हिमाचल प्रदेश के शिमला मे 20 साल बाद कांगड़ा का किला फतह करने के लिए कांग्रेस विधायक एकजुट हो गए हैं। किसी भी राजनीतिक दल को प्रदेश की सत्ता में पहुंचाने के लिए अहम भूमिका निभाने वाले कांगड़ा जिले के दस कांग्रेस विधायकों ने शुक्रवार को विधानसभा परिसर में भोजनावकाश के दौरान बैठक कर लोकसभा चुनाव के लिए रणनीति बनाई। ओबीसी या ब्राह्मण समुदाय के नेता को ही पार्टी प्रत्याशी बनाने की पैरवी करने पर बैठक में सहमति बनी। कृषि मंत्री चंद्र कुमार या पर्यटन विकास निगम के उपाध्यक्ष रघुवीर सिंह बाली के नाम पर गंभीर चर्चा हुई। विधायकाें ने एकजुट होकर लोकसभा चुनाव जीतने का प्रण लिया। कांगड़ा संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस को आखिरी बार वर्ष 2004 में हुए चुनाव में जीत नसीब हुई थी। इस दौरान चंद्र कुमार सांसद चुने गए थे। उन्होंने उस वक्त भाजपा के हैवीवेट नेता पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार को हराया था। चंद्र ओबीसी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं तो इसलिए भी उन पर दांव खेलने की बात हो रही है। रघुवीर सिंह बाली ब्राह्मण हैं और पूर्व मंत्री दिवंगत जीएस बाली के बेटे हैं। रघुवीर सिंह बाली पहली बार कांग्रेस से विधायक बने हैं तो युवा वोटरों को अपने पक्ष में करने के लिए भी उनके नाम पर सहमति बनाने की बात हो रही है। कांगड़ा संसदीय क्षेत्र में 2009, 2014 और 2019 में कांग्रेस प्रत्याशी को लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। 2009 में भाजपा प्रत्याशी डॉ. राजन सुशांत, 2014 में शांता कुमार और 2019 में किशन कपूर ने जीत दर्ज की थी। 2019 में कांग्रेस ने पवन काजल और 2014 व 2009 के चुनाव में चंद्र कुमार को प्रत्याशी बनाया था। बैठक में कहा गया कि वर्ष 2014 और 2019 में मोदी लहर चली थी। अब हालात बदल गए हैं। कांग्रेस के सभी विधायक मिलकर काम करेंगे तो पार्टी प्रत्याशी की जीत सुनिश्चित होगी। जातीय समीकरणों पर चर्चा करते हुए ओबीसी या ब्राह्मण समुदाय के नेता को मजबूत प्रत्याशी बताया गया। कांगड़ा संसदीय क्षेत्र में इन दो समुदायों के मतदाताओं की संख्या अधिक है। करीब 40 फीसदी ओबीसी तो 25 फीसदी ब्राह्मण वोटर हैं। कांग्रेस विधायकों ने अभी से चुनाव की तैयारियों में जुटने का फैसला भी लिया। मुख्यमंत्री सुक्खू के मजबूत नेतृत्व में सभी नेताओं ने आस्था भी जताई। बैठक में कृषि मंत्री चंद्र कुमार, मुख्य संसदीय सचिव आशीष बुटेल, किशोरी लाल, पर्यटन विकास निगम के उपाध्यक्ष रघुवीर सिंह बाली, सुधीर शर्मा, केवल सिंह पठानिया, मलेंद्र राजन, भवानी सिंह पठानिया, संजय रतन और यादवेंद्र गोमा मौजूद रहे।