जब भारत ब्रिटिश साम्राज्य से स्वत्रन्त्र भी नहीं हुआ था उसके पहले ही से सनातन धर्म के उन्मूलन की एक पटकथा लिखी जानी शुरू हो चुकी था, अब जितना हम पढ़ते है उतना ही पता चलता है की हमको भृमित करने का षड्यंत्र कितना गहरा और पुराना है, आज हिन्दू होकर अगर आप हिन्दू धर्म की बात करेंगे तो सबसे पहले आपको सनातन और वैदिक धर्म से एक चुनने को बोला जायेगा की हिन्दू धर्म कौन सा है।
चलो जैसे तैसे आपने हिम्मत करके बताया भी तो आपसे अगला प्र्शन होगा की हिन्दू धर्म का तो कोई अस्तित्व ही नहीं था वो तो सिंध नदी के किनारे होने के कारण उच्चारण में इंडस हुआ फिर वह रहने वाले हिन्दू कहलाने लगे और कालांतर में इस भूभाग को हिंदुस्तान कहा जाने लगा, इससे जुडी एक और कहानी है की हिन्दू शब्द का प्रयोग सबसे पहले गुरू नानक देव जी ने किया था।
तो आप हिन्दू है इसलिए सबसे पहले आपको अपने अस्तित्व को लेकर भृमित किया जायेगा जिससे तर्क के लिए आपका आत्मविश्वास पहले ही कम कर दिया जाय, लेकिन सनातन धर्म अस्तित्व उन्मूलन समुदाय आपसे फिर भी भय खाता रहेगा क्युकी आपके पास चार वेद, १८ पुराण, २ महाग्रंथ, उपनिषद, ब्राह्मण, आरण्यक, और अन्य ग्रन्थ है, जैसे मनुस्मृति, व्यास,यागवल्क्य इत्यादि, न जाने कितनी संहिताए है तो आपके पास बहुत कुछ है अपनी गरिमा को बनाये रखने के लिए लेकिन आपके विपक्षिओ के पास कुछ नहीं, सिवाए भौतिक जगत के दृश्यमान तर्कों एक एक उन्मादी भीड़ के अलाबा।
आप चाहे मनस्मृति जला कर अपनी खीज मिटाओ या २२ प्रतिज्ञा करके, लेकिन वास्तविकता तो ये है की आप और आपका जो भी आस्था का आश्रय है वो निहायत ही खोखला और बेजान है इसीलिए तो आपका ध्यान बजाये अपने आस्था में लगने के उसकी लघुता से दुखी होता है और आप एक भव्य और गरिममामयी धर्म के विरुद्ध बोलते हो।
इसमें तो दो मत नहीं होने चाहिए की सनातन धर्म के अलाबा जो भी आस्था का आश्रय है वो किसी न किसी ऐसी समय में शुरू हुए है जिनके काल क्रम और निर्माण करता की जानकारी है हम सबको, लेकिन उस समय भी सनातन धर्म जो सम्पूर्ण प्रभुता में था इन नवोत्पदित आस्था के केन्द्रो का उन्मूलन करने में समर्थ होकर भी इनको पल्ल्वित, फलित एवं फुलित होने दिया।
ये है सनातन धर्म की उदारता और विशालता की आप के ऊपर कोई वाध्यता नहीं है, अगर होती तो किसी भी अन्यधर्म का न तो उदय होने देता और न ही फलित फुलित होने देता, और आज भी सनातन धर्म को जानने वाले कभी भी किसी अन्य सम्प्रदाय का किसी भी तरह का विरोध नहीं करते है, लेकिन वो लोग करते है।
उनके अंदर ये भ्र्म है की एक बड़ी लकीर को काट कर छोटा किया जा सकता है, जबकि ये सब जानते है की की उस बड़ी लकीर से बड़ी लकीर बन पाना सम्भव नहीं है, क्युकी सनातन धर्म इतना विशाल उदारवाद समाये हुए है की उसमे धर्म के प्रति या ईश्वर के प्रति आस्था न रखने वाले के प्रति भी द्वेष या प्रतिकार का समर्थन नहीं है, और ये किसी और सम्प्रदाय में नहीं है।