उत्तर प्रदेश के कन्नौज तालग्राम। थैलेसीमिया एक ऐसी ही आनुवंशिक बीमारी है, जो जानलेवा हो सकती है। डॉक्टरों ने विश्व थैलेसीमिया दिवस पर सही समय सही इलाज से बचाव संभव है और सावधानी बरतने सलाह दी है।सीएचसी प्रभारी डॉ. कुमारिल मैत्रेय ने बताया कि थैलेसीमिया एक ऐसा रोग है जो बच्चों को जन्म से ही मिलता है। तीन माह की उम्र के बाद ही इसकी पहचान हो पाती है। इस बीमारी में बच्चे में खून का ठीक से निर्माण नहीं हो पाता है, जिससे खून की कमी हो जाती है। इस कारण रोगी को बार-बार खून चढ़ाना पड़ता है। खून की कमी से हीमोग्लोबिन नहीं बन पाता। बार-बार खून चढ़ाने के कारण मरीज के शरीर में अतिरिक्त लौह तत्व जमा होने लगता है, जो हृदय में पहुंचकर प्राणघातक साबित होता है।पीएचसी प्रभारी बैसापर डॉ. सिद्धार्थ ने बताया कि थैलेसीमिया एक रक्त रोग है। यह दो प्रकार का होता है। यदि पैदा होने वाले बच्चे के माता-पिता दोनों के जींस में माइनर थैलेसीमिया होता है। तो बच्चे में मेजर थैलेसीमिया हो सकता है, जो काफी घातक हो सकता है। माता-पिता में से एक ही में माइनर थैलेसीमिया होने पर किसी बच्चे को खतरा नहीं होता। जरूरी यह है कि विवाह से पहले महिला-पुरुष दोनों अपनी जांच करा लें। थैलेसीमिया पीड़ित के इलाज में काफी खून व दवाइयों की जरूरत होती है। समय से और सही इलाज करने पर 25 वर्ष व इससे अधिक जीने की उम्मीद होती है। अस्थि मज्जा ट्रांसप्लांटेशन (एक किस्म का ऑपरेशन) इसमें काफी हद तक फायदेमंद होता है, लेकिन इसका खर्च काफी ज्यादा होता है थैलेसीमिया के लक्षण बार-बार बीमार होना, सर्दी, जुकाम रहना, कमजोरी और उदासी रहना, आयु के अनुसार शारीरिक विकास न होना, शरीर में पीलापन बना रहना व दांत बाहर की ओर निकल आना, सांस लेने में तकलीफ होना थैलेसीमिया के लक्षण हैं।