़ा है। इनमें प्रमुख नाम हैं – अमृत संधू, कंचन मित्तल, रमन हंस, गुरनाम सिंह खेड़ा, हरजीत सिंह, सुखपाल राणा, और फारिस मसीह। इन पादरियों ने ‘पगड़ी वाले ईसाइयों’ की संख्या बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
ईसाई समितियों और चर्चों का बढ़ता जाल
एक रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब के 12,000 गांवों में से 8,000 गांवों में ईसाई धर्म की मजहबी समितियां सक्रिय हैं। अमृतसर और गुरदासपुर जैसे जिलों में 4 प्रमुख ईसाई समुदायों के 600-700 चर्च हैं। इनमें से 60-70% चर्च पिछले 5 वर्षों में स्थापित हुए हैं।
तमिलनाडु जैसा परिदृश्य
पंजाब की स्थिति आज वैसी ही होती जा रही है जैसी तमिलनाडु में 1980 और 1990 के दशक में थी। वहां भी इसी तरह ईसाई मिशनरियों ने अपना प्रभाव बढ़ाया था।
एसजीपीसी का दृष्टिकोण
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) के अध्यक्ष एचएस धामी का कहना है कि धर्मांतरण पर चिंता करने की जरूरत नहीं है। उनका मानना है कि लोग अपनी समस्याओं का समाधान खोजने के लिए पादरियों के पास जाते हैं, लेकिन देर-सबेर वे अपनी जड़ों को पहचानकर मूल धर्म में लौट आएंगे। हालांकि, यह नजरिया मौजूदा स्थिति की गंभीरता को कम कर सकता है।
‘घर-घर अंदर धर्मसाल’ अभियान
सिख समुदाय ने इस चुनौती का मुकाबला करने के लिए ‘घर-घर अंदर धर्मसाल’ अभियान शुरू किया है। इस अभियान के तहत सिख स्वयंसेवक अपने धर्म का प्रचार करने के लिए घर-घर जा रहे हैं। यह अभियान यह संकेत देता है कि धर्मांतरण का माफिया कितना गहरा असर डाल चुका है।
सवाल उठते हैं, जवाब देना जरूरी है
सबसे बड़ा सवाल यह है कि पंज प्यारों की जमीन पर ‘पगड़ी वाले ईसाइयों’ का इतना बड़ा प्रभाव क्यों और कैसे हुआ। इसका जवाब खोजना बेहद जरूरी है। यदि इस पर देरी से प्रतिक्रिया दी गई, तो धर्मांतरण का माफिया और अधिक मजबूत हो जाएगा।
धर्मांतरण का आर्थिक पहलू
धर्मांतरण का यह अभियान न केवल धार्मिक बल्कि आर्थिक रूप से भी प्रायोजित है। विदेशी फंडिंग और मिशनरियों के आर्थिक संसाधन इस प्रक्रिया को और तेज करते हैं। इन संसाधनों का इस्तेमाल लोगों को धर्म बदलने के लिए प्रलोभन देने में किया जा रहा है।
भविष्य की चुनौतियां और समाधान
यदि इस बढ़ते प्रभाव को समय रहते नहीं रोका गया, तो पंजाब की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान खतरे में पड़ सकती है। इसे रोकने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
- शिक्षा और जागरूकता अभियान: सिख समुदाय को उनके धर्म और संस्कृति की महत्ता के बारे में जागरूक करना।
- आर्थिक सहायता: जरूरतमंद परिवारों को सशक्त बनाना ताकि वे आर्थिक प्रलोभन में न आएं।
- कानूनी कार्रवाई: धर्मांतरण माफिया के खिलाफ सख्त कार्रवाई करना।
- धार्मिक संवाद: विभिन्न धर्मों के नेताओं के बीच संवाद स्थापित करना।
- ग्रामीण स्तर पर प्रयास: गांवों में मिशनरियों के प्रभाव को कम करने के लिए स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना।
निष्कर्ष
पंजाब, जो सिख धर्म और पंज प्यारों की शिक्षाओं का केंद्र रहा है, आज ‘पगड़ी वाले ईसाइयों’ के बढ़ते प्रभाव का सामना कर रहा है। यह न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक संकट भी है। इसे हल करने के लिए सभी समुदायों को मिलकर काम करना होगा। यदि इस मुद्दे पर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया, तो पंजाब के जिलों की पंजाब के गावों की धार्मिक पहचान खतरे में पड़ सकती है।