बिहार के पटना में हो रही जातीय गणना पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। कोर्ट में बिहार सरकार ने दलील देते हुए कहा कि राज्य में सर्वे का काम पूरा हो चुका है। इतना ही नहीं सारे डाटा भी ऑनलाइन अपलोड कर दिए गए हैं। इसके बाद याचिकाकर्ता की ओर से डाटा रिलीज करवाने की मांग की गई। इसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। इसके बाद कोर्ट ने सोमवार तक सुनवाई टाल दी। अब कोर्ट इस मामले को सोमवार को फिर सुनवाई करेगी। इससे पहले 7 अगस्त को इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी। कोर्ट ने प्रथम दृष्ट्या पटना हाईकोर्ट के फैसला पर रोक लगाने से मना कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जाति आधारित गणना का काम 80 प्रतिशत पूरा हो चुका है। अगर यह 90 प्रतिशत भी हो जाएगा तो क्या फर्क पड़ेगा।शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड की गई वाद सूची के अनुसार, गैर सरकारी संगठन (NGO) “एक सोच एक प्रयास की” ओर से हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर कोर्ट सुनवाई करेगी। NGO के अलावा हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ एक और याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी। बिहार के नालंदा निवासी अखिलेश कुमार की ओर से दायर याचिका में दलील दी गई कि जातिगत जनगणना कराने के लिए राज्य सरकार की तरफ से जारी अधिसूचना संविधान के प्रावधानों के खिलाफ है। संविधान के प्रावधानों के मुताबिक, केवल केंद्र सरकार को ही जनगणना कराने का अधिकार है।दरअसल, पटना हाईकोर्ट ने बिहार में जातीय जनगणना को लेकर उठ रहे सवालों पर सुनवाई की थी। चीफ जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस पार्थ सार्थी की खंडपीठ ने लगातार पांच दिनों तक (3 जुलाई से लेकर 7 जुलाई तक) याचिकाकर्ता और बिहार सरकार की दलीलें सुनीं थी। कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुना। इसके बाद एक अगस्त को पटना हाईकोर्ट ने सीएम नीतीश कुमार के ड्रीम प्रोजेक्ट को हरी झंडी दे दी। पटना हाईकोर्ट ने इसे सर्वे की तरह कराने की मंजूरी दे थी। इसके बाद बिहार सरकार ने बचे हुए इलाकों में गणना का कार्य फिर से शुरू करवा दिया। बिहार सरकार के अनुसार, जाति आधारित गणना का कार्य पूरा हो गया है।