बंजर जमीन पर पसीना बहाकर बरेली के किसानों ने इसे साबित किया है। सैकड़ों किलोमीटर दूर से गगहा ब्लाॅक के सहुआकोल गांव में डेरा जमाए किसानों की उगाई सब्जियां गोरखपुर और आसपास के इलाकों के लोगों का स्वाद बढ़ा रही हैं। किसानों की लाखों की आमदनी भी हो रही है। सात सौ किमी दूर बरेली से आए छह परिवारों की जीवटता से रेतीली जमीन उपजाऊ बन गई है। तेज हवा चलने पर जहां कभी धूल का गुबार उठता था, वह इलाका हरित क्षेत्र बन गया है। यहां से कई जिलों के लोगों को हरी सब्जियां खाने को मिल रही हैं।गगहा ब्लाॅक के आखिरी छोर पर राप्ती नदी के किनारे सहुआकोल गांव बसा हुआ है। नदी के किनारे की जमीन रेतीली है। यहां पर खेती न होने के कारण खर उपजता था। वह खर छप्पर बनाने के काम आता है। बहुत से लोग उसे बेचकर थोड़ी सी आमदनी कर लेते थे। लेकिन, बरेली से अपने छह साथियों के साथ आए याकूब ने 80 एकड जमीन को लीज पर लेकर खेती शुरू की। अब हरी सब्जियां उगाकर यह साबित कर दिया कि जज्बा हो तो कहीं, कुछ भी पैदा किया जा सकता है बरेली जिले के फतेहगंज इलाके के मूल निवासी याकूब ने बताया कि सब्जी की खेती का उनका पुश्तैनी धंधा है। उनके बाप-दादा ने पहले पंजाब, राजस्थान में नदी के किनारे सब्जी की खेती शुरू की। खेती बाड़ी का हुनर सीखने के बाद अब वे गोरखपुर-बस्ती मंडल में नदी के किनारे खेती कर रहे हैं।