झारखंड के धनबाद जिले में एक दलित परिवार को कथित तौर पर इसलिए बहिष्कृत कर दिया गया क्योंकि उनके बेटे ने एक ग्राम प्रधान (मुखिया) की बेटी से शादी कर ली थी। पुलिस ने बुधवार को यह जानकारी दी। परिवार के सदस्यों ने दावा किया कि नवविवाहित जोड़े ने अपनी जान बचाने के लिए गांव छोड़ दिया, जबकि दूल्हे के माता-पिता को ग्रामीणों ने सार्वजनिक पानी की टंकी से पीने का पानी लाने और तालाब में स्नान करने से कथित तौर पर रोक दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि स्थानीय दुकानदार भी उन्हें खाद्य सामग्री नहीं बेच रहे हैं।पुलिस ने बताया कि यह घटना राजधानी रांची से करीब 200 किलोमीटर दूर बरोरा पुलिस थाने के तहत दरिदा पंचायत के एक गांव में हुई। बरोरा पुलिस थाने के प्रभारी नंदू पाल ने कहा कि उन्हें दूल्हे के पिता महेंद्र कालिंदी से ग्रामीणों द्वारा सामाजिक बहिष्कार का सामना करने की शिकायत मिली है। उन्होंने कहा, ‘हम मामले की जांच कर रहे हैं। अगर शिकायत सही पाई जाती है तो कानूनी कार्रवाई की जाएगी क्योंकि किसी को भी मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता है।’ दलित परिवार से ताल्लुक रखने वाले करण कालिंदी ने दरिदा पंचायत की मुखिया पार्वती देवी की बेटी से शादी कर ली और दोनों पिछले गुरुवार को धनबाद महिला थाने पहुंचे और अपने परिवार के सदस्यों से पुलिस सुरक्षा मांगी। पुलिस द्वारा दोनों परिवारों को बातचीत के लिए बुलाए जाने के बाद उन्होंने शादी स्वीकार कर ली। दुल्हन की मां सुमित्रा देवी ने आरोप लगाया, जब हम अपने गांव लौटे तो स्थानीय निवासियों ने हमारा सामाजिक बहिष्कार करना शुरू कर दिया। गांव वाले हमारे घर आए और हमें धमकी दी कि अगर नवविवाहित जोड़े को गांव में आने की अनुमति दी गई तो हमें गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। उन्होंने हमें पीने का पानी लाने, तालाब में नहाने और स्थानीय दुकानों से खाद्य पदार्थ लेने से भी रोक दिया। रविवार को दूल्हे के परिवार ने कुछ ग्रामीणों के खिलाफ सामाजिक रूप से बहिष्कार करने की शिकायत दर्ज कराई। हालांकि, पार्वती देवी ने दूल्हे के परिवार द्वारा बहिष्कार के आरोप से इनकार किया। उन्होंने कहा,’मैंने अपनी बेटी से सारे रिश्ते तोड़ लिए हैं। मेरा उससे कोई लेना-देना नहीं है। हम एक समाज में रहते हैं और किसी भी व्यक्ति को पीने का पानी लाने और तालाब में स्नान करने से नहीं रोक सकते। लेकिन हर किसी को यह कहने का अधिकार है कि क्या गलत है और क्या सही है।’