उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में मानसिक बीमार अनुसूचित जाति की महिला से दुष्कर्म के मामले में 13 वर्ष बाद फैसला आया। शुक्रवार को न्यायाधीश ने दोषी को 10 वर्ष की जेल और 20 हजार रुपये अर्थदंड की सजा सुनाई है। प्रकरण की सुनवाई विशेष न्यायाधीश एससीएसटी की अदालत में चल रही थी। मटौंध थाना क्षेत्र निवासी पीड़िता की मां की तहरीर पर पुलिस ने 15 जनवरी 2010 को रिपोर्ट दर्ज की थी। इसमें मोहल्ला घुरहा थोक निवासी भूरा सिंह पुत्र पहलवान सिंह के खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज किया था। तहरीर में पीड़ित मां ने बताया था उसकी बेटी मानसिक बीमार है। इसी के चलते शादी के बाद पति ने उसे साथ रखने से मना कर दिया था। तब से बेटी मायके में मेरे साथ रह रही है। 15 जनवरी को सुबह 10 बजे बेटी बिना बनाए खेतों की तरफ निकल गई थी। इसी दौरान भूरा सिंह ने उसके साथ दुष्कर्म किया। बेटी ने शोर मचाकर मदद का प्रयास किया। इस पर आरोपी पूरे परिवार को जान से मारने की धमकी देते हुए भाग निकला। घर आकर बेटी ने मां को आपबीती बताई। पुलिस ने तहरीर के आधार पर मुकदमा दर्ज कर पीड़िता का मेडिकल परीक्षण कराया, जिसमें दुष्कर्म की पुष्टि हुई। इस पर पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। मामले की विवेचना के बाद पुलिस ने आरोप पत्र न्यायालय में दाखिल किया था। मुकदमा की सुनवाई विशेष न्यायाधीश एससीएसटी अनु सक्सेना की अदालत में चल रही थी। विशेष लोक अभियोजक विमल सिंह और महेंद्र कुमार द्विवेदी ने सात गवाह पेश किए। दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं की दलीलें सुनने के बाद न्यायाधीश ने अपने 23 पेज के फैसले में भूरा सिंह को दोषी करार दिया। उसे 10 साल के सश्रम कारावास और 20 हजार रुपये के अर्थदंड की सजा सुनाई है। जज ने जुर्माना की आधी धनराशि पीड़िता की मां को देने का आदेश दिया है। पुलिस मामले की जांच कर रही हे