राजस्थान में आदिवासी बाहुल्य जिले बांसवाड़ा में सिद्ध माता श्री त्रिपुर सुंदरी का शक्तिपीठ मंदिर है, जो 52 शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता है कि मंदिर में मांगी गई मनोकामनाएं देवी पूर्ण करती हैं, यही वजह है कि आमजन से लेकर नेता तक मां के दरबार में पहुंचकर हाजिरी लगाते हैं।
बांसवाड़ा जिले से 18 किलोमीटर दूर तलवाड़ा गांव में अरावली पर्वतामाला के बीच माता त्रिपुरा सुंदरी का भव्य मंदिर है। मुख्य मंदिर के द्वार के किवाड़ चांदी के बने हैं। मां भगवती त्रिपुरा सुंदरी की मूर्ति अष्टदश यानी 18 भुजाओं वाली है। मूर्ति में माता दुर्गा के 9 रूपों की प्रतिकृतियां अंकित हैं। मां सिंह, मयूर और कमल आसन पर विराजमान हैं। नवरात्र में त्रिपुर सुंदरी मंदिर के दर्शनों के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है, यहां मेले जैसा माहौल रहता है।
करौली जिले में कैला देवी मंदिर सैकड़ों सालों पुराना मंदिर है। इस मंदिर में चांदी की चौकी पर स्वर्ण छतरियों के नीचे दो प्रतिमाएं हैं। एक बाईं ओर है, उसका मुंह कुछ टेढ़ा है, वो ही कैला मइया हैं, दाहिनी ओर दूसरी माता चामुंडा देवी की प्रतिमा है। कैला देवी की अष्ट भुजाएं हैं। इस मंदिर को उत्तर भारत के प्रमुख शक्तिपीठ के रूप में ख्याति प्राप्त है। इस मंदिर से जुड़ी अनेक कथाएं यहां प्रचलित हैं।
राजस्थान में बीकानेर के देशनोक में करणी माता का प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर में बड़ी संख्या में चूहे रहते हैं इसलिए इसे चूहे वाली माता का मंदिर या रैट टैम्पल भी कहा जाता है। मान्यता है कि इन चूहों में भी कुछ चूहे सफेद हैं। मंदिर में सफेद चूहों को देखना अति शुभ माना जाता है। ये देवी का चमत्कार ही माना जाता है कि इतने सारी चूहे होने के बावजूद आज तक यहां कोई बीमारी नहीं फैली। नवरात्र पर यहां भारी संख्या में श्रद्धालु दर्शन और मनोकामना लेकर पहुंचते हैं।देशनोक करणी माता का मंदिर संभवतया देश का ऐसा इकलौता मंदिर है जहां पर करीब 20 हजार चूहे भी रहते हैं। सफेद चूहों को मां करणी का वाहक माना जाता है।