दिक्कत नहीं है, बल्कि जानबूझकर बनाई गई है, क्योंकि सनातन धर्म में धर्मग्रंथ सार्वजानिक है और सभी इसकी व्याख्या करने को स्वतंत्र है, लेकिन अगर गलत व्याख्या करने वाले का स्तर व्यापक हो तो वो व्याख्या भी अतिव्यापक और सत्य मान ली जाती है भले ही कितनी ही भ्रामक क्यों न हो, जैसे आज लोगो को संविधान का दिया आरक्षण सही लग रहा है हो सकता है सौ साल बाद यही भेदभाव का एक आधार माना जाने लगे तब क्या हम संविधान निर्माताओं को फांसी चढ़ा देंगे ?
नहीं ऐसे ही इस लाइन को भ्रामक और नकारत्मक रूप दिया गया है क्युकी यहाँ ताड़ना को बिना सोचे समझे प्रताड़ना से बदल दिया गया है, आज बिना मतलब में ही वैदिक सतानत धर्म के शूद्र को SC ST OBC मान लिया गया है, जबकि वैदिक या सनातन धर्म में वर्णित शूद्र कर्म के आधार पर था, लेकिन आज फायदे के लिए जानबूझकर जन्म से जोड़ दिया गया है, जो की वास्तव में गलत ही है।
यहाँ पर अगर आप ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे की कही भी प्रताड़ना का अनुभव नहीं होगा, वल्कि एक समझदारी के साथ सामंजस्य बिठाने की अनुभूति है, लेकिन समस्या ये हुयी की नकारत्मक विचार के लोगो ने ताड़ना को बड़ी चतुराई से प्रताड़ना से बदल कर पूरा भाव ही बदल दिया, क्युकी सनातन धर्म में कोई गलत व्याख्या के लिए दंड विधान नहीं है जैसे इस्लाम या अन्य पंथो में है।
क्या है सही अर्थ इस लाइन का ?
सबसे पहले तो आप ताड़ना को समझिये, ताड़ना को आप ऐसे भी समझ सकते है, क्या ताड़ रहे हो ? पुलिस को देख कर चोर ताड़ गए ? यानि की समझ गए या गहराई से समझ गए, यही वास्तविक अर्थ है, क्युकी सबसे पहले ढोल की बात की है अगर ढोल को बजाना नहीं समझ पाए तो कभी स्वर नहीं बनेगा, बस अगर इतनी बात आप समझ गए तो मामला एकदम सही है
अब बात करते है गवार की, तो आप सोचिये की आपकी नजर में गवार कौन होगा ? शायद एक ऐसा व्यक्ति जो कुछ जानता भी नहीं और मानता भी नहीं, बस अपनी अपनी ही हांकेगा ? तो ऐसे व्यक्ति से आप कैसे खुद को बचाएंगे या अपने समय को बचाएंगे क्युकी उसको समझना ही नहीं है आप कुछ भी कर लो, तो समझदारी यही होगी की आप अपना काम करो और उससे मत उलझो।
अब बात आती शूद्र की, तो शूद्र का मतलब है वर्तमान में आपका व्यक्तिगत सेवक जैसे आपका ड्राइवर, आपका माली, आपका रसोइया, आपके घर में काम करने वाला व्यक्ति, या ऐसे ही जो बिना किसी तकनिकी शिक्षा के काम करते है और जिनके मन में कभी भी निकाले जाने का भय रहता है, ऐसे लोग बहुत बार अपनी या अपने परिवार की बड़ी से बड़ी परेशानी मालिक को नहीं बताते की कही मालिक नाराज होकर काम से न निकाल दे, ऐसे में मालिक का ही दायित्व है की उसकी सूरत देख कर समझ जाए की कोई दिक्कत है ऐसा क्यों करना चाहिए मालिक को ? ऐसा इसलिए करना चाहिए क्युकी अगर आपका ड्राइवर किसी व्यक्तिगत समस्या में फसा है और आपकी कार चलाते समय उसका फोकस सही नहीं है तो एक्सीडेंट की सम्भावनाये बहुत ज्यादा है, या खाना बनाने वाले से कुछ भी ऐसी गलती हो सकती है जो आपका स्वास्थ बिगाड़ सकती है, परिणाम में आप उसे निकाल सकते है लेकिन अगर आप उसकी समस्या का निदान कर देंगे तो सब सुखी बने रहेंगे, अब यही बात लोगो को समझ नहीं आती है, उन्होंने नकारत्मक अर्थ निकाल दिया की प्रताड़ित करते रहो, सोचो ये कैसे संभव है की आप अपने व्यक्तिगत सेवक को प्रताड़ित करके एक अच्छी सेवा ले सकते है ? विचार कीजियेगा और समझियेगा।
अब बात आती है पशु की, तो आप कितने भी बलशाली हो एक पशु से ज्यादा आपके अंदर शारीरिक शक्ति नहीं है, अब जो लोग पशु पालन के व्यवसाय में है, अगर हर पशु पर शारीरक बल का प्रयोग करेंगे तो न पशु अपना भोजन करेगा और न ही आपके लिए काम करके आपका जीवन यापन का साधन बनेगा, परिणाम पशु अस्वस्थ होकर मर जायेगा और आपका नुकशान होगा, इसलिए पशु कब क्या चाहता है ये समझना होगा क्युकी पशु बोल नहीं सकता है हमाये आपकी तरह।
अब बात करते है नारी की, आपको नारी को समझना होगा तब भी जब वह शब्दों से कुछ नहीं कहे, पत्नी भी कई बार अपनी समस्या नहीं बताती है बस उसके चेहरे से झलकता है, ये तो बहुत जरुरी है, आप समाज में ही देख लो, कई बार आप सीट पर बैठे होते है बस में या ट्रेन में तो कुछ महिलाये आकर बोल देती है, ये अच्छा है लेकिन बहुत बार ऐसा होता है महिला के हाथ में बच्चा होता है और संकोच के कारण वो किसी पुरुष को नहीं कहती है जो सीट पर बैठा होता है, लेकिन ये भी सत्य है की उसकी उस दशा को अगर कोई पुरुष आज भी देख लेता है तो सीट छोड़ देता है, मेने हमेशा छोड़ी है, तो यहाँ भी आपको शब्दों के बिना भाव समझना होगा।
तुलसीदास जी कथना चाहते थे ऐसा लेकिन दुर्भावना से ग्रसित लोगो ने ताड़ना को प्रताड़ना बना कर भाव को ही बदल दिया, आखिर ऐसी क्या दुश्मनी है सनातन धर्म से ? विचार कीजियेगा।
अगर इसमें हमे भी मजे लेने हो इसमें ‘अधिकारी‘ शब्द को ऑफिसर से बदल कर बोलने लगे की ये सभी ऑफिसर ग्रैड के लोग है जिनका काम ताड़ना है
तुलसीदास जी का जन्म उत्तर प्रदेश के काशगंज जिले के सोरों में हुआ था और मेरा जन्म इटावा जिले में हुआ है, और भगवान श्री राम का जन्म अयोध्या जिले में हुआ है और ये सभी जिले उत्तर प्रदेश में ही आते है। प्रभु श्री राम वन गमन मार्ग