उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में बदइंतजामी से मलेरिया बेकाबू हो रहा है। मरीजों की संख्या 2,200 के पार पहुंच चुकी है। फॉगिंग व लार्वानाशक दवाओं के छिड़काव के दावे किए जा रहे हैं, लेकिन मलेरिया के मरीजों की बढ़ती संख्या इसकी पोल खोल रही है। रोज औसतन 40 नए मरीज मिल रहे हैं। यही हाल रहा तो सप्ताहभर में पिछले दो साल का रिकॉर्ड टूट सकता है। इधर, डेंगू के केस भी 40 के पार पहुंच चुके हैं। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2021 में मलेरिया के 2,362 मरीज मिले थे। इसमें 473 फेल्सीपेरम के केस थे। 496 गांव प्रभावित हुए थे। वर्ष 2022 में 1,806 मरीज मिले थे। इसमें 308 फेल्सीपेरम के केस थे। 258 गांव चपेट में थे। इस साल अब तक 2,202 मलेरिया के मरीज मिले हैं। इसमें 300 फेल्सीपेरम के केस हैं। वर्ष 2021 और 2022 में एलाइजा जांच में डेंगू के क्रमवार 595 और 469 मरीज मिले थे। वहीं, डेंगू की एनएस-1 किट से जांच में क्रमवार 2,426 और 2,412 संदिग्ध डेंगू पॉजिटिव मिले थे। वर्ष 2021 में नौ और 2022 में चार लोगों की मौत हुई थी। इस साल अब तक 42 डेंगू पॉजिटिव मिल चुके हैं। किट से हुई 3,600 जांच में 78 संदिग्ध रहे। शेरगढ़ और मीरगंज के बाद मलेरिया के ज्यादातर केस भमोरा और रामनगर में हैं। यहां भी मच्छरदानी का अब तक वितरण नहीं हुआ है, जबकि बुखार के मरीजों की तादाद बढ़ती जा रही हैं। हर दिन करीब 50 से ज्यादा बुखार के मरीजों की लक्षणों के आधार पर मलेरिया, डेंगू की जांच हो रही है। फीवर वार्ड में मरीजों को भर्ती करने के लिए चिकित्साधिकारियों ने अपने खर्च से बेडों पर मच्छरदानी लगवा दी है।भमोरा में अब तक मलेरिया के 94 मरीज और रामनगर में 49 मरीज मिल चुके हैं। डेंगू का अब तक कोई केस नहीं मिला है। भमोरा के गांव कखुरनी, भमोरा खेड़ा, देवपुर, दलीपुर, तीरथपुर, रामपुर बुजुर्ग और रामनगर के भूरीपुर और देवकला गांव संवेदनशील हैं। बुखार के मरीजों की जांच के लिए सीएचसी, पीएचसी पर अलग काउंटर खोला गया है। जिन गांवों में मलेरिया के मरीज मिले हैं, वहां जांच शिविर लग रहे हैं।प्रभारी सीएमओ डॉ. सुदेश कुमारी के मुताबिक इस साल मई से ही मौसम मच्छरों के पनपने के अनुकूल रहा। लिहाजा, मच्छरों की तादाद बढ़ने से उनका हमला भी बढ़ा। आशंका जताई कि मच्छरों से बचाव के लिए लोगों की ओर से किए गए इंतजाम नाकाफी रहे। लिहाजा, दो साल से दो हजार के आसपास टिकी मलेरिया मरीजों की तादाद इस बार बढ़ रही है।जिले में फेल्सीपेरम के मरीजों की तुलना में विवैक्स की चपेट में आए मरीज करीब सात गुना ज्यादा हैं। वरिष्ठ विशेषज्ञ डॉ. अखिलेश्वर सिंह के मुताबिक विवैक्स के मामले में 14 दिन तक दवा का सेवन न करना इसकी वजह है। विवैक्स मलेरिया पीड़ित मरीज अगर एक भी दिन दवा की डोज न ले तो पैरासाइट शरीर में निष्क्रिय अवस्था में पड़े रहते हैं। उन्हें स्लीपिंग पैरासाइट कहते हैं जो सक्रिय होकर फिर व्यक्ति को चपेट में ले लेते हैं। दोबारा चपेट में आए मरीज को काटने वाला मच्छर यदि स्वस्थ व्यक्ति को काट ले तो वह भी संक्रमित हो जाता है। प्रभारी सीएमओ डॉ. सुदेश कुमारी ने बताया कि इस साल मौसम मच्छरों के पनपने के लिए अनुकूल है। मलेरिया नियंत्रण के सभी प्रयास हो रहे हैं। फॉगिंग, साफ-सफाई समेत मरीजों को दवा देकर आशा कार्यकर्ता फॉलोअप कर रही हैं। स्वास्थ्य केंद्रों में फीवर वार्ड बनाए गए हैं। लोगों से अपील है कि मच्छरों से बचाव के लिए जरूरी एहतियात अपनाएं।