उत्तर प्रदेश के मैनचेस्टर ऑफ द ईस्ट कहे जाने वाला कानपुर श्रमिकों का मनपसंद शहर बन गया। इन मिलों में तीन पालियों में कपड़ों का उत्पादन होता था।24 मार्च 1803 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने कानपुर को जिला घोषित किया था। समय बीता और कानपुर एक औद्योगिक नगरी के तौर पर विकसित होने लगा। अन्य शहरों से काम की तलाश में आए श्रमिकों को यहां की कपड़ा मिलों में रोजगार मिलने लगा। ब्रिटिश इंडिया कारपोरेशन और नेशनल टेक्सटाइल कारपोरेशन के अधीन लाल इमली, म्योर मिल, एल्गिन मिल एक और दो, कानपुर टैक्सटाइल, लक्ष्मी रतन कॉटन मिल, अथर्टन मिल, विक्टोरिया मिल, स्वदेशी कॉटन मिल की नींव पड़ी और इन मिलों के उत्पादों ने धूम मचाई।मैनचेस्टर ऑफ द ईस्ट कहे जाने वाला कानपुर श्रमिकों का मनपसंद शहर बन गया। इन मिलों में तीन पालियों में कपड़ों का उत्पादन होता था। तीन पाली में एक मिल में लगभग चार से पांच हजार मजदूर काम करते थे। श्रमिकों के लिए श्रमिक कॉलोनियां बस्तीं चली गईं, जिनका अस्तित्व आज भी है। इसके अलावा निजी क्षेत्र की जेके कॉटन, जूट मिल में हजारों की संख्या में श्रमिक काम करते थे। हालांकि यह सभी मिलें अब बंद हो चुकी हैं उनकी जगह अब सूक्ष्म, लघु और मध्यम इकाइयों ने ली है। वे अब श्रमिकों-कर्मचारियों को रोजगार देने का यह सबसे बड़ा जरिया हैं। मौजूदा समय में शहर में 54690 इकाइयां खुल चुकी हैं। इसमें 2,43,967 श्रमिक काम कर रहे हैं। जल्द ही रमईपुर मेगा लेदर क्लस्टर की नींव पड़ने के बाद एक लाख से ज्यादा लोगों को और प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष तौर पर रोजगार मिल सकेगा। शहर का दादानगर, पनकी, फजलगंज, रूमा, चौबेपुर बड़े औद्योगिक हब बन चुके हैं। यहां पर दूध, साबुन, किचन मसाला, प्लास्टिक, फुटवियर, इंजीनियरिंग, पैकेजिंग, बिस्कुट, स्टील, पेन, खाद्य आदि की तमाम इकाइयां हैं। इनके उत्पाद निर्यात भी हो रहे हैं।शहर मौजूदा समय में एमएसएमई का गढ़ बन चुका है। सबसे ज्यादा रोजगार यही क्षेत्र दे रहा है। चमड़ा कारोबार भी बढ़ रहा है। अब चमड़ा के गारमेंट और शेफ्टी शूज भी शहर में बनने लगे हैं। यह बड़ी उपलब्धि है। सैडलरी के 120 से ज्यादा भौगोलिक संकेतांक जीआई मिल चुके हैं।