बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल समेत देश के कई हिस्सों में आज जितिया व्रत हो रहा है। मां अपनी संतान की रक्षा के लिए यह निर्जला व्रत रखती हैं। पहले यह लड़कों के लिए होता था, लेकिन अब बदले माहौल में बेटी के लिए मांएं यह व्रत रख रही हैं। मां अपनी संतान के लिए व्रत करती हैं, लेकिन इस व्रत का देवी दुर्गा मां से भी अलग तरह का रिश्ता है। जीवित्पुत्रिका व्रत हिंदी के अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि को रखा जाता है। जागृत देवी स्थलों के लिए इस तिथि की रात्रि का गजब महत्व है, खासकर बिहार के मिथिलांचल में। देश में हर जगह सप्तमी के दिन देवी दुर्गा का पट खुलता है। मतलब, भले ही नवरात्र के पहले दिन से कलश-स्थापना हुई हो लेकिन दुर्गाजी की प्राण-प्रतिष्ठा सप्तमी के दिन होती है।
बंगाली परंपरा में यह षष्ठी के दिन होता है। लेकिन, बिहार और खासकर मिथिलांचल के क्षेत्र में देवी दुर्गा की आराधना-अर्चना की भावना जीवित्पुत्रिका व्रत के साथ ही जाग जाती है। अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि को महिलाएं जितिया व्रत रखती हैं और इसी रात देवी दुर्गा की प्रतिमा में जीवन आता है। बेगूसराय में चंद्रभागा नदी के तट पर बखरी स्थित भगवती शक्तिपीठ की प्रतिमा के बारे में पंडित शशिकांत मिश्र कई ऐसे रहस्य बताते हैं। वह कहते हैं- “अष्टमी की रात माता भगवती की प्रतिमा में मुंड (सिर) लगता है। इसे ‘जी’ पड़ना, यानी जीवन पड़ना भी कहते हैं। खगड़िया के सन्हौली दुर्गा स्थान में भी यही परंपरा है। जहां देवी जागृत हैं और स्थान पर प्रतिमा बनकर आती है, जितिया के दिन ही मंदिर में प्रवेश कराया जाता है और सिर लगाने के साथ पर्दा घेर दिया जाता है।
बखरी के पुरानी दुर्गा स्थान में भगवती के इस आगमन के साथ पूजा शुरू हो जाती है। सिर जुड़ने के बाद वह मां के रूप में होती हैं और नवरात्र में अष्टमी की रात तक इन्हें यहां शक्तिस्वरूपा जाग्रत देवी के रूप में पूजा जाता है।”मिथिलांचल के जागृत देवी स्थलों को दुर्गा स्थान कहा जाता है। यहां मंदिर के अंदर अष्ठी नाम से स्थान बना रहता है। जब देवी की प्रतिमा सिर के साथ इस अष्ठी पर विराजमान हो जाती हैं तो प्राणवान हो जाती हैं। इसके साथ ही पूजा शुरू हो जाती है, हालांकि परदे के अंदर कलाकार ही प्रतिमा की सजावट में लगे रहते हैं और सिर्फ पुजारी ही पूजा करते हैं। श्रीदुर्गा पूजा कल्याण समिति शिव मंदिर (चूड़ी मार्केट, पटना) के पंडित दिलीप कुमार मिश्रा कहते हैं कि “मिथिलांचल में देवी दुर्गा को भगवती कहने की ज्यादा स्थापित परंपरा है। ऐसी कई परंपराएं मिथिलांचल को अलग करती हैं। पटना या कहीं भी नवरात्र में सप्तमी के दिन पट खुलता है, उसी दिन प्राण-प्रतिष्ठा होती है। बंगाली दुर्गा पूजा स्थलों पर एक दिन पहले नवरात्र षष्ठी को देवी की प्राण-प्रतिष्ठा होती है।”