उत्तर प्रदेश में इटावा। इस बार जिले में सामान्य बारिश होने की वजह से धान की फसल को लेकर किसानों में खुशी थी, लेकिन धान की बालियों पर कीट ने हमला बोलना शुरू कर दिया है। यह बालियों के रस को चूस कर उन्हें खोखला कर रहे हैं। ऐसे में किसानों को बड़ा नुकसान होने की चिंता सता रही है। सबसे ज्यादा 1718 वैरायटी के धान में कीट लग रहे हैं।अक्तूबर के पहले पखवारे में कुछ किसानो के धान पक गए हैं, लेकिन 60 से 70 प्रतिशत के करीब किसान ऐसे है जिन्होंने धान की पिछैती फसल बोई है। इनके धान में अभी बालियां निकल रही हैं।
मौसमी परिवर्तन के चलते इन बालियों में कई प्रकार से रोग लगने शुरू हो गए हैं। इससे किसानों को नुकसान उठाना पड़ सकता है। 1692, 1718, 1847 और 1509 प्रजातियों का धान इस बार जिले में 16 हजार हेक्टेयर बोया गया है। इनमें 1718 प्रजाति में सबसे ज्यादा कीटों का प्रभाव देखने को मिल रहा है। इसके प्रभाव से धान की बाली सूखकर सफेद हो जाती हैं और उसमें दाना भी नहीं पड़ पाता है। तना छेदक सूड़ी धान की कलिकाओं की पत्तियां छेद कर अंदर ही अंदर तने को खोखला कर गांठ तक चली जाती हैं। प्रकोप होने पर बालियां नहीं निकलती हैं। जो बाली निकली भी हैं, वह सूखकर सफेद हो रही हैं। उसमें दाने नहीं बनते हैं। किसानों के अनुसार इससे फसल की पैदावार पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। जिला कृषि अधिकारी कुलदीप राणा ने बताया कि धान की फसल को गंधी कीट रस चूसक से बचाने के लिए 100 एमएल इमिडा क्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत की दर से स्प्रे करें। दस किलो केनवेल रेट 0.4 प्रतिशत की दर से बुरकाव करें। तना छेदक से बचाव के लिए लेम्बडा सायहेलोथिन पांच प्रतिशत 250 एमएल प्रति एकड़ का छिड़काव करें। उन्होंने बताया कि यदि ये दोनों समस्याए एक ही खेत में हैं तो लेम्बडा सायहेलोथिन और थायमेंथाक्सिन 200 एमएल प्रति एकड़ का छिड़काव करें। कृषि विशेषज्ञ डॉ. विजय बहादुर जायसवाल के मुताबिक, धान की बालियां निकलने के बाद कुछ कीट लगते हैं।
यह बालियों में बैठकर दाना बनने से पहले ही बालियों के अंदर का रस चूस लेते हैं। इससे दाना नहीं बनता है। किसान इसका जैविक और रसायनिक उपचार कर कीटों से अपनी फसल को बचा सकते हैं। जानकार बताते हैं कि यदि शीघ्र इस बीमारी की रोकथाम के उपाय नहीं किए गए तो दस से 15 फीसदी उपज में कमी आ सकती है। गलसा बीमारी में पत्तियों पर नाव की आकृति के भूरे धब्बे हो जाते हैं।-नगला तुला निवासी किसान इसरार ने कहा कि खेत में बाली निकल रही है। डर लग रहा है कि कहीं बाली पर रोग न लग जाए। आसपास कई खेतों में रोग लगा है। ऐसे में कृषि जानकार के पास जाकर परामर्श लेंगे। टड़वा स्माइलपुर निवासी किसान सोनू दुबे ने कहा कि फसल में रोग के कारण कीट बाली का रस चूस लेते हैं। इस समय धान में बाली निकल रही है, लेकिन साथ ही कीट का प्रकोप होने लगा है।
इससे धान की पैदावार भी घटेगी। बीते वर्ष 1718 धान की प्रजाति की कीमतों में अच्छा उछाल देखने को मिला था इसे देखते हुए इसबार जिले में इसका रकबा बढ़ा है। जिले में चार हजार हेक्टेयर जमीन में इस प्रजाति को बोया गया है। कृषि जानकार बताते हैं कि इस प्रजाति का तना मुलायम होता है। इसके कारण इसमें कीटों का प्रकोप अधिक रहता है। अगेती धान की फसल पक चुकी है। पिछैती धान की फसल में बालियां निकल रहीं है। इस समय किसानों को फसलों में खास ध्यान देने की जरूरत है। धान में कीट लगने की शिकायत मिल रही है तो विभाग की ओर से कृषि रक्षा इकाइयों से दवा व सुझाव अपनाकर फसलों को बचाया जा सकता है