सनातन धर्म पूरी तरह से वैज्ञानिक है क्युकी इसमें तर्क के पर्याप्त स्थान है, यहाँ तक किसी देश, काल, परिष्तिथि के आपको सनातन धर्म का कोई तथ्य अगम्य लगे तो आप उसको तत्कालीन परिस्थितिओ को देखते हुए कुछ समय के लिए अमान्य भी कर सकते है, या सदा के लिए त्याग भी सकते है, ऐसा करने पर आपको कोई भी दंड नहीं दिया जायेगा और मृत्युदण्डं तो बिलकुल भी नहीं, ऐसे ही कुछ जानकारिया जिनको हम तथ्य भी कह सकते है मेने यहाँ अपर दिए है, शायद आपको अच्छे लगे
प्रश्न :- प्रकृति किसें कहतें हैं?
उत्तर :- सत्व , रज तथा तमो गुण इन तीन तत्वों के सामूहिक नाम को प्रकृति कहतें हैं।
प्रश्न :- प्रकृति की क्या आवश्यकता है ?
उत्तर :- जगत् की रचना करने के लिए कारण के रूप में इसकी आवश्यकता होती हैं । जैसे घड़ा बनाने के लिए मिट्टी की आवश्यकता होती है।
प्रश्न :- क्या प्रकृति की उत्पत्ति और विनाश कभी होता है?
उत्तर :- प्रकृति की उत्पत्ति और विनाश कभी नहीं होता है।
प्रश्न :- सत्वगुणरजोगुण और तमोगुण के स्वरूप को बतलाएँ?
उत्तर :- सत्वगुण आकर्षण तथा प्रकाश को, रजोगुण चंचलता तथा दु:ख को उत्पन्न करता है और तमोगुण मूढ़ता (मोह) तथा स्थिरता को उत्पन्न करता है ।
प्रश्न :- क्या प्रकृति में जीवात्माओं को उत्पन्न करने का सामर्थ्य है?
उत्तर :- प्रकृति में जीवात्माओं को उत्पन्न करने का सामर्य नहीं है।
प्रश्न :- क्या प्रकृति से जीवों के समस्त दु:ख दूर हो सकते हैं ?
उत्तर :- प्रकृति से जीवों के समस्त दु:ख दूर नहीं हो सकते हैं।
प्रश्न :- संसार में दुःख कितने प्रकार के हैं ?
उत्तर :- संसार में दु:ख तीन प्रकार के हैं -(१) आध्यात्मिक, (२) आधिभौतिक, (३) आधिदैविक।
प्रश्न :- आध्यात्मिक दुःख किसे कहते हैं ?
उत्तर :- स्वयं की त्रुटि (मूर्खता) से प्राप्त होने वाले दुःख को आध्यात्मिक दु:ख कहते हैं।
प्रश्न :- आधिदैविक दुःख किसे कहते हैं। ?
उत्तर :- बाढ़, भूकम्प ,अकाल आदि प्राकृतिक विपदाओं से प्राप्त होने वाले दु:ख को आधिदैविक दु:ख कहते हैं।
प्रश्न :- आधिभौतिक दुःख किसे कहते हैं। ?
उत्तर :- अन्य पशु , पक्षी ,मनुष्य आदि जीवों से प्राप्त होने वाले दु:ख को। आधिभौतिक दु:ख कहते हैं।
प्रश्न :- क्या प्रकृति से अपने आप संसार बन सकता है ?
उत्तर :- नहीं, ईश्वर की शक्ति व सहायता के बिना प्रकृति से अपने आप संसार नहीं बन सकता है।
प्रश्न :- क्या प्रकृति कभी चेतन हो सकती है ?
उत्तर :- नहीं प्रकृति कभी चेतन नहीं हो सकती है।
प्रश्न :- क्या प्रकृति की ब्रह्म से स्वतन्त्र सत्ता है या ब्रह्म ही जगत् रूप में परिवर्तित हो जाता है?
उत्तर :- प्रकृति की सत्ता ब्रह्म से पृथक् और स्वतन्त्र है। ब्रह्म जगत् रूप में कभी परिवतर्तित नहीं होता है।
प्रश्न :- सत्व, रज, तम वास्तव में गुण हैं या द्रव्य हैं ?
उत्तर :- सत्व, रज, तम वास्तव में द्रव्य हैं। किन्तु सत्वगुण, रजोगुण तमोगुण नाम से जान जाते हैं।
प्रश्न :- क्या प्रकृति के समस्त परमाणु एक ही स्वरूप वाले हैं?
उत्तर :- नहीं, प्रकृति के परमाणु अलग -अलग स्वरूप अलग-अलग गुण कर्म-स्वभाव, रंग- रूप, आकार, भार वाले हैं।
प्रश्न :- . क्या ईश्वर की सहायता के बिना पाँच महाभूतों से रजवीर्य मिलने से स्वत शरीर का निर्माण हो सकता है ?
उत्तर :- नहीं बिना ईश्वर की सहायता से पाँच महाभूतों से रजवीर्य के मिलने से स्वत: शरीर का निर्माण नहीं हो सकता।
प्रश्न :- प्रकृति सर्वत्र व्यापक है या नहीं ?
उत्तर :- प्रकृति सर्वत्र व्यापक नहीं है बल्कि एकदेशी है अर्थात एकनिश्चित सीमा में फैली हुई है, किन्तु ईश्वर उसके बाहर भी
विद्यमान है।
प्रश्न :- प्रलय अवस्था कैसी होती है ?
उत्तर :- प्रलय अवस्था में घोर अन्धकार होता है। इस काल में न सूर्य होता है, न चाँद, न पृथ्वी न कोई शरीरधारी होता है, अपितु
सर्वथा सुनसान, प्रकाशरहित अन्धकार जैसी अवस्था होती है।
प्रश्न :- प्रलय काल कितना होता है ?
उत्तर :- प्रलय काल ४ अरब ३२ करोड़ वर्ष का होता है।
प्रश्न :- प्रलय काल की गणना (हिसाब ) कौन करता है ?
उत्तर :- प्रलय काल की गणना ईश्वर करता है।
प्रश्न :- प्रकृति के साथ जीव क्यों जुड़ता है और कब जुड़ता है ?
उत्तर :- प्रकृति के साथ जीव अपनी अविद्या के कारण जुड़ता है तथा सृष्टि के आरम्भ में जुड़ता है और मुक्ति से लौटने वाला जीव
सृष्टि के मध्य में भी प्रकृति से जुड़ता है।
प्रश्न :- जीवात्मा प्रकृति के बन्धन से कब छूटता है?
उत्तर :- जब प्रकृति और प्राकृतिक पदार्थों के प्रति आसक्ति को समाप्त कर पूर्ण वैराग्य को प्राप्त कर लेता है अर्थात् रागद्वेष आदि समस्त क्लेशों को समाधि लगाकर नष्ट कर देता है तब प्रकृति के बन्धन से छूट जाता है।
प्रश्न :- मानव जीवन को सफल करने हेतु चार पुरुषार्थ कौन-कौन से हैं ?
उत्तर :- (१) धर्म(२) अर्थ(३) काम, (४) मोक्ष। इन चार पुरुषार्थों को सिद्ध कर लेना मानव जीवन को सफल करने का उपाय है।
प्रश्न :- जैसे सुख गुण प्रकृति का है वैसे ही क्या ज्ञान गुण भी प्रकृति का है?
उत्तर :- नहीं ज्ञान गुण प्रकृति का नहीं है, अपितु चेतन का है।
प्रश्न :- क्या मन रबर की तरह फैलता सिकुड़ता है?
उत्तर :- नहीं, मन रबर की तरह फैलता-सिकुड़ता नहीं है।
प्रश्न :- क्या सत्व, रज, तम तीनों के बिना केवल दो गुणों से कोई पदार्थ बन सकता है ?
उत्तर :- नहीं मात्र दो गुणों से कोई पदार्थ नहीं बन सकता। सभी पदार्थों में तीन गुण होते ही हैं चाहे वे न्यून अधिक क्यों न हों।
प्रश्न :- अन्न भोजन कितने प्रकार का होता है ?
उत्तर :- अन्न तीन प्रकार का होता है-(१) सात्विक, (२) राजसिक, (३) तामसिक।
प्रश्न :- क्या अन्न का प्रभाव मन पर पड़ता है ?
उत्तर :- हाँ, साविक अन्न खाने से मन शुद्ध होता है, राजसिक अन्न से मन में चंचलता आती है और तामसिक अन्न मोह, आलस्य
आदि उत्पन्न करता है।
प्रश्न :- मानव जीवन को स्वस्थ रखने के मूल आधार स्तम्भ कौन कौन-से हैं?
उत्तर :- मानव जीवन को स्वस्थ रखने हेतु मूल आधार आहार, निद्रा और ब्रह्मचर्य का उत्तम प्रकार से सेवन करना है।
सनातन धर्म के प्रति उन लोगो की बहुत ही नकारत्मक अबधारणाये है जिन्होंने सनातन धर्म के मूल धर्मग्रंथ जैसे रामायण, महाभारत, भगवत पुराण और वेदो का अध्ययन ही नहीं किया है, हो सकता है सिर्फ पढ़ा हो, लेकिन समझ कर अध्ययन नहीं किया होगा, क्युकी सनातन धर्म ही एकमात्र ऐसा धर्म है जिसने जीव जंतु पेड पौधे मनुस्य सबके लिए कुछ न कुछ कर्तव्यों का वर्णन किया है।