भारत जिसे आर्यावर्त भी कहते में पहले किसी भी ग्रन्थ, स्मृति में जाति शब्द का उल्लेख नहीं था, सिर्फ वर्ण थे जो कर्मानुसार, मतलब आप जो कर्म करते है वही आपका वर्ण बन जाता था, लेकिन संविधान के लागू होते ही वर्ण की जगह जातिया आ गयी और जो जन्म के अनुसार थी, अब आप कोई भी कर्म करो आपकी ज़ाति नहीं बदल सकती है, और वर्ण तो खत्म ही कर दिया है, या अगर है भी जो आप जिस वर्ण में है उसी में बने रहेंगे।
पुर्तगालियों द्वारा 1600 में जात या जाति ( समुदाय) के लिए के लिए Caste शब्द का प्रयोग किया गया । 1901 में रिश्ले वर्ण शब्द की जगह जनगणना में Caste के आधार पर पहली बार करता है , और 2000 से ज्यादा जातियां , “नेसल बेस इंडेक्स ” और सोशल hiearchy , के आधार पर । उसने एक unfailing “लॉ ऑफ़ caste” बनाया और बताया कि “भारत में नाक की चौड़ाई किसी व्यक्ति के सामजिक हैसियत सामजिक स्टेटस के inversely proportionate होती है”।
रिश्ले ने लिखा कि कास्ट का वर्णन मनुस्मृति में है और उसने तीन वर्णों ( क्षत्रिय ब्रामहण वैश्य या तथाकथित सवर्ण या मैक्समुलर के अफवाह अनुसार आर्य) को तीन कास्ट की तरह जनसंख्या रजिस्टर में दर्ज किया। क्योंकि ईसाइयों को वर्ण और जाति का भेद भी नहीं पता था।
दूसरी मह्हत्वपूर्ण बात ये है कि सोशल hierarchy के क्रम जो उसने लिस्ट बनाई उसको अल्फबेटिकल क्रम में न रखकर सोशल hierarchy के आधार पर ऊपर से नीचे कि और लिस्टिंग किया।
यहीं से उस ऊंची और निचली या अगड़ी और पिछड़ी जातियों के एक नए सिद्धांत की रचना होती है , जिसके आधार पर सरकारें आज भी काम कर रहीं है। हाल ही में जाटों को पिछड़ी जाति की लिस्ट में शामिल किया जाना सिर्फ इसी नजरिये से व्याख्यायित होता है ।
जात कि जाति ???
……………………………………………………………..
माँगी नावं न केवट आना ,कहत तुम्हार मर्म मैं जाना ………………………………………………………
निषाद कहत सुनइ रघुराई ,मैं न लेहूँ प्रभु तेरी उतराई।
हमरे कुल की रीति दयानिधि,संत मिले त करब सेवकाई।
रीति छोड़ उनरीति न करिहौं ,मैं न लेहूँ प्रभु तेरी उतराई।
नदी नावं के हमहि खेवैया, औ भवसागर के श्री रघुराई।
तुलसी दास यही वर मांगू , उहवाँ न लागै प्रभु मेरी उतराई
।
जात पांत न्यारी, हमारी न तिहारी नाथ ,
कहबे को केवट , हरि निश्चय उपचारिये
तू तो उतारो भवसागर परमात्मा
औ मैं तो उतारूँ , घाट सुर सरि किनारे नाथ।
नाइ से न नाइ लेत , धोबी न धुलाई लेत
त तेरे से उतराई लेत, कुटुंब से निकारिहयों।
जैसे प्रभु दीनबंधु ,तुमको मैं उतारयो नाथ।
तेरे घाट जैहों नाट मोको भी उतारियों
उहवाँ न लागै प्रभु मेरी उतराई।
मैं न लेहूँ प्रभु तेरी उतराई
…….चुन्नू लाल मिश्रा केवट राम संवाद।
जात कि जाति ?
…एक जात शब्द को तुलसी दास ने बताया था ,,जिसमें केवट ने कहा कि –रामचन्द्र जी आप और मैं एक ही जात के हैं ,,मैं नदी की नावं खेता हूँ और आप
भवसागर की नाव खेते हो इसलिए हमारी जात एक ही है ।जैसे नाउ नाउ से , और धोबी धोबी से पारिश्रमिक नहीं लेता , तो वैसे एक केवट दूसरे केवट से कैसे
पारिश्रमिक ले सकता है। और लिया तो मुझे कुटुंब से बाहर कर दिया जाएगा। यहाँ तक तो ठीक था।
लेकिन जब अम्बेडकर जी जॉन मुइर ,मैक्समूलर ,और M A शेरिंग पादरी , जैसे संस्कृतविज्ञों इंडोलॉजिस्ट से हम संस्कृत ग्रंथो को संस्कृत से अंग्रेजी – अंग्रेजी , के क्रम में सीख कर, 1946 ” शूद्र कौन थे ” (WhoWereTheShudras) जैसे ग्रन्थ की रचना करते हैं , और उसकी उत्पत्ति वेदों में खोजने निकल
जाते हैं , तो उनकी मंशा पर ही प्रश्न खड़े होते जाते हैं , क्योंकि उसमे तथ्यपरकता पर तो है ही नहीं। एक फिक्शन है वह जिसको सरकारी खजाने से छपवाकर भारत मे पिछले 50 वर्षों में बांटा जा रहा है।
दूसरी मह्हत्वपूर्ण बात ये है कि सोशल hierarchy के क्रम जो उसने लिस्ट बनाई उसको अल्फबेटिकलक्रम में न रखकर सोशल hierarchy के आधार पर ऊपर से नीचे की ओर लिस्टिंग किया। यहीं से उस ऊंची और निचली या अगड़ी और पिछड़ी जातियों के एक नए सिद्धांत की रचना होती है , जिसके आधार पर सरकारें आज भी काम कर रहीं है।
हाल ही में जाटों को पिछड़ी जाति की लिस्ट में शामिल किया जाना सिर्फ इसी नजरिये से व्याख्यायित होता है।
डॉ आंबेडकर जब स्वयं इस नेसल बेस इंडेक्स के आधार को निराधार बताते हुए खंडन करते हैं , तो शायद एक ही तथ्य स्पस्ट होता है , कि वे तात्कालिक समय के एंथ्रोपोलॉजी जैसे विषयों में तो एक्सपर्ट थे ,लेकिन जब उन्होंने इतिहास की तरफ नजर उठाई तो , शायद कहीं फर्जी संस्कृत विदों के जाल में उलझ कर रह गये।
और जब हमारे देश के विद्वान जो कॉपी एंड पेस्ट के , आधार पर न जाने कितनी पीएचडी ,लेते और देते रहते हैं , उन्होंने caste का अनुवाद जाति में करते हैं , तो आधुनिक भारत की तस्वीर सामने आती है।
A L Basham जैसे लोग शायद इसी को जाति की तरलता और rigidity ऑफ़ caste सिस्टम के नाम से बुलाये।लेकिन ये तो किसका काम है , आपको बता ही दिया लेकिन OCD ( Obsessive compulsion disorder) के मरीज तथाकथित दलित चिंतक इसको भी ब्राम्हण वाद के जिम्मे , ठोंक देते हैं।
लेकिन ये OCD के मरीज ,,,,,इनको क्या कहा जाय ??
अतिशूद्र Outcastes kutumb से निकारिहों
इसी को ईसाई विद्वानों ने ..Outcasts का नाम दिया।
हिन्दू समाज में समाज को नियंत्रित करने के लिए एक व्यवस्था थी – जो उन मान्यताप्राप्त परम्पराओं का पालन नहीं करेगा उसको _”कुटुंब से निकारिहों ” यानी जात-बाहर कर दिया जाता था । यानि उनको भिक्षा मांगकर अपना गुजारा करना पड़ता था। उनकी सारी व्यक्तिगत अधिकारों से वंचित कर कुटुंब और समाजबहिस्कृत कर दिया था।
इस बात का वर्णन डॉ बुचनन ने अपनी पुस्तक में 1807 में भी किया है – कि शूद्रों को अपने कुटुंब को संचालित करने के लिए ,उस समाज के बुजुर्ग आपसी सलाह के उपरांत किसी को सजा भी दे सकते थे।
ये सामाजिक व्यवस्था ईसाइयत फैलाने में सबसे बड़ी बाधा थी। इसबात का जिक्र संस्कृत विद्वान मॅक्समुल्लर और पादरी M A शेरिंग दोनों ने लिखा है .
इस लिए इस कुप्रथा का दानवीकरण करना ही पड़ेगा . और वही हुवा –इसी को outcasts कहा डॉ आंबेडकर ने ,,और आगे चलकर वर्ण व्यवस्था में एक और अंग के
रूप में लिखा -“अवर्ण “।
अब इसका विश्लेषण करें –
(१)
जब इन -“कुटुंब से निकारिहों ” को धनसम्पत्ति बाल बच्चे पत्नी ,सब का त्याग करना पड़ता था ,तो इनके वंश कैसे आगे बढ़ेंगे । कैसे डॉ आंबेडकर के द्वारा वर्णित पांचवे वर्ण का निर्माण होगा?
(२)
ईसाई संस्कृत विद्वानों ने बताया वर्ण – यानि चमड़ी का रंग। तो ये नहीं बताया कि कौन सा रंग गोरा काला नीला पीला या सतरंगी ?? किस रंग का सवर्ण समाज था ??
(३)
….पांचवा वर्ण – अवर्ण । ये भी नहीं बताया कि इसका क्या मतलब होता है –
बदरंग कि बिना रंग का ? या discouloured , जो ईसाई mythology में वर्णित अनंतकाल तक स्लेवरी में रहने के लिए नूह द्वारा श्रापित Ham के वंशज – जिसके पाप के कारण गॉड ने उसके वंशजों को “काला” रंग दे दिया ?
अभी मैं कुछ दिन पूर्व .@Chandra Bhan prasad जी जैसे एक विद्वान दलित चिंतक की timeline पर गया , जो हिन्दी मे लिखना अपनी तौहीन समझते है , तो उनके अनुसार मैकाले –” भारतीय इतिहास में शूद्रो और दलितों की शिक्षा का सूत्रधार था “।
मैं उनको अल्पज्ञ और अविज्ञ तो नहीं कह सकता , हाँ अनभिज्ञ या धूर्त और खड़ड़यंत्रकारी अवश्य कह सकता हूँ । क्योंकि जिन अंग्रेजों के प्रति आप इतने कृतज्ञ हैं , वे इतने ईमानदार अवश्य थे की जो डेटा उन्होंने एकत्रित किये तात्कालिक भारतीय समाजिक और सांस्कृत व्यवस्थाके सन्दर्भ में , वे इंडियन ऑफिस लाइब्रेरी लन्दन में अभी भी संरक्षित हैं।
वही डेटा ये भी कहता है कि “1830 के पूर्व , मैकाले की शिक्षा पद्धति लागू होने के पहले- भारतीय स्कूलों या पाठशालाओं मे में अंग्रेज कलेक्टरों द्वारा इकट्ठे किये डेटा के अनुसार – शूद्र छात्रों की संख्या ब्राम्हण छात्रों से चार गुना थी”।
Chandra Bhan prasad जी आप अपने स्वार्थ हेतु या अज्ञानतावश इतिहास के एक समयकाल और एक समयखण्ड और कुछ भारतोद्धार करने की चाह वाले अंग्रेज चरित्रों से ऊपर उठने को इच्छुक नहीं हैं। आप तो बाबा साहेब की कृपा से उच्च पदासीन हैं , और डिक्की के नाम पे सैकड़ो करोणों के सरकारी अनुदानों को चाम्पे बैठे है , लेकिन अपनी अनभिज्ञता या धूर्तता के कारण इस तरह के तमाम ऐतिहासिक। तथ्य अपने अनुयाईओयों तक नहीं पंहुचा रहे हैं।
Chandra Bhan Prasad जी और इनके जैसे तमाम दलितचिन्तको से मेरा आग्रह सिर्फ इतना ही है कि आप अपनी स्वार्थ की रोटी जरूर सेंके , लेकिन आप अपनी अज्ञानता,अनभिज्ञता या धूर्तता के कारण , आने वाली दलित सन्ततियो को घृणा और अनभिज्ञता की आग में न झुलसायें ।
In 1891 Risley published a paper entitled The Study of Ethnology in India. It was a contribution to what Thomas Trautmann, a historian who has studied Indian society, describes as “the racial theory of Indian civilisation”. Trautmann considers Risley, along with the philologist Max Müller, to have been leading proponents of this idea which . by century’s end had become a settled fact, that the constitutive event for Indian civilisation, the Big Bang through which it came into being, was the clash between invading, fair-skinned, civilized
Sanskrit-speaking Aryans and dark-skinned, barbarous aborigines.
fair skinned यानि सवर्ण
dark skinned यानि असवर्ण
यही फर्जी संस्कृतज्ञ इसाइयों द्वारा रचित कपोल कल्पना आज भारतीय संविधान का अंग है। जिसका लिखित प्रमाण MA Sherring के Caste and Tribes Of India 1872 मे लिखी पुस्तक मे मिलता है की कोरी या कोली सम्मानित वैश राजपूतों का वंशज है जो बुनकर थे ।
लेकिन 1936 मे उन्हे scheduled Caste मे डाल दिया गया । जो गांधी के हरिजन की गाड़ी छोडकर अंबेडकर के दलित एक्सप्रेस मे बैठे हुये हैं
ये वही आमबेदकर थे जिनकी अभिलाषा Anninhilaton of Caste थी । लेकिन संविधान निर्माता अंबेडकर ने जब Caste को संविधान सम्मत कर दिया तो उसका annihilation कैसे होगा ?
Arundhati Roy ने अभी एक पुस्तक भी लिखी है इसी पर । कचड़े का भंडार है वो , नफरत की सियाही से लिखी हुयी ।
संविधान के संरक्षक – कोविंद जी उसी कोरी या कोली कास्ट से आते हैं जो आज अनुशूचित है। क्या कोई उंनको इस रहस्य से पर्दा उठाने हेतु विद्वानों की टोली गठित नहीं करनी चाहिए?
The Original Post I taken from here – https://www.facebook.com/permalink.php?story_fbid=pfbid02jVMYfovQjQQps2DaVxfk4QbCUTn3VZxXBvmap4b477ECdHPaXSr1PLGoSz1PVXnRl&id=100050770988695