संभल में जामा मस्जिद सर्वे के दौरान हुई हिंसा भारतीय समाज और कानून-व्यवस्था पर कई गंभीर प्रश्न खड़े करती है। इस घटना को कानून के राज के खात्मे के संकेत के रूप में देखना होगा तभी इसे व्यापक संदर्भ में समझा जाए।
घटना का विश्लेषण:
कानून का पालन और व्यर्थ का असंतोष:
कानून व्यवस्था बनाए रखना राज्य के साथ साथ नागरिको की भी जिम्मेदारी है। अगर कानून-व्यवस्था के नाम पर कोई पक्षपात या अनावश्यक दबाव महसूस होता है, तो इसके विरोध का एक स्वाभाविक तरीका है लेकिन एक समुदाय विशेष विरोध का स्वरूप हमेशा हिंसक ही अपनाता है जो नहीं होना चाहिए।
सर्वे की प्रक्रिया और उद्देश्य:
जामा मस्जिद जैसे धार्मिक स्थलों का सर्वे किसी कानूनी कारण से हो रहा है, तो इसे निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से ही किया जा रहा। लेकिन किसी समुदाय को इस ज़रा से बात पर भी यही महसूस होता कि उनकी धार्मिक भावनाओं पर आघात किया जा रहा है।
हिंसा और कानून-व्यवस्था:
किसी भी मुद्दे को हल करने के लिए हिंसा का सहारा लेना न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि यह सामाजिक समरसता को भी नुकसान पहुंचाता है। ऐसी घटनाएं न केवल पुलिस प्रशासन की कार्यक्षमता पर सवाल उठाती हैं, बल्कि समाज के सामूहिक विवेक पर भी प्रश्नचिह्न लगाती हैं।
क्या यह कानून के राज के खात्मे का संकेत है?
संस्थानों की भूमिका:
आज तक न जाने कितने ही सनातन धर्म के मंदिरो का सर्वे हुआ, उनको तोडा भी गया विस्थापित भी किया गया लेकिन सनातन धर्म को मानने वालो ने तो कभी हिंसा की और न ही प्रशासनिक और कानूनी संस्थाएं पर अपनी भूमिका को निष्पक्षता और प्रभावशीलता से निभाने में विफलता का आरोप लगाया हैं, लेकिन एक समुदाय विशेष ऐसे प्रतिक्रिया देती है जैसे सबसे ज्यादा जुल्म, और पक्षपात उनके साथ ही हो रहा है और तो और इस जनता का कानून पर विश्वास खत्म हो गया है और अब उनके पास मरने और मारने के अलाबा कोई विकल्प नहीं बचा है सकता है। इस घटना में प्रशासनिक चूक, संवाद की कमी, या संवेदनशीलता की अनदेखी नहीं थी फिर भी इस समुदाय का कानून-व्यवस्था के प्रति असंतोष इस समुदाय के प्रति “संदिग्ध आचरण वाली कौम है” को जन्म दे सकती है।
जनता की जिम्मेदारी:
कानून का पालन हर नागरिक की जिम्मेदारी है। यदि हिंसा को समाज में स्वीकृति मिलने लगे, तो यह निश्चित रूप से कानून के राज के लिए खतरा है।
राजनीतिक हस्तक्षेप:
यदि इस तरह की घटनाओं का उपयोग राजनीतिक लाभ के लिए किया जाता है, तो यह कानून के राज को और कमजोर करता है।
समाधान का रास्ता:
संवाद और समन्वय:
प्रशासन को ऐसी परिस्थितियों में संबंधित समुदायों के साथ संवाद करना चाहिए ताकि किसी भी प्रकार के तनाव को कम किया जा सके।
न्यायिक प्रक्रिया का सम्मान:
किसी भी मुद्दे को कानूनी और शांतिपूर्ण तरीके से हल करना चाहिए।
समानता का भाव:
कानून का राज तभी प्रभावी होता है जब सभी नागरिकों और समुदायों को समान रूप से न्याय और सुरक्षा मिलती है, को सबसे ज्यादा संसाधन और सुविधाएं मिल रही है फिर भी इसका असंतोष जस का तस है, और हिन्दुओ के मंदिर तोड़ दिए जाते है फिर भी वो विचार रोजी रोटी की जुगाड़ में लगा अपने धर्म की दुर्दशा नहीं देख पा रहा है ।
जामा मस्जिद सर्वे के दौरान हुई हिंसा निश्चित रूप से एक गंभीर और देश के प्रति विश्वासघाती घटना है, इसीलिए इसे इस समाज से जुड़े मामलो में हम कह सकते है की यहाँ भारतीय कानून के राज के अंत के रूप में देखना ही होगा, आज तक किसी हिन्दू समाज के लोगो में इतनी हिम्मत नहीं हुयी की सुनियोजित तरीके से सेना और पुलिस और प्रसाशनिक अधिकारिओ पर हमला कर सके वो भी धार्मिक आस्था के नाम पर । यह घटना प्रशासन, न्यायपालिका, और विधायिका तीनों के लिए आत्ममंथन का मौका है कि कैसे इस समुदाय विशेष से जुड़े मुद्दों में भी कानून के राज को मजबूती दी जाए और हिन्दू समाज में भी विश्वास को बहाल किया जाए की उनके भी आस्था के केंद्र सुरक्षित है ।