ये बात जो मै कहने जा रहा हूँ, वो बात बहुत से लोगो को हजम नहीं होगी, भले ही वो खुद को कितना भी उदारवादी, समाजवादी और पंथनिरपेक्ष घोषित करने में लगे रहे, वास्तव में आज देश की कानून व्यवस्था इतनी जर्जर है की अगर आप समुदाय विशेष से समबन्धित नहीं तो सरकार, नेता और मीडिया आपके ध्यान भी नहीं देगी, सवर्णो अत्याचार की रिपोर्ट भी नहीं लिखी जाती है जिसका सबसे बड़ा उदाहरण कश्मीर, कैराना और संभल जैसे कितने गाओं नगर शहर है, लेकिन चलिए देश में किसी को तो न्याय मिला बात है, बाकी सवर्ण शुरू से ही भगवान भरोसे रहा है और आगे भी रहेगा
ये बात है आज से 44 साल पुराने दिहुली जो मैनपुरी जिले के पास के फिरोजाबाद जिले के गांव है उसमे हुए नरसंहार की इस मामले में आज दोपहर बाद मैनपुरी जिला न्यायालय में सजा सुनाई जाएगी। यह घटना 18 नवंबर 1981 को उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के दिहुली गांव में हुई थी, जब डकैतों ने उत्तर प्रदेश के गांव पर हमला कर 24 लोगो की हत्या कर दी थी।
इस मामले में तीन आरोपियों—कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल—को दोषी करार दिया गया है। इनमें से कप्तान सिंह और रामसेवक को आईपीसी की धारा 302 (हत्या), 307 (जानलेवा हमला), 148 (घातक हथियारों से लैस उपद्रव), 149 (गैरकानूनी सभा), 449 (गृह अतिचार) और 450 (किसी के घर में घुसकर अपराध) में दोषी पाया गया है, जबकि रामपाल को धारा 120बी (आपराधिक षड्यंत्र), 302 (हत्या) और 216ए (अपराधियों को शरण देना) में दोषी ठहराया गया है।
वास्तव में इसघटना के समय, डकैतों ने गांव पर हमला कर पुरुषों, महिलाओं और बच्चों सहित 24 निर्दोष लोगों की हत्या की थी। इस नरसंहार में मारे गए लोगों में ज्वाला प्रसाद, रामप्रसाद, रामदुलारी, श्रृंगारवती, शांति, राजेंद्री, राजेश, रामसेवक, शिवदयाल, मुनेश, भरत सिंह, दाताराम, आशा देवी, लालाराम, गीतम, लीलाधर, मानिकचंद्र, भूरे, कु. शीला, मुकेश, धनदेवी, गंगा सिंह, गजाधर और प्रीतम सिंह शामिल थे।
सोचिये जरा इस मामले में कुल 17 आरोपी नामजद थे, जिनमें से 13 की मौत हो चुकी है, जबकि एक आरोपी ज्ञानचंद्र उर्फ गिन्ना अब भी फरार है। अदालत ने उसके खिलाफ स्थायी वारंट जारी कर दिया है।
इस जघन्य वारदात के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी दिहुली गांव का दौरा किया था और गांव में पैदल घूमकर स्थिति का जायजा लिया था।
आज दोपहर बाद मैनपुरी न्यायालय में दोषियों की सजा का ऐलान किया जाएगा। इस फैसले का गांववासियों और पीड़ित परिवारों को लंबे समय से इंतजार था, लेकिन किसे न्याय मिला और किसे सजा हुयी ये वास्तव में सोचने वाली बात है, क्युकी 44 न्याय मिला तो ये भी एक तरह से अन्याय ही माना जायेगा