एक फ़िल्मी एक्टर ने हाल ही में बयान दिया है की मुघलो से नफरत है तो ताज महल, लाल किला, कुतुबमीनार जैसी ऐतिहासिक और यूनेस्को की विश्व विरासत सूचि में शामिल स्मारकों को तोड़ दो जिनको इतिहासकारो ने भरपूर कोशिश से साबित किया है की ये मुघलो ने बनाये है, ये बात अलग है की कुछ स्मारकों के प्रारम्भ में मंदिर होने के प्रमाण आर्किलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने बाद में खोज निकाले।
सब सवाल ये उठता है की क्या ये स्मारक सिर्फ मुघलो ने ही बनवाये थे ? इनके निर्माण में भारतीय जन मानस का कोई योगदान नहीं है, क्या ये वास्तव इ वो बनवा सकते थे?, क्या मुग़ल विदेशी आक्रांता नहीं थे? क्या उनका उद्देस्य यहाँ पर धर्मपरिवर्तन करवाना नहीं था? क्या मारकाट नहीं था ?
अरे मुग़ल भाग कर आये थे, उनका काबुल में कुछ बचा नहीं था उनकी मजबूरी थी यहाँ बने रहना और यहाँ की नमकहराम जनता जो उनके साथ मिलगई, नहीं तो जैसे नादिरशाह , तैमूर, गोरी और गजनवी लौट गए थे लूट कर ये भी चले जाते, बड़े आये मुघलो का महिमामंडन करने वाले।
क्या भारत में सिर्फ हिन्दू मुस्लिम ही होता ? महिला पुरुष नहीं होता ? सवर्ण और दलित या पिछड़ा नहीं होता, क्या कोई पुरुष या सवर्ण ये बोल सकता है की अगर पुरुषो से या सवर्णो से इतनी ही नफरत है तो उनके बनाये ये छोड़ दो, वो छोड़ दो, या उनके टैक्स के पैसे से सुविधाएं लेने बंद कर दो, वास्तव में सवर्ण और पुरुष ये नहीं बोल सकते क्युकी ये बात बहुत गिरी हुयी मानसिकता को दर्शाने वाली है।
खैर, इस फ़िल्मी एक्टर को मैंने पहली बार मेने टीवी यानि दूरदर्शन पर आयी फिल्म हीरो हीरालाल में देखा था, जी हां ये हमारे देश के पद्म भूसण से सुशोभित फ़िल्मी कलाकार नसीरुद्दीन ही है जिन्होंने कुछ कुछ अपनी सचाई सरफरोश में दिखाई थे जिसे हम लोग उस समय समझ ही नयी पाए।
वैसे तो ये उत्तर प्रदेश के जिले बाराबंकी में स्वतंत्रता के बाद पैदा हुए थे, लेकिन शायद ज्यादा सम्मान मिलने का कारण थोड़ा मानसिक रूप से विक्षिप्त हो गए है, और इनका भारत के पडोसी देश के प्रति प्रेम बढ़ते बढ़ते पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान से तजाकिस्तान के रस्ते होते हुए अब उज्बेकिस्तान के भगोड़े तक जा पंहुचा है, जिसे मुग़ल कहते है।
एक तो पहले ही हमारा देश का स्तरहीन इतिहासकार उनको महिमामंडित कर चूका है और फ़िल्मी जगत में भी आप देखते होंगे की कैसे फिल्मो में बनिया को सूद खोरी या मिलावट का सामान बेचने वाला दिखाया जाता रहा है, ब्राह्मण को कुटिल या पाखंडी और भगवान की भक्ति का दिखावा करके जनता हो लूटने वाला या जो भी घिनोना रूप दिखाना संभव हो दिखा देते है, क्षत्रिय यानि ठाकुर को जुल्मी या फिर कुकर्मी दिखाया गया होगा।
लेकिन अगर बात चलेगी किसी मुल्सिम की तो पांच टाइम का नमाजी, निस्वार्थ, ईमान का एकदम पक्का, वचन निभाने वाला और जितनी भी एक आदर्श नागरिक में गन हो सकते है वो सब दिखा कर भी उसके समाज से उपेक्षित दिखा कर संदेश देते है की अल्लाह का नेक बंदा नेकी की राह नहीं छोड़ता चाहे उसके ऊपर कितना भी जुल्म हो।
अब इस महिमा मंडन को लोगो ने समझ लिया है, दूसरे ऑनलाइन फिल्मे दिखने लगी है, तीसरे मनोरंजन के साधन बहुत होने से फिल्मे लोग कम देख रहे है, जिससे ऐसे घटिया विचार वाले लोगो पर निर्देशक पैसे लगाने से भी डरते है और यही डर घृणा में बदल रही है और ऐसे बयानबाजी करने में लग जाते है।
मूल भाव ये है मेरा की देश में टारगेट हमेशा हिन्दुओ को, सवर्णो को या फिर हिन्दू सवर्ण पुरुषो को ही अलग अलग तर्क और विचारो के साथ किया जाता है, जो की आज के समय से सबसे ज्यादा उपेक्षित होकर भी अपना और अपने परिवार के साथ साथ देश के कल्याण में लगा हुआ है।