अभी हाल ही में बीबीसी के दिल्ली ऑफिस में आयकर विभाग ने अपनी नियमित सर्वे किया, अब लोगो को लग रहा है की बीबीसी के डॉक्यूमेंट्री से डर कर देश का ५६ इंची सीने वाला प्रधानमंत्री बदले की भावना से करवा रहा है, लेकिन वास्तव में ये सर्वे उतना ही निष्पक्ष है जितना बाकि कम्पनियो के साथ होता है।
फिर भी जब बात निकली है तो दूर तक जाएगी ही लाखों-करोड़ों पौंड की धनराशि दुनिया भर के अनेक देशों और संस्थाओं से प्राप्त करता है बीबीसी और उनका उपयोग भारत के ख़िलाफ़ प्रोपेगेंडा चलाने के लिए करता है। यह काम आज से नहीं, न जाने कब से करता रहा है बीबीसी बस यही बात आयकर विभाग को किसी ने देदी उसी की जाँच करने पहुंच गए, प्रधानमंत्री आएंगे जायेगे लेकिन देश विरोध कैसे स्वीकार किया जाय ?
और जब इनसे जुड़े हुए कुछ सवाल इनकम टैक्स विभाग ने किया तो बीबीसी उसका जवाब नहीं दे पाया तो बीबीसी के मुंबई और दिल्ली स्थित कार्यालयों पर इनकम टैक्स विभाग में सर्वे करने के लिए छापेमारी की है।
यह प्राथमिक कार्रवाई है जो 14.02.2023 सुबह 10 बजे से जारी है। बीबीसी ने लंदन स्थित अपने कार्यालय से भारत सरकार की एजेंसी को पूरा सहयोग देने को कहा है।
सबसे ज्यादा दर्द किसे हो रहा है ?
भारत में वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ खड़ा एक इकोसिस्टम है उसे सबसे ज़्यादा पीड़ा हो रही है। लुटियंस मीडिया, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, कम्युनिस्ट पार्टी व कांग्रेस सब मिलकर ऐसे विलाप कर रहे हैं जैसे भारत में इमरजेंसी लग गई हो… मीडिया की आज़ादी पर इसे हमला बताया जा रहा है। इसे बीबीसी द्वारा पिछले महीने एक बेहूदी डॉक्यूमेंट्री जिस पर सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया है उस से जोड़कर देखा जा रहा है, और बदले की कार्रवाई बता रहे हैं।
क्या देश के नियम कानूनों से ऊपर हो गई कोई संस्था…?
जिसके ऊपर टैक्स एवेजन के दर्जनों मामले उसके अपने देश ब्रिटेन में चल रहे हो उसके ऊपर अगर अन्य देश करे तो दिक्क्त क्या है, और फिर जब धन आ रहा है तो उसके स्रोत तो बताने ही पड़ेगे, भारत के किसी भी नागरिक के बैंक खाते में पैसे आते है तो उसे भी बताना पड़ता है, की कहाँ से आये और क्यों आये इसमें इतना हो हल्ला क्यों ?
क्या कहते है देश विरोधी तत्व
वरिष्ठ पत्रकार Nisheeth Joshi जी लिखते हैं कि … बीबीसी के बहाने दरअसल यह संग्राम 2024 की लड़ाई है…
बीबीसी की खबरों में सच के साथ ही भारत विरोध के पुट सदा पाए गए हैं। एक एजेंडा सेट कर उस पर चलने वाले विचारों और विकारों से प्रेरित खबरें और डॉक्यूमेंटरी।
ठीक जिस समय बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री आती है, उसी समय हिंडेनबर्ग की रिपोर्ट आना… संयोग नहीं हो सकता है। ठीक उसी तरह इस अवसर पर ही बीबीसी के दफ्तरों पर आयकर का छापा भी संयोग नहीं हो सकता।
निश्चित तौर पर बीबीसी भी एक टूल के रूप में भारत की राजनीति को प्रभावित करने और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को गुजरात दंगों से जोड़ कर उनकी छवि को खराब करने के एजेंडे पर कायम है। तो सरकार ने भी बीबीसी द्वारा की जा रही वित्तीय अनियमितताओं पर उसकी नकेल कसनी शुरू कर दी है। बीबीसी के हेड क्वार्टर ने अभी तक कोई आरोप इस मुद्दे पर भारत सरकार पर नहीं लगाया है। कारण उसको इंटरनेशनल प्रॉफिट (लाभ) में गड़बड़ी कर धन को दूसरी ओर मोड़ कर टैक्स बचा लेने की चेतावनी नोटिस पहले दी जा चुकी हैं। साफ है कि बीबीसी के इस टैक्स चोरी के प्रयास पर सरकार की आयकर विभाग की नजरें पहले से ही गड़ी हुई थीं।
अब सवाल यह उठता है कि टाइमिंग। तो सरकार दिखा देना चाहती है कि वह पुराना भारत नहीं रहा जहां कमजोर रीढ़ वाले नेताओं को ब्रिटिश मानस दबा लेता था। ठीक श्रीमती इंदिरा गांधी की तरह मजबूत इरादों और भारत राष्ट्र के हित पहले वाली नीतियों वाला नेतृत्व सरकार में है।
बीबीसी को इंदिरा गांधी ने भी बैन किया था
याद करें जब बीबीसी को इंदिरा गांधी ने बैन कर दिया था भारत में 70 के दशक में। उसकी डॉक्यूमेंट्री पर भी रोक लगा दी थी। अब पांच दशक बाद या तो सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस या तो इंदिरा गांधी के उस फैसले को गलत घोषित कर दे या फिर इस बार के आयकर विभाग के एक्शन के परिणाम आने की प्रतिक्षा करे। उसके सामने यह चुनौती है।
अभी तक के परिणाम बताते है को 2014 के पहले या बाद में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से जब जब मोदी के खिलाफ एजेंडा चलाया गया है, वह और अधिक मजबूत हो कर उभरे हैं। जाने क्यों ? यह देश की जनता और मतदाता ही बता सकते हैं। फिलहाल यह सारी लड़ाई 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए हो रही है।
सवाल यह भी खड़ा होता है कि क्या बीबीसी जैसी विदेशी मीडिया को भारत के अंदरूनी राजनीति और मामलों में एजेंडा सेट करने की अनुमति दी जा सकती है या नहीं ?
ब्रिटिश सरकार भी मौन है। वह जानती है कि टैक्स में हेराफेरी निकाल ली गई तो उसका हस्तक्षेप या प्रतिक्रिया भारत से उसके संबंधों में खटास पैदा कर सकता है। इसलिए वह ऐसा काम नहीं करना चाहती।
वामपंथ और कांग्रेस
याद करें बी बीसी के ही भारत में संवाददाता रहे मार्क टली के उस विश्लेषण को जिसमें उन्होंने कहा था कि एक नया भारत खड़ा करने के लिए मोदी की नीतियां पुराने बरगद के पेड़ वाली व्यवस्था को उखाड़ने का काम करने वाली हैं इसलिए उस पुरानी व्यवस्था वाले बरगद के गिरने के पहले छटपटाहट बहुत होगी, उस व्यवस्था को आजादी के बाद से बनाए रखने वालों के लिए। आज वही होता नजर आ रहा है।
याद करें कि वामपंथ और कांग्रेस दोनों को ब्रिटिश मानस ने ही भारत में लॉन्च और स्थापित किया था। अधिकांश अन्य दल कांग्रेस की कोख से पैदा हुए हैं इसलिए उसके संस्कार लिए हुवे हैं। उनकी प्रवृत्तियों में भी एकरूपता है।
यह दो विचारधारा के बीच का राजनीतिक युद्ध भी है। इसमें बीबीसी या किसी अन्य विदेशी मीडिया या शक्ति को हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।