जब हनुमान जी ने समुद्र पार किया, तो समुद्र ने उन्हें रघुपति जी का दूत जानकर सम्मान दिया। परंतु जब राम स्वयं समुद्र तट पर पहुँचे, तो समुद्र ने तीन दिनों तक मौन धारण कर रखा। यह विरोधाभास क्यों? इसका उत्तर सुंदरकांड में स्वयं समुद्र देवता देते हैं।
हनुमान जी वायु मार्ग से गए थे, जबकि राम एक याचक के रूप में, साधारण मानव की मर्यादा निभाते हुए, समुद्र से रास्ता मांग रहे थे। राम ने धैर्य दिखाया, जबकि लक्ष्मण ने कहा, “देव देव आलसी पुकारा।” लेकिन राम ने लक्ष्मण को समझाया कि मर्यादा के अनुरूप कार्य करना चाहिए। प्रारंभ में बल का उपयोग करना उचित नहीं है।
समुद्र का मौन और राम का क्रोध
तीन दिन बाद भी समुद्र से कोई उत्तर नहीं मिला, तब राम ने क्रोधित होकर अग्नि बाण उठाया। समुद्र में हलचल मच गई और समुद्र देव प्रकट होकर बोले:
“हम जड़ हैं, हमें समझने में समय लगता है। यदि आप हमें सुखा देंगे, तो जलचरों का क्या होगा? इससे आपकी भी कोई महिमा नहीं बढ़ेगी। हम तो आपकी ही माया से उत्पन्न हैं।”
यहाँ समुद्र देवता ने एक विवादित चौपाई का उल्लेख किया:
“ढोल गँवार शूद्र पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी।”
इसका अर्थ अक्सर गलत समझा जाता है। ताड़न का अर्थ यहाँ शिक्षा है, न कि दंड या पीटने का।
ताड़न का दार्शनिक अर्थ
ताड़न का अर्थ हर वर्ग के लिए अलग-अलग है।
- ढोल को तराशकर और सही से गांठें बांधकर सुर निकाला जाता है।
- गँवार मूर्खता का प्रतीक है, जिसे शिक्षा देकर सही मार्ग दिखाया जाता है।
- शूद्र से आशय सेवक वर्ग है, जो व्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
- नारी जो अधिकतर घर तक सीमित रहती थी, उसे भी शिक्षा की आवश्यकता है या उसके बिना कहे उसके भाव को समझने की बात है।
यहाँ समुद्र यही कहना चाहता है कि ताड़न का तात्पर्य उचित ढंग से समझाना और मार्गदर्शन करना है। यदि इसे मात्र पिटाई या दंड के रूप में देखेंगे, तो चौपाई का भावार्थ खो जाएगा।
तुलसीदास जी की दृष्टि
तुलसीदास जी ने बालकांड में लिखा है:
“मैं लीक से हटकर काव्य लिख रहा हूँ, पाठक मेरी इस धृष्टता को क्षमा करेंगे।”
तुलसीदास जी ने जनभाषा में भक्ति काव्य लिखा ताकि हर वर्ग इसे समझ सके। सुंदरकांड में हर चौपाई में जीवन का कोई न कोई संदेश छिपा है।
जैसे:
“गयउ दसानन मन्दिर माही, अति विचित्र कह जात सो नाही।
भवन एक पुन दीख पठावा हर मन्दिर ते भिन्न बनावा।”
रावण के महल को मंदिर और विभीषण के घर को भवन कहना भी रूपक और अलंकार का प्रयोग है।
निष्कर्ष
तुलसीदास जी ने शब्दों के माध्यम से जीवन के गहरे सत्य प्रस्तुत किए हैं। यदि हम केवल शब्दों में उलझे रहेंगे, तो सुंदरकांड के भावों को नहीं समझ पाएंगे। यह हमें सिखाता है कि धैर्य, मर्यादा, और सही दृष्टिकोण से हर समस्या का समाधान होता है।
समुद्र ने राम को यही संदेश दिया:
“आप समर्थ हैं, हमें दंड दे सकते हैं, परंतु यह आपकी महिमा को नहीं बढ़ाएगा। धैर्य से ही सही समाधान निकलेगा।”
तुलसीदास जी का काव्य जीवन के गहन अर्थों को समझने की प्रेरणा देता है। जो इसे हृदय से ग्रहण करेगा, वह इसमें रम जाएगा; जो कुतर्क करेगा, वह उलझकर रह जाएगा।