भारत में जातिगत आरक्षण को स्थापित करने का मुख्य उद्देश्य समाज में आर्थिक, सामाजिक, और राजनीतिक समानता को प्रोत्साहित करना था। सन् 1950 में संविधान के निर्माणकारियों ने इसे लागू किया गया था, ताकि असमानता और भेदभाव को कम किया जा सके और अनुसूचित जातियों और जनजातियों को समर्थन मिल सके।
आरक्षण के माध्यम से, विशेष रूप से असमानता और अत्यंत गरीबी से पीड़ित वर्गों को विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक और शिक्षा के क्षेत्र में समर्थन प्रदान किया जाता है। इससे समाज में समरसता बढ़ती है और समाज के सभी वर्गों के बीच सामंजस्य बना रहता है।
हालांकि, कुछ लोगों के अनुसार, आरक्षण के प्रचलन में विरोध उभर रहा है, क्योंकि यह अक्सर मेरिट को उपेक्षित करने के रूप में देखा जाता है। इस पर चर्चाएं जारी हैं और समाज में सामंजस्य की बढ़ोतरी के लिए सुधार के प्रासंगिक विचार चर्चा हो रही हैं।