उत्तर प्रदेश के इटावा ज़िले मे ताखा। सरसई नावर वेटलैंड अनदेखी का शिकार बना हुआ है। तीन साल पहले रामसर साइट में शामिल होने के बावजूद अभी तक एक भी बार इस साइट के लिए शासन की ओर से बजट नहीं मिल सका है। वहीं बनी व्यवस्थाएं भी उदासीनता के चलते बिगड़ती जा रहीं हैं। जिससे विदेशी परिंदे भी यहां से नाता तोड़ रहे हैं।जनपद के सरसई नावर में स्थित झील को वर्ष 2020 में रामसर साइट में शामिल किया गया, लेकिन सरकार की अनदेखी के चलते अभी तक बजट नहीं मिल सका। जिम्मेदारों की उदासीनता व्यवस्थाओं को भी कमजोर कर रही हैं। वहीं लगातार कब्जा बढ़ने से वेटलैंड भूमि कम होती जा रही है। सरसई नावर वेटलैंड 161 हेक्टेयर क्षेत्र में था। इसमें राजस्व विभाग की पट्टे वाली जमीन भी शामिल थी। पट्टे वाली जमीनों पर कब्जा होने के साथ ही अन्य लोगों का भी खाली पड़ी जमीन पर कब्जा बढ़ गया है। इससे अब वेटलैंड का क्षेत्रफल सिमटकर 40 हेक्टेयर ही रह गया। बड़ी संख्या में यहां की जमीन पर आसपास के गांव के लोग खेती के प्रयोग में ले रहे है। बारिश का पानी तालाबों ठहरने का सही इंतजाम न होने से पक्षियों के आने के समय तक पानी कम हो जाता है। इससे विदेशी पक्षियों की संख्या दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है। इस साल ही मार्च तक अपने देशों को लौटने वाले पक्षी फरवरी में ही लौट गए हैं। हालांकि इसके पीछे मौसम परिवर्तन भी बड़ी वजह माना जा रहा है।वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ. राजीव चौहान ने बताया कि कब्जा हो रही जमीन को प्रशासन को खाली कराना चाहिए। वहीं बारिश के पानी को संरक्षित करने का इंतजाम किया जाए। इससे विदेशी पक्षियों के आने का सिलसिला और बढ़ेगा। अभी बारिश का पानी संरक्षित न हो पाने से पानी कम होता है और पक्षी अन्य स्थानों पर चले जाते हैं।झील में बड़ी संख्या में प्रदेश का राज्य पक्षी सारस यहां अठखेलियां करते मिल जाएंगे। यहां सारस के अलावा अन्य एक दर्जन से अधिक प्रजातियों के पक्षी दूसरे देशों से नवंबर माह में पहुंचते हैं और करीब पांच महीने तक प्रवास करते हैं। इनमें गॉडविल, पेंटेड स्टार्क, ओपन विल स्टार्क, ब्लैक हेड आइविश, बेकुर, स्पॉट विल डक, पिनटेल, नाइट हेरोन, रडी शेल्डक जैसे विदेशी पक्षी यहां पहुंचते हैं, लेकिन इस वर्ष फरवरी में तापमान बढ़ने से विदेशी पक्षी समय से एक महीने पहले ही लौट गए। लगातार मौसम में हो रहे बदलाव के चलते पक्षियों की संख्या में गिरावट देखी गई है।वेटलैंड की समस्याओं पर एक नजर पानी की कोई स्थाई व्यवस्था नहीं, गर्मियों में बंजर हो जाती जमीन। वर्ष के सात महीने बंजर रहता है वेटलैंड। जहां आसपास के गांव के लोग चराते हैं पालतू जानवर। वेटलैंड की जमीन का सीमांकन कराकर नहीं कराई गई मेड़बंदी। वेटलैंड की समतल जमीन को नहीं कराया गया गहरा। इससे पानी को संरक्षित नहीं हो पा रहा है।वेटलैंड में जंगली जानवरों का खतरा बना रहता है जो पक्षियों के शिकार के लिए झाड़ियों में छिप कर बैठ जाते है।