हिमाचल प्रदेश में मनाली से लेकर कुल्लू और मंडी तक ब्यास नदी में आई बाढ़ से हुई तबाही का एक बड़ा कारण नदी-नालों के किनारे बेतरतीब निर्माण और अवैध खनन भी है। नियम अनुसार नदी-नालों से 100 मीटर के दायरे में निर्माण पर रोक है। हिमाचल में 25 मीटर तक भवन बनाने की छूट है, लेकिन इसका भी पालन नहीं हो रहा। कच्ची मिट्टी पर बहुमंजिला होटल, होमस्टे और नदी किनारे आलीशान घर बनाने की चाह भारी पड़ रही। भवन बनाने से पहले कई जगह मिट्टी जांच भी नहीं हो रही। औट से लेकर भुंतर-मनाली, लारजी से लेकर सैंज-न्यूजी तथा तीर्थन घाटी में आई बाढ़ ने सरकारी व निजी संपत्ति को करोड़ों का नुकसान पहुंचाया है। वहीं, जानमाल को भारी क्षति पहुंची है। इसका अभी पूरा आंकड़ा सामने नहीं आया है। बाढ़ से हुए नुकसान के बाद खुले मौसम में जो तस्वीरें अब सामने आ रही हैं, वह सभी को हैरान और परेशाना कर रही हैं। तबाही के मंजर को देखकर कुल्लू जिला के बुजुर्ग लोगों को ब्यास नदी में 1995 और 1988 में आई बाढ़ की यादों को ताजा कर दिया है। बाढ़ के पीछे लोगों के अपने-अपने तर्क हैं। लेकिन अधिकतर लोग इसके लिए प्रकृति से अनावश्यक छेड़छाड़ व अवैज्ञानिक ढंग से हो रहे निर्माण को मान रहे हैं। ब्यास, तीर्थन, पार्वती व सैंज खड्ड में आई बाढ़ को लेकर कुछ जानकारों ने अपनी बात रखी।मनाली के 66 वर्षीय महेंद्र पाल ने बताया कि ऐसा मंजर उन्होंने अपने जीवन में पहले नहीं देखा। 1995 में भी ब्यास में बाढ़ आई थी। उस दौरान इतना नुकसान नहीं हुआ था। वह इसके लिए प्रकृति से की जा ही अनावश्यक छेड़छाड़ को जिम्मेदार मानते हैं।बाहंग गांव के 60 वर्षीय जोगी राम ने बताया कि इस बाढ़ ने उनका सबकुछ तहस-नहस कर दिया। इससे पहले 1988 व 1995 में भी बाढ़ आई थी। लेकिन, इस बार ब्यास का जो रौद्र रूप था., उससे वह अभी भी खौफजदा हैं। बाढ़ से बाहंग में भारी नुकसान हुआ है।भुंतर के पीपलागे के रहने वाले 80 वर्षीय गीता राम कहते हैं कि जब भी धरती पर जुर्म बढ़ेगा तो ऐसा ही होगा। ब्यास किनारे नियमों का उल्लंघन कर अवैज्ञानिक ढंग से निर्माण किया जा रहा है। सभी को पता है खतरा है, फिर भी लोग पीछे नहीं हटते हैं। सरकार व प्रशासन कोई कार्रवाई नहीं करता है।पारला भुंतर के 65 साल के योगेंद्र सिंह ने कहा कि कुदरत की माया है। कहा कि प्राकृतिक दोहन से इस तरह की आपदा की घटनाएं हो रही हैं। उन्होंने 28 साल बाद इस तरह का मंजर देखा है। मगर यह तबाही 1995 में आई बाढ़ से कहीं अधिक है।ब्यास के साथ सैंज घाटी के बेकर गांव का भी बाढ़ से नामोनिशान ही मिट गया है। सैंज खड्ड की चपेट में आए बेकर गांव के दस परिवारों के सिर से छत छिन गई है और वह अब अपने रिश्तेदारों के यहां रहने को मजबूर हैं। हालांकि प्रशासन की तरफ से उन्हें फौरी राहत के साथ टेंट व खाद्य सामग्री दी है। गांव बहने का खुलासा शुक्रवार को हुआ, जब लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह, सांसद प्रतिभा सिंह ने सैंज घाटी के बाढ़ग्रस्त इलाकों में नुकसान का जायजा लिया है। विक्रमादित्य ने कहा कि सरकार प्रभावित ग्रामीणों को घर बनाने के लिए जमीन प्रदान करेगी ओर नुकसान का भी मुआवजा देगी। उन्होंने कहा कि सैंज के सभी 70 प्रभावित लोगों की सरकार हरसंभव मदद करेगी। सैंज को फिर से बसाया जाएगा। इससे पहले उन्होंने पार्वती घाटी का भी दौरा किया और लोगों से मिलकर उनका दर्द बांटा। उल्लेखनीय हैं कि सैंज खड्ड की बाढञने न्यूली से लेकर लारजी तक सरकारी व निजी संपत्ति को तबाह कर दिया। इसमें पुलिस थाना सैंज के साथ एनएचपीसी की कालोनी को भी भारी नुकसान पहुंचा है। बेकर गांव में 100 बीघा जमीन के साथ एक पैदल पुल भी बह गया है। इस दौरान जिला कांग्रेस अध्यक्ष सेस राम आजाद, महासचिव घनश्याम शर्मा मौजूद रहे।